गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

फतेहपुर गढ़वाल में बारजा /बालकनी में काष्ठ कला , अलंकरण

सूचना व फोटो आभार : प्रशांत पंसारी (फोटोग्राफर ) (एक्जोटिक उत्तराखंड )

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 51

फतेहपुर गढ़वाल में बारजा /बालकनी में काष्ठ कला , अलंकरण

शीला पट्टी , गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला - 6

दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 51

संकलन - भीष्म कुकरेती

फतेहपुर वास्तव में ब्रिटिश काल में लैंसडाउन सेना विभाग बन जाने से से दुगड्डा ब्लॉक का मिख्य भाग ही नहीं बना बल्कि गढ़वाल के लिए । फतेहपुर दुगड्डा ब्लॉक याने कोटद्वार समृद्ध गाँव है। फतेहपुर (दुगड्डा ब्लॉक ) से एक चित्तार्शक फोटो Exotic Uttarakhand group से मिली जिसे फोटोग्राफर प्रशांत पंसेरी ने पोस्ट की। मैंने जब पंसेरी से भवन मालिक के बारे में सम्पर्क किया एक महत्वपूर्ण स्थल बना जहां सेना के घुड़शाल थे तो उनका कोरा कोरा जबाब था 'पता नहीं ' पर फतेहपुर की बात उन्होंने स्वीकार की भवन फतेहपुर दुगड्डा में ही है। ऐसे मकान फतेहपुर , ऐता अदि होना कोई आश्चर्य। इस अनाम मालिक के भवन व आम ग्रामीण गढ़वाल के भवन में अंतर् साफ़ झलकता है कि भवन की खिड़किया ऊंची व चौड़ी हैं जब कि पहाड़ी गढ़वाल में गाँव भवन में खड़किया बिरली ही होती थी। जड्डू /शीट के कारण खिड़की का रिवाज था ही नहीं यदि था भी तो बहुत छोटी खिड़कियां निकाली जाती थी और वास्तव में खड़कियों का रिवाज न था जो कि सुकई गाँव (बनगर स्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) में ब्रिटिश काल से पहले के भवन से भी साबित हो जाता है।

फतेहपुर वास्तव में भाभर के निकट का गाँव है तो सर्दी उस तरह की नहीं पड़ती जैसे कि पहाड़ी गढ़वाल में। दूसरा भवन में तल मंजिल व खिड़की व पहली मंजिल पर बड़ी खिड़की व बुर्ज देखकर साफ़ अनुमान लगता है कि मकान व काष्ठ कला पर बिजनौर का साफ़ प्रभाव है। पहली मंजिल पर बारजा /बालकोनियां या खड़की में छजजा बिजनौर से ही प्रभावित हुयी होंगी।

तलमंजील की खिड़की आम बड़ी खिड़की है और कोई छज्जा बालकोनी नहीं है। पहली मंजिल पर खिड़की पर छज्जा है मकान की दायी ओर। यह भी पहाड़ी मकानों से कुछ अलग ही है कि इस ओर दो खिड़की है।

खिड़की में कायस्थ छज्जा आगे की और है व लकड़ी के ही काष्ठ दासों पर टिका है। खड़की छज्जे काष्ठ पट्टिकाओं , व दासों में कोई कला /अलंकरण उत्कीर्ण नहीं हुआ है बा सजयामितीय कटान है।

फतेहपुर के इस भवन की खिड़की के काष्ठ छज्जे के चारों तरफ अभी चार स्तम्भ हैं किन्तु अवश्य ही पांच काष्ठ स्तम्भ /columns रहे होंगे दो दीवार के लगते व तीन आगे सामने जैसे अभी भी सामने के स्तम्भ विद्यमान हैं।

प्रत्येक स्तम्भ में कटाई व उत्कीर्ण एक जैसे ही हुआ है। प्रत्येक स्तम्भ आधार जो काष्ठ छज्जे पर टिका है थांत कार्य पट्टिका नुमा या जैसे क्रिकेट बैट ब्लेड जैसा है व इस थांत कार्य पट्टिका नुमा आकृति पर ज्यामितीय अलकनकरण हुआ है। ऊपर की ओर जब थांत कार्य पट्टिका आकर समाप्त होता है तो गोल - डीले /धगुले आकृति उत्कीर्ण है जो शोभा देते हैं। धगुले या डीले से स्तम्भ कुम्भी आकार लेता है व फिर गोलाई लिए मोटाई धीरे कम होती जाती है फिर जहां गोलाई लिए मोटाई कमतम है वहां डीला या ढगला है फिर कोई फूल दल नुमा आकृति उभर कर आती है व यहीं सर फिर स्तम्भ थांत कार्य पट्टिका का (क्रिकेट बैत ब्लेड ) अकार ग्रहण कर लेता है व बाद में छज्जे के छत से मिल क्र शीर्ष बनता है।

स्तम्भ शीर्ष के ऊपर बरखा /घाम रोकु काष्ठ पट्टिका है जिस पर नीचे की ओर त्रिभुजाकार कटाई है जो ज्यामितीय अलकंरण है व भवन की शोभा बढ़ाती है। कायस्थ छज्जे की ऊपरी छत पर पहाड़ी स्लेटी पटाळ हैं।

खिड़की व काष्ठ छजजा व अलकनकरण उमदा ही नहीं अपितु भवन की शोभा बृद्धिकारक हैं।

मकान तो परम्परगत पहाड़ी शैली का है किंतु बड़ी खिड़की व उस पर काष्ठ कलाकारी पर अवश्य ही बिजनौर का प्रभाव है और हो सकता है बढ़ई बिजनौर से ही बुलाये गए हों।

सूचना व फोटो आभार : प्रशांत पंसारी (फोटोग्राफर ) (एक्जोटिक उत्तराखंड )

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020