गढ़वाली कविता

बालकृष्ण डी. ध्यानी

बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुर

ऐ जा मेर पास


ऐ जा मेर पास


ऐ जा ऐ जा मेर पास

मेर पास बैठि जा

सुणि जा मेर बात

ऐ जा ऐ जा ऐ जा ऐ जा ..... ऐ जा ..अ

सुणि जा मेर बात

ऐ जा .... ऐ जा..अ


डाली व बोटी क्या वणोंदी

जीकोडी खोली तेर क्या सुणोंदी

सुणि ले .... सुणि ले

ऐ जा मेर पास

सुणि जा मेर बात..अ

ऐ जा .... ऐ जा ..अ


उल्यारों को स्वागत

रंगों को बसन्त

पिंगला नीला भाँति भाँति फूल

गाड, गधेरा पंछी पौन..अ

सुणि ले ओँ कि सुणि ले

जियू की पुकार ..अ

ऐ जा .... ऐ जा ..अ


सुणोंद जा

क्या कैनि ऐ चारू दिसा

ना बण यन परदेशी ....

ऐना छन यख रंग रोज नया नया

सुणि ले सुणि ले , ले ले

एक बार ,एक बार ,एक बार

तेरु छ यख घार बार ..अ

ऐ जा .... ऐ जा ..अ


लठ्यालू होलो निरभागी होलो

प्रकृति दगड छुई जो नि लगलू

गईन फूटि कलि कोंपलें

सजाई दीने रति रंग भूमि ऐकी

अपंडी रतन्याली

अंख्यों न देखेलि औरृ सुणि ले

ऐ जा मेर पास

सुणि जा मेर बात..अ

ऐ जा .... ऐ जा ..अ