दीपावली : चार क्षणिकाएं
1.
त्यागी फूलों की सेज
पकड़ी पादप लताओं की बेल
सुकुमार बना कीकर बबूल पथगामी
बना कष्टों का पारावार दु:खियों का स्वामी
घर से निकला था राजा का बेटा राम
वापस आया मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
2.
जगमग घर का हर कौना
बिछा है उज्जास बिछौना
आवो ज्ञान दीप श्रीमन पधारो
अंतस का अंधकार मिटाओ
3.
बाहर दीप जले
अंदर दीप जले
तन दीपों को खटे
मन दीप सदृश उजले
आज्ञान निशा अंधकार मिटे
उजली उषा अनहद जुटे
कलेवर कौना हो जगमग
काया तमस तम से हो भंग।
4.
जीवन आश्वस्त है तो दिवाली
माँ वसुंधरा फलित है तो दिवाली है
जब जब सत्य जीते तो दिवाली
जब अधम हारे तो दीवाली है
अहल्या शिला होगी जागृत
प्रीति-परिणीता बने दिवाली।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'