गढ़वाल में नागपुरी हसली ब्राह्मण

मैंने इससे पूर्व सरोला ब्रह्मणों पर भी लिखा था कि जातियों पर लिखना संवेदनशील है। मैंने जो लिखा वह अपने अध्ययन पर है और संदर्भ सहित लिखा है। इससे पूर्व दाणकोट के गौड़ लोगों द्वारा मुझे कहा गया कि तुमने दाणकोट की उपेक्षा की है। मेरा सादर निवेदन है कि ये सूचियां मैंने नहीं बनाई। ये एटकिंसन और रायबहादुर पातीराम जी का उल्लेख है। मैं बस यही लिख सकता हूँ कि उनसे दाणकोट के गौड़ छूट गए होंगे।

नागपुर में रुद्रप्रयाग से केदारनाथ क्षेत्र में फैले ब्राह्मणों को एटकिंसन व पातीराम ने 'निरोला', रतूड़ी ने 'नानागोत्री' तथा राहुल ने 'दुमागी' ब्राह्मण लिखा है। सन् 1884 में एटकिंसन लिखते हैं कि "निरोला सामाजिक रूप से सरोलों की तुलना में कमतर माने जाते हैं और इनका एक अलग वर्ग है जिसे 'दुभागी' कहते हैं। ये न तो सरोले के हाथ का और न ही गंगाड़ी ब्राह्मणों के हाथ का भोजन (दाल-भात) करते हैं। ये सरोला व गंगाड़ी दोनों से शादी-ब्याह नहीं करते। ये लोग रुद्रप्रयाग से केदारनाथ के रास्ते में नागपुर परगने में हैं। इनके कई गोत्र हैं जैसे कश्यप व अंगिरा और इसलिए इन्हें 'नानागोत्री' कहा जाता है। इनमें से अधिकांश किसी न किसी गाँव के नाम पर हैं। (हिमालयन गजेटियर - 3- एटकिंसन, अनुवाद- प्रकाश थपलियाल, पृ० 352)

एटकिंसन के अनुसार- इनका एक वर्ग है तथा इन्हें 'दुभागी' कहते हैं। निश्चय ही अपने कार्य हेतु प्रश्न सूची इस क्षेत्र के पटवारी या अन्य किसी को भेजी गई होगी और हिंदी में लिखा 'दुमागी' शब्द 'दुभागी' पढ़ लिया होगा। ऐतिहासिक ग्रंथ 'रामायण प्रदीप' (1750-80) में भी इस क्षेत्र को 'दुर्मार्गदेश' लिखा गया है। (उद्धरण- मध्य हिमालय -1- कठोच, पृ०97-98) एटकिंसन इन ब्राह्मणों को निरोला क्यों लिखते हैं, कहीं भी स्पष्ट नहीं किया है। आगे नानागोत्री (मात्र दो गोत्रों- कश्यप व अंगिरा का उदाहरण देकर) का अर्थ कई गोत्रों वाले लगाते हैं। जबकि इन ब्राह्मणों में किसी का भी गोत्र अंगिरा नहीं है। अधिकांश कश्यप व भारद्वाज गोत्र के हैं। कंडारा गढ़ी से कार्तिकेयपुर नरेश ललितशूर के ताम्रपत्राभिलेख जो नौवीं सदी के आसपास का है, की दसवीं पंक्ति में इस क्षेत्र को 'दुर्म्मोर्ग' लिखा गया है। आज भी कंडारा गढ़ी से उत्तरी भाग को दुमाग तथा क्षेत्र के निवासियों को दुमागी कहा जाता है।

इस क्षेत्र के ब्राह्मणों में सरोला के लिए 'हसली' तथा गंगाड़ी ब्राह्मणों के लिए 'कमसली' शब्द प्रयुक्त किए जाते हैं। 'हसली' शब्द असली तथा 'कमसली' शब्द कम असली से बने हैं। इन हसली ब्राह्मणों में सरोला ब्राह्मणों की तरह शादी-ब्याह व खान-पान की प्रथाएँ एक जैसी हैं। इन ब्राह्मणों में ज्योतिष और कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञान रहा है। ज्योतिष व कर्मकाण्ड में हसली व कमसली का कोई भेद नहीं होता है। आज भी इन गाँवों के ज्योतिष व कर्मकाण्डी ब्राह्मण पंजाब, हरियाणा व देश के अन्य राज्यों में पुरोहिताई करते हैं।


दुमागी ब्राह्मणों के आगमन के सम्बन्ध में जानने के लिए केदारनाथ के महापंथ पर जाने के काल को देखना होगा। बाणभट्ट के समय बाण हर्षचरित के 5वें उल्लास में लिखा है कि कुछ मोक्ष की कामना वाले तीर्थ यात्रियों ने अपने को भृगुपतन से गिरा दिया और कुछ (जो प्राणों का उत्सर्ग का साहस न कर सके) वहीं तीर्थों में रह गये। केदारनाथ की यात्रा करने वाले यूरोपियन यात्री स्किनर ने लिखा है कि सन् 1829 में महापंथ (केदारनाथ के ऊपर) से 15 हजार यात्रियों ने प्राण उत्सर्ग किए थे। (उद्धरण - उत्तराखंड के तीर्थ एवं मन्दिर - नैथानी, पृ० 171) ओकले ने लिखा है कि ब्रिटिश राज्य में केदारनाथ भैंरोझाप से 1831 ई० तक तीर्थ यात्रियों को पूजा-पाठ मंगलाचरण ध्वनि के साथ यमलोक पहुँचाया जाता था। (होली हिमालय- ओकले, पृ० 43 व 150) 19वीं सदी के मध्य तक केदारनाथ में हिंदू सनातन धर्मावलम्बी मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूजा-पाठ कर अपने प्राणों का उत्सर्ग करते रहे।

