उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -5
History of Gastronomy in Uttarakhand -5
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ---5
आलेख : भीष्म कुकरेती
महाभारत में उत्तराखंड पर्वतीय उपत्यका का नाम कुलिंद जनपद था। सुबाहू कुलिंद जनपद का सबसे प्रतापी राजा थे।
महाभारत में उत्तराखंड के वर्णन में निम्न वनस्पतियों और प्राणियों का वर्णन मिलता है -
खाद्य देने वाले वनस्पति व वृक्ष
उत्तराखंड में महाभारत काल में अम्बाडा , अंजीर , अनार , आम, आंवला , इंगुद ,कटहल, कैथ , खजूर , गंभीरी , गुलर , जामुन , तेंदू ,तेन्दुल, नीम्बू , बहेड़ा , बरगद, बेर , बेल, भिलावा (Semecarpus anacardium ), मोच (केला ) , सेमल फलदार वृक्ष सामन्य रूप से मिलते थे।
तिमल, हिसर भी होते थे
देहरादून की शाली या धान उस समय भी प्रसिद्द्ध था।
उत्तराखंड से अनाज निर्यात भी होता था
बड़े जल कलस
महाभारत में बद्रिकाश्रम में विशाल जल कलस का वर्णन है
थालियाँ और कटोरियाँ कांसे की बनी होती थीं।
मांस भोजन
शिकार रोज कर्म क्रम था . भोज में भी परोसा जाता था।
पशु
गाय , भैंस , कुत्ते जंगली भी थे और पाले भी थे।
,मृग सूअर , गधे , घोड़े भी थे
बानर,शेर , चमर गाय , हाथी आदि जानवरों का जिक्र भी उत्तराखंड सम्बन्धित महाभारत के अध्यायों में मिलता है.
पक्षी
गौरैया, कादम्ब , कारंडव , कुक्कुट , कुरर , क्रौंच , चक्रवाक , चातक , जल कुकुट , पुष्प कोकिल , प्रियक, बक , प्लव, भृंगराज , मदगु , सारस और हंस भी थे।
शहद
उत्तराखंड से शहद निर्यात होता था। और यह मिष्ठान निर्माण का एक माध्यम भी रहा होगा
तिमल -बेडु से मिष्ठान
तिमल बेडू का वर्णन है। इस तरह खा जा सकता है कि बेडु -तिमल से मीठा पाया जाता था।
सुक्सा
सुक्सा याने सुखाकर सब्जी या फलों को सुरक्षित करना। सुक्सा विधि इस समय प्रचलित हो चुकी थी।
जातीय भोजन /वर्गानुसार भोजन
इस युग में उत्तराखंड में जातीय विभाजन नींव पद चुकी थी और भोजन बनाने की शैली में जातीय अंतर होगा।
विदुर नीति में कहा गया है कि श्रमिक तीखा, तेल युक्त खाना खाता है और उच्च पदेन व्यक्ति कम तीखा भोजन करता है।
अल्पहारी
महाभारत (संक्षिप्त महभा. गीता प्रेस पृष्ठ 502 ) में विदुर धृतराष्ट्र को जब ज्ञान नीति सुनाते हैं कहते हैं कि थोड़ा भोजन करने वालों को निम्न सुख - आरोग्य ,आयु, बल , सुख तो मिलते ही हैं तथा ' यह अत्यंत खाऊ ' की उपाधि नही पाता। विदुर नीति में नमक , पका हुआ भोजन , दूध , दही ; मधु , घी , तेल, तिल मांस , फल ,मूल , कपड़ा। गंध ,गुड़ जैसी चीजें बेचने योग्य नही मानी जाती थी ।
व्रत के भोजन
विदुर नीति में कहा गया है कि जल , मूल , फल , दूध , घी , ब्राह्मण इच्छा पूर्ति हेतु भोजन , गुरु का वचन और औषध व्रत नाशक नही होते हैं।
चूंकि महाभारत काल में ही उत्तराखंड पर पांडवों और कौरवों का प्रभाव रहा है अत: खान पान के मामले में महभारत में भोजन विषयी कई बातें उत्तराखंड में भी लागू होती थीं।