गौं गौं की लोककला

नाली बडोली (दुगड्डा ) में स्व जितार सिंह नेगी की तिबारी /डिंड्याळी में काष्ठ कला अलंकरण , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : : संजय नेगी .

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 129

नाली बडोली (दुगड्डा ) में स्व जितार सिंह नेगी की तिबारी /डिंड्याळी में काष्ठ कला अलंकरण , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , मोरी , खोली , कोटी बनल ) काष्ठ कला , अलंकरण नक्कासी - 129

संकलन - भीष्म कुकरेती

नाली बडोली (छोटी व बड़ी ) कृषि समृद्ध गाँव रहा है। समृद्धि की अभिव्यक्ति नाली बडोली के मकानो में पाषाण व काष्ठ कला अंकन में दीखता है। आज इसी श्रृंखला में पौड़ी गढ़वाल के दुगड्डा मंडल के नाली बडोली गाँव में स्व जितार सिंह नेगी की तिबारी की चर्चा होगी। आज परिस्थिति बिपरीत हो गयीं हैं जबकि कभी स्व जितार सिंह नेगी के 16 कमरों , दुखंड /तिभित्या। दुपुर मकान की तिबारी नाली बडोली ही नहीं अपितु अजमेर व निकटवर्ती उदयपुर पट्टी के गाँवों की शान थी , पहचान थी व गाँव में इस तिबारी का सामजिक महत्व भी था।

पौड़ी गढ़वाल के नाली बडोली गाँव में स्व जितार सिंह नेगी के मकान में तल मंजिल में खोली (अंदर ही अंदर से पहली मंजिल पर जाने का प्रवेश द्वार )है। खोली के काष्ठ सिंगाड़ों /स्तम्भों में पर्ण -लता (बेल बूटों ) की सुंदर अंकन (नक्कासी ) हुयी है जो चक्षु सुखदायी है। सिंगाड़ किसी चौखट मुरिन्ड /मथिण्ड से नहीं मिलते अपितु ट्यूडर नुमा अर्ध गोल आकर्षक चाप/तोरण बनाते हैं व सूचना अनुसार इसी तोरण में ऊपर शीर्ष में एक देव /नजर न लगे का प्रतीक आकृति खुदी थी जो अब नहीं दिख रही है। मुरिन्ड के अगल बगल दोनों ओर काष्ठ छज्जा आधार से दो दो मानव आकृति के दीवालगीर (bracket ) हैं। ये दोनों (कुल चार ) मानव आकृति सम्भवतया क्षेत्रपाल प्रतीक हैं । क्षेत्रपाल आकृतियों के ऊपर शंकुनुमा व कुछ कुछ फूल नली जैसे कुछ आकृति भी है।

पहली मंजिल में तीन कमरों के बरामदे के बाहर छह खम्बों /स्तम्भों /सिंगाड़ों से युक्त तिबारी स्थापित है। तिबारी में छह स्तम्भ स्वतः ही पांच ख्वाळ /खोली बनाते हैं। सभी छहों स्तम्भ सीधे सपाट हैं व बिन प्राकृतिक या मानवीय नक्कासी के हैं। उसी तरह मुरिन्ड की बौळी /कड़ी भी सपाट व चौखट नुमा है। कहा जा सकता है कि तिबारी के स्तम्भों व मुरिन्ड में ज्यामितीय कला अलंकरण /नक्कासी हुयी है और प्राकृतिक व् मानवीय खुदाई नहीं दिखती है। हाँ मुरिन्ड में कुछ प्रतीक आकृति होने की छाप अवश्य है।

निष्कर्ष निकलता है कि पौड़ी गढ़वाल के दुगड्डा मंडल के नाली -बडोली गांव में स्व जितार सिंह के मकान में काष्ठ कला लंकरण /लकड़ी की नक्कासी की दृष्टि से तिबारी (स्तम्भ , मुरिन्ड आदि में ) में कोई विशेष कला अलंकरण /अंकन नहीं हुआ है। किन्तु तल मंजिल की खोली में ज्यामितीय ( स्तम्भों का तोरण में ढलना ) , मानवीय अलंकरण ( मुरिन्ड में नजर न लगने वाला देव प्रतीक , चार क्षेत्रपाल प्रतीक आकृतियां ) व प्राकृतिक (सिंगाड में बेल बूटे ) कला अलंकरण /नकासी अवश्य की सहसा चक्षुओं को आकर्षित कर सकने में सफल हैं।

सूचना व फोटो आभार : : संजय नेगी .

यह लेख भवन कला, नक्कासी संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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