नागपुर क्षेत्र के इन हसली ब्राह्मणों की जातियाँ भी चाँदपुर के सरोला ब्राह्मणों की तरह गाँव के नाम पर पड़ी हैं। इनमें किमोठा के किमोठी, दरम्वाड़ी के दरम्वाड़ा, गुगली के गुगलेटा, फलाटी के फलाटा, पोल्दा के पोल्दी आदि लगभग सभी जातियाँ गाँव के नाम पर जाति रखती थीं। आज भी यहां पर ब्याहता औरतों को जाति या नाम की जगह उसके मायके के गाँव के नाम पर ससुराल में संबोधित किया जाता है। जैसे- सिल्ला गाँव वाली औरत को सिल्वाळी दीदी, मणग्वाळी भुली आदि नामों से संबोधित किया जाता है।

नागपुर क्षेत्र के हसली ब्राह्मणों के बारे में एटकिंसन को आधार मानकर रायबहादुर पातीराम जी ने अपनी पुस्तक 'गढ़वाल ऐंसेंट एण्ड माडर्न' में जो लिखा है उसके आधार पर इनकी जाति, मूल जाति, गाँव, वर्तमान जाति और गोत्र इस प्रकार हैं :-

कणधारी- (-, कणधार, चमोला, भारद्वाज)

कंड्याल- (कान्यकुब्ज, कांडई, काण्डपाल, भारद्वाज)

कंडारी- (गौड़, कंडारा, गैरोला, भारद्वाज)

किमोठी- (गौड़, किमोठा, किमोठी, सांडिल्य)

खौली- (गौड़, खाल, खाली, कश्यप)

गरसारा- (गौड़, गरसारी, सेमवाल, कश्यप)

गड्याल- (-, गड्डी, नौटियाल, भारद्वाज)

गुगलेटा- (जोशी, गुगली, जोशी, भारद्वाज)

गुनाई- (-, गुनाऊँ, वशिष्ठ, वशिष्ठ)

जमलोकी- (गौड़, रविग्राम, जमलोकी, भारद्वाज)

थल्वाल- (गौड़, थाला, थपलियाल, भारद्वाज)

थलासी- (द्रविड़, थलासू, वशिष्ठ, वशिष्ठ)

दरम्वाड़ा- (गौड़, दरम्वाड़ी, दरमोड़ा, कश्यप)

द्यूल्खी- (कान्यकुब्ज, द्यूल्ख, त्रिपाठी, गौतम)

द्यूसाली- (विन्ध्य से, द्यूसाल, देवशाली, कश्यप)

ढमक्वाल- (गौड़, कुरझण, पांडे, भारद्वाज)

पुरोहित- (सारस्वत, क्वीली-कुरझण, पुरोहित, उपमन्यु)

पोल्दी- (गौड़, पोल्दा, सेमवाल, कश्यप)

फलाटा- (सारस्वत, फलाटी गार्गी, गार्गी)

बड़म्वाल- (गौड़, बड़मा, गौड़, भारद्वाज)

बमोला- (गौड़, बमोली, बमोला, कश्यप)

बिंज्वाल- (कान्यकुब्ज, बेंजी, बेंजवाल, कश्यप)

भटग्वाल- (-, भट्टगांव, भट्ट, भारद्वाज)

मणग्वाल- (गौड़, मणगू, भट्ट, भारद्वाज)

मैकोटा- (द्रविड़, मैकोटी, वशिष्ठ, वशिष्ठ)

सन्वाल- (-, सन, गैरोला, कश्यप)

सणग्वाल- (सारस्वत गौड़, सणगू , पुरोहित, उपमन्यु)

सिल्वाल- (कोरंतका, सिल्ला, नौटियाल, भारद्वाज)

सेमवाल- (गौड़, सेमी, सेमवाल, भारद्वाज)

उक्त सूची में एटकिंसन एवं रायबहादुर पातीराम जी ने अन्द्रवाड़ी, नमोली, टेमरिया, ह्यूण गाँवों के सेमवाल, दाणकोट के गौड़ तथा वीरौं के डिमरी जाति का उल्लेख नहीं किया है। संभवतः लिखने में ये जातियाँ छूट गई हों। मक्कू के मैठाणी संभवत: मूल मैठाणी जो आदि गौड़ थे, यहां बसे। इन दुमागी ब्राह्मणों के गाँवों की वंशावलियाँ देखने से लगता है कि 10-15 पीढ़ियाँ ही इन्हें यहां बसे हुए हुई हैं।

(साभार - गढ़वाल हिमालय- रमाकान्त बेंजवाल)