गौं गौं की लोककला

बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में हिमालय की तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला- 3

सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती (कठूड़ )

हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -7

हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )

बजारी कठूड़ में लीला नंद कुकरेती की तिबारी की काष्ठ कला

बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में हिमालय की तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला- 3

हिमालय की भवन ( तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 7

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

बजारी कठूड़ मंदिरों व तिबारियों व जंगलाओं (भवन प्रकार ) के लिए क्षेत्र में प्रसिद्ध है। कठूड़ तिबारी श्रृंखला में लीला नंद कुकरेती की तिबारी एक समय जानी मानी तिबारी थी। अब जीर्ण -सीर्ण स्थिति में लगभग अंतिम सांस ले रही है।

मेहराब /arch न होने यह तिबारी उच्च श्रेणी की तिबारियों में स्थान नहीं पा सकती है।

लीला नंद कुकरेती की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ है दो किनारे वाले भवन दीवाल से लगे हैं व चारों सत्मभ तीन मोरी /खोली /द्वार बनाते हैं। चारों स्तम्भों के प्रत्येक स्तम्भ छज्जे पर आधारित है। आधार पर उल्टा कमल पुष्पदल दीखता हिअ व फिर गोल गुटके का एक आकृति है जिससे ऊर्घ्वाकर कमल पुष्पदल है जहाँ से स्तम्भ सीधे ऊपर आता है और मुंडीर (सिर ) से जुड़ जाता है सभी स्तम्भ इसी प्रकार मुंडीर से जुड़ते हैं। मुण्डीर पर चार से अधिक समांतर र पट्टियां है और आखरी ऊपर की काष्ठ पट्टी छत से मिल जाती है। मुण्डीर की प्रत्येक नीचे वाली व मध्य पट्टियों के बिलकुल मध्य में कोई शुभ चिन्ह अंकित है याने मुण्डीर पर कुल तीन शुभ चिन्ह अंकित है।

स्तम्भ या मुण्डीर की पट्टियों पर कोई विशेष कला कृति अंकन के दर्शन नहीं होते हैं किन्तु अपने निर्माण काल में अवश्य ही कला अंकन दृष्टिगोचर होता रहा होगा।

छत लकड़ी के दासों (टोड़ी ) की सहायता से ताकतवर पट्टी पर टिकी है और दास में उल्लेखनीय कला अंकन नहीं मिलता है।

यह तिबारी भी लगभग 1940 या बाद समय की ही लगती है।

तिबारी काष्ठ कलाकारों की अभी तक कोई सूचना नहीं मिल सकीय है। लगता है लकड़ी कम टिकाऊ /ड्यूरेबल की है।

सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती (कठूड़ )

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020