उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -56
उत्तराखंड परिपेक्ष में हलंग /चंद्रसूर की सब्जी , औषधीय उपयोग,अन्य उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में सब्जियों का इतिहास - 14
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --56
उत्तराखंड परिपेक्ष में हलंग /चंद्रसूर की सब्जी , औषधीय उपयोग,अन्य उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -14
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --556-
आलेख : भीष्म कुकरेती (वनस्पति शास्त्री व सांस्कृति इतिहासकार )
अंग्रेजी नाम -Garden Cress , Halim
बनस्पति शास्त्र नाम - Lepidium sativum
उत्तराखंडी नाम -हलंग
संस्कृत नाम -चंद्रसूर , अशालिका आदि
हिंदी नाम -चंद्रसूर
मराठी नाम -अहाळीव
नेपाली नाम -चप्सुर
हलंग सरसों जैसे 60 cm ऊंचा , बहुशाखीय पौधा होता है जिसकी कई क्षेत्रों /देसों में खेती भी होती है। उत्तराखंड में हलंग एक खर पतवार की वनस्पति है।
यद्यपि चरक संहिता व सुश्रुवा संहिता में हलंग /चंद्रसूर का उल्लेख नही है अपितु हलंग /चंद्रसूर का आयुर्वैदिक उपयोग जुकाम , स्वास रोग, त्वचा रोग, पेट की कई बीमारियों, जोड़ों के दर्द , कटे घाव भरने में सदियों से होता आ रहा है।
चंद्रसूर का जन्म स्थल शयद इथोपिया या पश्चमी एसिया है और पश्चिम एसिया में चंद्रसूर का उपयोग व कृषिकरण शुरू हुआ । जहां से यह पौधा यूरोप और हिन्द महाद्वीप में फैला। भारत में हलंग /चंद्रसूर सभी प्रांतों में मिलता है।
हलंग /चंद्रसूर भारत में प्रवेश शायद 12 वीं सदी में यूनानी /मुस्लिम वैद्यों से द्वारा हुआ। 12 वीं सदी पश्चात ही उत्तराखंड में प्रवेश हुआ होगा और सम्भवतया 1400 के करीब ही प्रवेश हुआ होगा।
चंद्रसूर नाम सोलहवीं सदी में पड़ा और भावप्रक्ष निघंटु में चंद्रसूर का उल्लेख है।
हलंग /चंद्रसूर के बीजों से तेल निकलता है जो वसा के लिए प्रयोग होता है।
इसके बीजों को भिगोकर सूप , करी , खीर बनायी जाती है . खीर माताओं को दिया जता है जो दूध बढाने में कारगर सिद्ध होता है .
बीजों को भिगोकर स्प्रोउट निकलने पर सलाद या किसी सब्जी में भी प्रयोग होता है
बीज गार्नेशिंग /भोजन सजाने हेतु भी प्रयोग होता है .
सब्जी
हलंग की सब्जी बनाने के लिए जब पौधा 10 cm ऊंचा होता है तो काट दिया जाता है।हलंग की सब्जी वैसी ही बनाई जाती है जैसे मछाई के कोमल , पत्ती युक्त डंठलों की सब्जी बनाई जाती है , चंद्रसूर सलाद के रूप में भी उपयोग होता है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 11 /11/2013