गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

सुकई गाँव में 1749 में निर्मित काष्ठ भवन की कला व अलंकरण

सूचना , फोटो : संतन सिंह रावत , सुकई

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 64

सुकई गाँव में 1749 में निर्मित काष्ठ भवन की कला व अलंकरण

सुकई गाँव में भवन काष्ठ कला , अलंकरण -1

बंगार , स्यूं गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -1

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 64

संकलन - भीष्म कुकरेती

बंगारस्यूं में सुकयि गाँव अठारवीं सदी से ही सयाणो /कमीणो यानी क्षेत्रीय या पट्टी के थोकदारों का गाँव रहा है। यद्यपि तब ब्रिटिश काल से पहले गढ़वाल देस में आम परिवार झोपड़ी नुमा उबर में ही रहते थे व भारी भारी कर बचाने हेतु पक्के मकान व पहली मंजिल वाले मकान निर्मित नहीं करते थे तो भी 1749 में निर्मित व अभी तक सुरक्षित सुकई के सयाणो के काष्ठ भवन साबित करता है कि सबल को नहीं नियम गुसाईं याने सयाणे थोकदार या जमींदार ) तो भारी कर भरने लायक थे किन्तु प्रजा इतनी समृद्ध न थी कि मंज्यूळ चढ़ा सके। तब बंगारी सुकई से ही सयाणा चारि निभाते थे।

सुकई (बंगार स्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) के अठारवीं सदी के सयाणो के बंशज संतन सिंह रावत ने अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित कष्ट भवन की सूचना व फोटो भेजी है और लिखा है कि भवन में 1749 में उत्कीर्ण हुआ था जो अब मिट गया है। संतन सिंह रावत ने सूचना नहीं दी कि काल /वर्स संवत में था या शक में उत्कीर्ण हुआ था। सुकई आज भी बंगारी सयाणो के गाँव नाम से प्रसिद्ध है व विवेचित काष्ठ भवन सुकई में दीबा चौक में स्थित है।

बंगारी सयाणो का काष्ठ भवन के पहली मंजिल पर काष्ठ संरचना वास्तव में बीसवीं सदी के तिबारियों से बिलकुल अलग है। सयाणो के काष्ठ भवन के प्रथम मंजिल में पांच मोरी , खोली या द्वार हैं जो सात स्तम्भों से बने हैं। स्तम्भ छज्जे की नक्काशीयुक्त काष्ठ पट्टिका पर टिके हैं।

प्रत्येक स्तम्भ पर कमल फूल नुमा आकृति उत्कीर्ण है। स्तम्भ के शीर्ष से अर्ध तोरण /half arch निकलता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध तोरण से मिलकर पूरा तोरण /arch बनाता है। तोरण /arch तिपत्तिनुमा है। मुरिन्ड के ऊपर शीर्ष पट्टिका है जिस पर नक्कासी हुयी है व इस शीर्ष पट्टिका की संरचना के ऊपर लकड़ी का ढैपर है जो बाहर से बंद नहीं है और यह एक आश्चर्य भी है कि ढैपर क्यों खुला है व बंद क्यों नहीं है। ढैपर में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कला दर्शनीय है।

स्तम्भ में कमल दल , डीले व बेल बूटों की नक्कासी उत्कीर्ण हुयी है। स्तम्भों की खोली पर लकड़ी (दरवाजे ) निर्माण समय 174 9 का ही है या अभी लगे हैं की सूचना मिलनी बाकी है। भवन में खिन भी पशु या पक्षी उत्कीर्ण नही हुए हैं .

सुकई के इस काष्ठ भवन से कई प्रश्न भी खड़े हुए हैं कि काष्ठ भवन कलाकार कहाँ से लाये गए थे व स्तम्भ , तोरणों पर कलाकारी की प्रेरणा कहाँ से मिली थी याने इस भवन कला पर किस क्षेत्र की संस्कृति का प्रभाव था ? यदि तकनीक व कलाकार तब उपलब्ध थे तो क्यों नहीं बंगार स्यूं या निकट की पट्टियों में या अन्य गाँवों में इस तरह के भवन क्यों नहीं बने ? क्या अन्य क्षेत्रों की लोक कथाओं अनुसार सुकई के सयाणो के भवन के निर्माण कलाकारों की भी बलि चढ़ा दी गयी थी ? क्या संबत या शक 1749 में निर्मित इस भवन का जीर्णोद्धार नहीं हुआ ? के प्रश्न भी अनुत्तरित हैं और इन प्रश्नों के उत्तर इतिहासकारों को खोजना आवश्यक है।

भवन में किस किस लकड़ी का प्रयोग हुआ की जानकारी भी इतिहासकारों को खोज करनी बाकि है।

सूचना , फोटो : संतन सिंह रावत , सुकई

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020