उत्तराखंड परिपेक्ष में जागरा की सब्जी , औषधीय उपयोग,अन्य उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -17
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --59
आलेख : भीष्म कुकरेती (संस्कृति व वनस्पति पुराण लेखक )
English name - Pokeweed/ Indian poke
Botanical Name-Phytolacca acinosa
उत्तराखंडी नाम - जागरा
नेपाली नाम -जारिंगो
जागरा वास्तव में एक भुखमरी का साग वनस्पति कहा जाएगा। वास्तव में जागरा की बड़ी उम्र की पत्तियां व जड़ें विषैली होती हैं।
जागरा का जन्मस्थल हिमालय है। याने हिमालय में इस पौधे को हजारों साल से भोजन व व वैदिकी में प्रयोग होता आ रहा है।
1406 में प्रकाशित चीनी पुस्तक ट्रीटाइज ऑन वाइल्ड फूड प्लांट्स फॉर यूज इन इमरजेंसी में जागरा का विस्तृत वर्णन है कि किस तरह भुखमरी में जागरा क प्रयोग किया जाता है। नीति -माणा के मध्य जागरा के प्रचलन से अंदाज लगाया जा सकता है कि जागरा का उत्तराखंड में भोजन रूप में प्रयोग पर चीनी भोज्य पाक शास्त्र का प्रभाव अवश्य है
जागरा पहड़ी इलाकों में जंगलों के किनारे 500 -3000 मीटर की ऊंचाई में उगता है। खेतों में भी खर पतवार के रूप में भी उगता है।
जागरा का स्वास , AID , जलन ; बैक्ट्रियाई व फंगस से पनपी बीमारियों में औषधीय उपयोग होता है।
जागरा की कम उम्र कोमल कच्ची पत्तियां व जड़ें ही सब्जी बनाने के काम आ सकती हैं।
चीन में , कश्मीर में जागरा की सफेद जड़ों को स्लाइस में काटा जाता है और इन स्लाइसों को टोकरी में 48 घंटों तक झरने के नीचे रखा जाता है जिससे जागरा का विषैला समाप्त हो जायैं। फिर जड़ों की स्लाइसों को भाप में गरम कर लहसुन -नमक लगाकर खाया जाता है। रिपोर्ट है कि सफेद पौधे विषैले नही होती हैं। कश्मीर में भी जड़ें खायी जाती हैं। जड़ें सुखाकर भी खाया जाता है।
सालनी मिश्रा, मैखुरी , काला , राव व सक्सेना ने लिखा है कि नीति -माणा के मध्य नंदा देवी बायोस्फेयर क्षेत्र में जागरा की कोमल पत्तियों को केवल मार्च में ही खाया जाता है। अप्रैल के बाद जागरा की पत्तियां विषैली होने लगती हैं। मिश्रा आदि लिखते हैं कि कच्ची पत्तियों को पहले उबाला जाता है और पानी निथारकर फिर उबली पत्तियों को तेल में भूनकर , नमक , मसाले मिलाकर पालक /मरसू जैसी सब्जी बनाई जाती है।
जागरा के फलों से लाल स्याही बनायी जाती थी या अब भी बनाई जाती होगी ।
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