गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

गटकोट के जोत सिंह - जितार सिंह रावत की जंगलेदार निमदारी में काष्ठ कला

सूचना व फोटो आभार: विवेका नंद जखमोल

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 46

गटकोट के जोत सिंह - जितार सिंह रावत की जंगलेदार निमदारी में काष्ठ कला

गटकोट (मल्ला ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला -अलंकरण - 4

ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला - 25

दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 46

संकलन - भीष्म कुकरेती

गटकोट से तिबारियों व जंगलेदार निमदारियों की सूचना उत्साहवर्धक रही है। अभी इस लेख में एक आम जंगलेदार निम दारी की विवेचना की जायेगी जिसकी सूचना साहित्यकार व अध्यापक विवेका नंद जखमोला ने भेजी है। (गटकोट की लोक कलाओं व तिबारियों आदि की सूचना में पहले ही गटकोट वर्णन आ चूका है )

गटकोट (ढांगू ) में जोत सिंह रावत -जितार सिंह रावत की यह जंगलेदार निमदारी ने अवश्य ही गटकोट को एक गर्वयुक्त पहचान दी थी। आज भी जोत सिंह - जितार सिंह रावत की 12 कमरों की जंगलेदार निमदारी यद् दिलाती है कि 1900 - 1970 तक ढांगू में तिबारी , डंड्यळी , जंगलेदार निम दारी गाँव को एक गर्वयुक्त पहचान दिलाते थे। इस लेखक का अनुमान है पहले तो पूरे गढ़वाल (उत्तरकाशी छोड़ कर ) में मिटटी पत्थर से सुसज्जित पहली मंजिल निर्माण 1890 के पश्चात ही शुरू हुआ होगा व संभवतया प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही तिबारियों का प्रचलन बढ़ा होगा।

गटकोट (मल्ला ढांगू ) में जोत सिंह जितार सिंह रावत की निम दारी में पहली मंजिल पर काष्ठ जंगला बंधा है जिसमे दस काष्ठ हैं जो लकड़ी के छज्जों पर टिके हैं व सीधी ऊपर छत की पट्टिका याने शीर्ष /मुण्डीर पट्टिका से मिलते हैं । प्रत्येक स्तम्भ के आधार पर दो फिट तक पट्टियां लगाकर स्तम्भ आधार को वृहद होने या मोटे आधार होने की छवि प्रदान की गयी है , दो फिट ऊंचाई तक रेलिंग व लकड़ी के जंगल हैं। स्तम्भ व रेलिंग व जंगल स्पॉट ज्यामितीय ढंग से काटे गए हैं। लकड़ी के छज्जे व छत के दास भी सपाट आयताकार रूप में लगे हैं। खिड़कियों पर ज्यामितीय अलकंरण या कटान . कहीं भी प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण के चिन्ह नहीं मिलते हैं।

ढांगू या पश्चिम -दक्षिण गढ़वाल में जंगले दार मकान का प्रचलन सन 1940 के बाद ही अधिक बढ़ा तो कहा जा सकता है यह जंगलेदार निम दारी स्वतंत्रता के पश्चात ही निमृत हुयी होगी व स्थानीय ओड व बढ़ई रहे होंगे।

अंत में कहा जा सकता है कि जोत सिंह -जितार सिंह की जंगलेदार निमदारी में ज्यामितीय कला उभर कर आयी है। मकान में बड़ी होने या वृहद रूप होने से भव्यता आयी है।

सूचना व फोटो आभार: विवेका नंद जखमोला

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020