"' तिहत्तर साल का जवान "

तालाबंदी तो है ही,लेकिन हमारी सोसायटी कोरोना महामारी के अन्तर्गत होट स्पाट घोषित के कारण हम लोगों का घर से बाहर जाना बंद है। रोजमर्रा का सामान शासन- प्रशासन द्वारा सोसायटी के गेट के अंदर ही मंगवा कर बंटवाया जा रहा था। आज‌ प्रशासन की मदद से मुख्य गेट के अंदर ही सब्जी सप्लाई की गई। छह छह फीट की दूरी पर खरीददार खड़े थे। तो सबको एक एक किलो आलू , प्याज , टमाटर अौर आधा किलो या एक पाव दो सब्जियां दी जा रही थी।

बहुत लंबी लाईन थी। हम भी थैला लेकर लाइन में खड़े हो गये। क्या करें पत्नी का स्वास्थ्य कई महीनों से ठीक नहीं अौर सुपुत्र अपनी विडियो मीटिंग में । आजकल कोरोना की वजह से घर से ही काम कर रहा है पर मीटिंग विडियो पर लगाता चलती रहती हैं। खैर मुखचय विषय पर आते हैं जी । वही चार दिन के बाद सब्जी जो आई थी अौर फिर चार दिन बाद जो आयेगी।

लाइन इतनी लम्बी थी कि दो घण्टे में नम्बर आ रहा था।

मेरे आगे एक बुजुर्ग खड़े थे। सभी ने मास्क पहन रखे थे। छह फीट की दूरी पर ही निशान के ऊपर खड़े थे।

" बहुत लम्बी लाइन है। मेरे जैसे साठ साल के आदमी कैसे धूप में खड़े रहेंगे दो घण्टे । " मैने अपने आगे खड़े बुजुर्ग को सुनाते हुए कहा।ताकि बुजुर्गों को इकट्ठा कर आगे जाकर पहले सामान ले लें।

"जब तिहत्तर साल का जवान होने पर मैं खड़ा हो सकता हूँ। तो आप क्यों नहीं" वह बुजुर्ग बोले। मुझे अपने

आगे-पीछे खड़े लोगों के मास्क हंसी से हिलते हुए साफ नजर आ रहे थे। गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि आगे बिना लाइन की सब्जी लेने की मेरी स्कीम फेल हो रही थी । शर्म के मारे मैं अपना मास्क ठीक करने का बहाना बनाकर नीचे देखने लगा। दूर तक नज़र घुमाकर देखा कि अौर भी कई बुजुर्ग पुरुष व महिलाएं खड़ी थी।

मुझे दूसरी तरकीब सूजी तो तुरंत मोबाइल फोन निकाला अौर प्रशासन के उस अधिकारी को मैसेज किया जिसकी ड्यूटी इस होट स्पाट पर राशन- सब्जी के आपूर्ति की थी , " वरिष्ठ नागरिक इतनी देर दो घण्टे तक सब्जी के लिए इतनी लम्बी लाइन में कैसे खड़े रह सकते हैं? उनके लिए या तो फ्लैट में भिजवा दिया जाये ।"

" हमारे पास इतनी लेबर नहीं कि आपके दो हजार फ्लैट में सामान भिजवायें । गेट से ले सकते है। पर वरिष्ठ नागरिक को तो आना ही नहीं चाहिए। " उधर से मैंसे ज आया।

" क्यों? जिन बुजुर्गों के बच्चे विदेश में है या बाहर किसी राज्य में है अौर कई के अस्पताल में ड्यूटी पर हैं । पत्नी बीमार हैं तो वह कैसे सामान लेगा "। मैने मैसेज किया।

" ठीक है मै रमेश को फोन‌ करता हूँ। जो वहाँ डयूटी पर हैं ।" उधर से मैसेज आया।

थोड़ी देर में घोषणा हुई कि जितने भी वरिष्ठ लोग हैं कृपया आगे आ जायें । उनकी लाइन अलग होगी आौर उन्हे सामान मिलेगा।

चालिस पचास बुजुर्ग महिला ,पुरुष आगे की

अोर चल दिये।

मैं भी मन ही मन‌ खुश होकर आगे की तरफ बढा ।

थोड़ी देर में देखा आगे की तरफ एक बुजुर्ग महीला व बुजुर्ग पुरुष की जोर जोर से बहस हो रही थी।

आगे पीछे के नम्बर के लिए दोनो लड़ रहे थे।

मैं उन लोगों को शांत कराने आगे बढा। मैने छह फिट की दूर से ही उस बृद्ध पुरुष को देखा जो उस लगभग पचहत्तर साल की महिला को धक्का मारकर आगे तराजू वाले के पास जाने की कोशिश कर रहा था।

" आप क्यों लड़ रहे भाई सहाब ?पीछे हो जाइए। उस महिला को क्यों धक्का दे रहे हो? जो आपसे ज्यादा बुजुर्ग पचहत्तर साल की होंगी' " मैने जोर से कहा ।

" क्यों । आप कौन हैं। चुप रहो। मैं इन से पहले दौड़ कर यहाँ पहुंच गया था। " उसने मुड़कर मेरी तरफ देखते हुए कहा। अरे यह तो वही है जो थोड़ी देर पहले मेरा मजा़क उडा रहा था कि जब बहत्तर साल का खड़ा हो सकता है तो साठ साल का क्यों नहीं।

" नहीं भाई सहाब, मैं लाइन में इनसे आगे था । लेकिन अभी दौड़ कर आगे आ गये जब हमारी अलग लाइन बनाई ।" बृद्ध महिला बोली।

" भाई सहाब, आप पीछे चलिये। वो बहिन जी पहले लेंगी " मैने कहा।

"आप कौन हैं ? मैं आपकी बात क्यों मानू?" वह बोले।

"अच्छा जब आप पीछे खड़े थे तो तब आपने ही मुझ पर टोंट कसा था कि जब बहत्तर का खडा हो सकता है तो साठ का क्यों नहीं! अौर अब क्या हुआ? आप अभी अभी सौ के हो गये क्या" ? मैने थोड़ा जोर से कहा।

" तो तुम ले लो। तुम्हें ज्यादा कष्ट हो रहा है" अब उन महाश्य ने कहा जो पहले बहुत अकड़ रहे थे दो घण्टे खड़े होने के लिए ।

" बहिन जी आप आगे आ जाइए। आप पहले लो। " मैने उस वृद्ध महिला से कहा।

तब तक रमेश आगे आया अौर बोला ," अंकल आप तो जवानों की तरह लड़ रहे हो। बहुत ताकत है । कल से मैं अलग लाइन नहीं बनवाऊंगा । " कल क्या अभी से।

" अंकल चलो पीछे। सबके साथ दुबारा लाइन में खडे हो जाअो।" उन महाश्य को पीछे धकलेते हुए रमेश चिल्ला रहा था।

मैने तो चुपचाप उस महिला के बाद सब्जी तुलवाकर थैले में डाली व पैसे देकर खिसकने में ही भलाई समझी।

बहत्तर साल का जवान मुझे गुस्से में घूरे जा रहा था।

" बहत्तर साल के जवान को क्या फर्क पड़ता है सहाब" कह कर उन महाश्य को छेडते हुए घर की तरफ चल पड़ा।