गौं गौं की लोककला

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 9

सूचना आभार-सतीश कुकरेती (कठूड़ )

कठूड़ बड़ा (ढांगू ) संदर्भ में हिमालयी कला व कलाकार

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 9

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

सूचना - सतीश कुकरेती (कठूड़ )

प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

कठूड़ शब्द द्रविड़ व खस शब्द है जो इस बात का द्योतक है कि यह स्थान 2000 वर्ष पहले भी प्रचलन में था। कठूड़ ढांगू का क्षेत्रफल ही नहीं जनसंख्या में बड़ा गाँव था इसिलिए इसे बजरि कठुड़ भी कहते थे। कठूड़ में 12 जातियां बसती करतीं हैं । कठूड़ में दो पधान थे (राम प्रसाद कुकरेती व राघवा नंद कुकरेती थोक ) । उत्तर में पल्तिर टटरी आदि गाँव हैं , पूर्व में पाली , दक्षिण पूर्व में ठंठोली गाँव हैं व पश्चिम में ढौंर -ढासी गाँव हैं व पूर्व से ठंठोली गदन कठूड़ गदन बनता है जो कठघर में हिंवल में मिल जाता है। कठघर में जींद मेला प्रसिद्ध था व अंग्रेजों के समय यह गेंद मेले में खेलते वक्त एक खून माफ़ था।

पहले पहल कठूड़ में गुमानी जाति वास करती थी जो महामारी में अन्यत्र चले गए।

हिमालय के अन्य क्षेत्रों की भाँति कठूड़ में निम्न मुख्य कलाएं विकसित थीं जो काल चक्र अनुसार विकसित होती गयीं या हरचतीं गयीं जैसे आज पाषाण युग की कलाएं हर्च गयी हैं अथवा भांग रेशों या स्योळू से कपड़े बनाना , धान के पराळ से गद्दा बंनाने/बिछौना या गेंहू के पराळ व माळू रेशों से मंदर बनाना अब इतिहास में ही सुना जाता है । सन १९६० के बाद ऊन के कपड़े बनना भी बंद हो गयीं थीं।

धार्मिक उतसवों व पूजन में प्रयोग होने वाली कलाएं जैसे गणेश पपोजन में छुआकल में गणेश व दिवार पर गणेश थरपण , जनेऊ निर्माण, विवाह में वेदी निर्माण , बग्वाळ , दिवाली , गोधन व इगास दिन पीण्ड के उपर फूल लगाना , झरखंडी पूजन में कई कलाओंका प्रदर्शन।

सांस्कृतिक कलाएं

सामहिक - लोक नृत्य व लोक गायन , महिलाओं व पुरुषों द्वारा बसंत पंचमी से बैसाखी तक रात को सामूहिक नृत्य व गीत व स्वांग। वसंत पंचमी दिन हल्दी से सफेद कपड़ा रंगने की संस्कृति थी व सिंगार में लोहार जाऊ की हरयाळी लगाते थे। शैली याने सामूहिक गुड़ाई में गीत गायन आम संस्कृति थी। विवाह अवसर आदि में मांगळ गीत गाने की परम्परा अभी भी है।

बादी -बादण द्वारा नृत्य , गीत , स्वांग - बादी बिजनी गाँव के थे। प्रत्येक 12 साल में गाँव में लांग खेलते थे

धार्मिक नाच गान व वाद्य बजाया जाते थे जैसे घडयळ में।

ढोल वादक - बड़ेथ के स्वांर दास का परिवार अब पयांखेत के प्रेम दास परिवार

बंधाण पूजा - मोर रावत बंधाण पूजा के कर्मकांडी थे । गांव में बंधाण धार भी है। बंधाण पूजा में खिन्न लकड़ी के सात टहनियों से पूजनीय कलाकृति बनाई जाती थीं।

दर्जी - राजाराम

सुनार /स्वर्णकार कला - कहा जाता है बहुत पहले सुनार कठूड़ में थे जो पलायन कर गए थे। लगता है सम्भवतया कठूड़ के सुनारों के पलायन पश्चात ही जसपुर में सुनार बसाये गए हों ! जसपुर में सुनार 1890 लगभग ही बसाये गए थे। स्वर्णकार कला हेतु जसपुर व पाली पर निर्भरता।

लौह कला - कठूड़ में लोहार परिवार , -काली चरण व राबी दो परिवार

ओड - चमन लाल , काली चरण , दया राम

टमटा गिरी याने लौह के अतिरिक्त अन्य धातु वर्त्तन व कंटेनर्स - 50 से पहले जसपुर पर निर्भर , बाद में तैयार वर्त्तन संस्कृति किन्तु सन 70 तक घांडी , हुक्का जसपुर में बनते रहे हैं

कठूड़ में पुरोहितायी - अजब राम कुकरेती के ख्वाळ के कुकरेती पुरोहितायी करते आये रहे हैं किन्तु इनके पुरोहित जसपुर के बहुगुणा।

हंत्या जागरी - राबी व पुत्र

हंत्या अतिरिक्त अन्य देव जागरी - मुरली सिंघ नेगी

कर्मकांड व ज्योतिष बीसवीं सदी के मध्य - देवी दत्त कुकरेती ,टंखी राम कुकरेती , राम प्रसाद कुकरेती , पुरुषोत्तम कुकरेती प्रसिद्ध हुए और वर्तमान में भगवती प्रसाद कुकरेती प्रसिद्ध ज्योतिषी

रेशों के रस्सियां कंटेनर्स आदि - प्रत्येक परिवार कृषि पर निर्भर था तो भांग -भ्यूंळ माळु के रेशों से विभिन्न रस्सियां व टोकरियां , दबल निर्मित होते थे।

गदन व जंगल होने के कारण मच्छी मारने की कला , सुंगर -मृग घेर कर मारने की कला , सौल , मुर्गा शिकार कला hunting art भी सामन्य हिमालयी कला जैसा ही कठूड़ में विद्यमान थी

गाँव में कुछ दशाब्दी पहले तक कुलुड़ (कोल्हू ) भी था।

रामलीला नाट्य मंचन - एक समय रामायण नाट्य मंचन भी होता था जिसके कलाकारों में बीर सिंह नेगी , अर्जुन सिंह रावत , राकेश कुकरेती , नरोत्तम कुकरेती , अश्विनी कुकरेती , दिनेश कुकरेती , कूंतणी के ललिता प्रसाद डबराल व मसोगी के श्याम प्रसाद डबराल प्रसिद्ध हुए , व्यवस्था ब्रिज मोहन कुकरेती व रुद्रमणि कुकरेती करते थे।

आध्यात्मिक - गोविन्द प्रसाद कुकरेती उज्जैन में डबराल बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए

साहित्यकार - रजनी ध्यानी कुकरेती

फिल्म निर्देशक -अनुज जोशी

कठूड़ के चारों ओर मंदिर हैं और कठूड़ देवी मंदिर (देवी डांड ) के नाम से भी जाना जाता है।

दो पनचक्की थीं (राबी आर्य व कृपाल सिंह कीअलग अलग मिल्कियत )

Copyright@ Bhishma Kukreti , January 2020

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