गौं गौं की लोककला

जौहर घाटी के बरफू गाँव के मकान में' ढुंगकटण ब्यूंत ' की पाषाण कला

सूचना व फोटो आभार : शुभम मानसिंगका (इंटरनेट )

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 164

जौहर घाटी के बरफू गाँव के मकान में' ढुंगकटण ब्यूंत ' की पाषाण कला

( हिमालयी ' ढुंग कटणौ ब्यूंत ' व 'पगार चिणनौ ब्यूंत ' तकनीक का कमाल )

गढ़वाल, कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में पाषाण उत्कीर्णन कला - 164

संकलन - भीष्म कुकरेती

इस लेखक का विषय मकान में काष्ठ कला है ना कि पाषाण कला किन्तु जब इस लेखक को जब इंटरनेट में खोज करते पिथौरागढ़ के बरफू गाँव में ध्वस्त मकान का चित्र मिला तो इस मकान को सामने लाने से न रह सका। 1962 से पहले भारत तिब्बत व्यापार मार्ग में स्थापित बरफू गाँव कभी आबाद गाँव था व रौनक दार गांव था तब बरफू में मिटटी पत्थर व लकड़ी के मकान थे अब चीनी अड़ंगा के कारण तकरीबन खंडहर हो चुके हैं। इन्ही खंडहरों में से एक पत्थर के मकान अभी भी तेज बर्फीली हवाओं व बर्फ के मध्य खड़ा है और अपना इतिहास बयान कर रहा है। यद्यपि तिब्बत प्रभावित गृह शैली में मकान बहु मंजिले होते हैं यह मकान तल मंजिल तक ही सीमित है।

मकान अंदर से सम्भवतया दुखंड या तिखंड है। सामने बरामदा है व छत दो बड़ी किनारे की पत्थर की दीवारें व मध्य में तीन पाषाण स्तम्भों पर टिका है। एक किनारे की दीवार चौड़ी है। मकान में पाषाण कला की दृष्टि से मध्य के तीन पाषाण स्तम्भ ही महत्वपूर्ण हैं। पत्थर कटान हिमालयी 'ढुंगकटणौ ब्यूंत ' तकनीक पर हुआ है।

प्रत्येक स्तम्भ में कला या शैली तकरीबन एक जैसे ही है किन्तु इसे कार्बन कॉपी भी नहीं कहा जा सकता है। सभी स्तम्भ लगते हैं गोल हैं। मुरिन्ड छत का आधार लकड़ी की कड़ी है।

'ढुंगकटणो ब्यूंत; से पत्थर इस तरह काटे गए हैं व चिने गए हैं कि स्तम्भ का आकर नीचे से ऊपर मुरिन्ड तक गोल है। पत्थरों की चिनाई में हिमालयी 'पगार चिणनौ ब्यूंत ' या ' पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक प्रयोग हुआ है। स्तम्भ के आधार में पत्थरों की हाथी पांव आकृति है। हाथी पाँव आकृति के ऊपर गोलाई में पत्थर चिने गए हैं व ऊपर ड्यूल नुमा आकृति के पत्थर लगे हैं। प्रत्येक स्तम्भ में आधार से कुछ ऊपर एक ड्यूल हैं व एक ड्यूल आकृति शीर्षफलक /abacus से नीचे है वास्तव में सबसे उप्पर का पत्थर भी कुछ कुछ ड्यूल नुमा ही है। हिमालयी पत्थर कटान 'ढुंगकटणौ ब्यूंत ' तकनीक का ही कमाल है कि दो स्तम्भ की गोलाई नीचे से ऊपर तक तकरीबन एक समान है। किनारे का एक स्तम्भ दो ड्यूल के मध्य चौकोर आकृति का है।

स्तम्भों से बने ख्वाळ में लकड़ी की संरचना थी जो द्वार भी हो सकता है अर्द्ध ढकनी भी हो सकती है। तल मंजिल में बरामदे के अंदर आग जगाने की मेहराब पाषाण अंगेठी या ढुंगबड़ (पत्थर की छोटी आलमारी ) से पता चलता है की भवन में लकड़ी के काम में भी उच्च स्तर की नक्कासी हुयी होगी।

मकान के तल मंजिल के किनारे की दीवारों के या पौ चौंतरा / नींव के चौंतरा (foundation plateform ) के पत्थर भी हिमालयी ' 'ढुंगकटणो ब्यूंत ' तकनीक से काटे गए हैं व हिमालयी ' 'पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक अनुसार पत्थरों की चिनाई हुयी है।

बरफू (जोहर घाटी , पिथौरागढ़ ) के ध्वंस पाषाण मकान में पत्थर की कटाई ज्यामिति कटाई ही हुयी है व कहीं भी प्राकृतिक या मानवीय अलंकरण नहीं दिखे हैं।

बरफू (जोहर घाटी , पिथौरागढ़ ) के ध्वंस पाषाण मकान से सिद्ध होता है कि इस गाँव में 'ढुंगकटणो ब्यूंत व 'पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक उच्च स्तर की थी व कलाकार दोनों शैली के अभ्यस्त कलाकार थे। ढुंग कटण वळ व 'पगार चिणन वळ' कलाकार जौहर घाटी के ही थे इसमें शक नहीं होना चाहिए।

सूचना व फोटो आभार : शुभम मानसिंगका (इंटरनेट )

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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