गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

क्यार (बिछला ढांगू ) के मोहन लाल बड़थ्वाल की चौकोर तिबारी में काष्ठ कला उत्कीर्ण

सूचना व फोटो आधार - अभिलाष रियाल व कमल जखमोला Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 23


Traditional House Wood Carving Art in Tibari of Mohan Lal Barthwal from Kyar, Bichhla Dhangu Garhwal, Himalaya

ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -15

Traditional House Wood Carving Art of Dhangu, Garhwal, Himalaya -15-

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 24

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 24

संकलन - भीष्म कुकरेती

क्यार बिछला ढांगू में बड़थ्वालों व अन्य जातियों का गाँव है। अगर भौगोलिक दृष्टि से अध्ययन करें तो साफ़ पता चलता है कि कभी क्यार बड़ेथ (मल्ला ढांगू ) का ही भाग रहा होगा। भूस्खलन या अन्य भौगोलिक कारणों से क्यार आज बड़ेथ से बिलकुल अलग गाँव दिखता है। क्यार के आस पास के गाँव कौंदा , तैड़ी , हथनूड़ , कुठार व नैरुल -कैंडूळ हैं। वैसे सिलोगी (कड़ती ) की सीमा भी क्यार से लगती है। कोटद्वार में प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्स्क व लेखक डा. चंद्र मोहन बड़थ्वाल क्यार के ही हैं।

क्यार के मोहन लाल बड़थ्वाल की तिबारी की सूचना व फोटो मिली है। तिबारी कभी अपने भव्य रूप में रही होगी। तिबारी में कई कलायुक्त उत्कीर्ण के दर्शन आज भी होते हैं।

क्यार के मोहन लाल बड़थ्वाल की तिबारी भी आम तिबारियों जैसे पहले मंजिल पर है व दुभित्या (अंदर के कमरा व बाहर दूसरा कमरा ) मकान पर स्थापित है। तल मंजिल के ऊपर पाषाण छज्जे को टेक देने हेतु नक्कासीदार पत्थर के दास (टोड़ी ) लगे हैं। पाषाण दासों पर नक्कासी ' हय मुख: ' की छवि (perception ) प्रदान करती हैं। ऊपर छत के आधार काष्ठ छज्जे के काष्ठ दास पर विशेष नक्कासी नहीं है।

तिबारी चौकोर आयताकर काष्ट तिबारी है। अर्थात तिबारी में कोई मेहराब। तोरण मोरी , चापाकार मुख /मोरी नहीं है। तिबारी की कला उत्कृष्ट किस्म की है। तिबारी में आम तिबारियों जैसे चार स्तम्भ , खम्भे, सिंगाड़ (columns ) हैं व प्रत्येक स्तम्भ उप छज्जे /दहलीज देळी के ऊपर पाषाण चौकोर आधार पर टिके हैं। अन्य आम तिबारियोंजैसे मोहन लाल बड़थ्वाल की तिबारी के स्तम्भ आधार कुम्भी। तुमड़ी (उलटे कमल दल से बना ) नहीं हैं। ना ही आम तिबारियों जैसे स्तम्भ पर कुम्भी के बाद वाला उभरा , वाला डीलु (गुटका , इंढोणी या wood plate ) जैसे कोई आकृति है। हाँ स्तम्भ के आधार के बाद वर्टिकली स्तम्भ पर क्षीण डीलु आकृति देने की कोशिस है पर यह डीलु उभर कर सामने नहीं आये हैं।

प्रत्येक स्तम्भ अधोलंब रूप (vertically ) में तीन प्रकार के कला भागों में विभक्त है। एक किनारा वाले भाग में नीचे से लेकर ऊपर तक लता व पुष्प आकृतियां उत्कीर्ण हुयी है। मध्य भाग उभार उत्कीर्ण है व दुसरे किनारे के ख्म्भों सिंगाड़ पर भी नीचे से ऊपर तक वानस्पतिक /प्रकृति जन्य कृति उकेरी (उत्कीर्ण ) गयी है। सभी चार सिंगाड़ ऊपर एक कलायुक्त /नक्कासीदार पट्टी याने स्तम्भ शीर्ष से जुड़ जाते हैं। स्तम्भ शीर्ष पट्टिका पर ज्यामितीय व प्राकृतिक अंकरण उत्कीर्ण हुआ है। स्तम्भ शीर्ष पट्टिका मुंडीर के ऊपर एक उभरी पट्टी है जिस पर अलंकरण हुआ है। इस पट्टी के समांतर ऊपर एक और चौखट पत्ते है जिस पर कुछ पर्तीकात्मक (आध्यात्मिक या अन्य ) वानस्पतिक अलंकरण हुआ ही है साथ ही ऊपर छत छज्जे के दासों (टोड़ी ) के तल भाग भी दिखाई देते हैं या कला हेतु जोड़े गए हैं। इस पट्टिका के ऊपर की कड़ी पर छत के काष्ठ छज्जे के दास टिके हैं। प्रत्येक काष्ठ दासों के मध्य अलग अलग कलाकृतियों के दर्शन होते हैं व चक्षु आनंद देने में सक्षम हैं। इन दासों के मध्य छह प्रकार की कलाकृतियां इस पट्टी पर उकेरी गई हैं। दास मध्य स्थलों पर वानस्पतिक जैसे चक्राकार पुष्प , कुछ कुछ कर्मकांड कर्मकांड में प्रयुक्त होने वाले प्र्तेकात्मक ज्यामितीय चित्र जैसे जन्मपत्री आदि में गृह रेखाएं बनाने हेतु चित्र होते हैं अतः कहा जा सकता है कि शीर्षथ पट्टी जो छत की पट्टी से मिलती है उस शीर्षस्थ ( wooden head plate ) पट्टी में आध्यात्मिक - धार्मिक (दार्शनिक spiritual symbolic ornamentation ) व वानस्पतिक(nature ornamentation) चित्र उत्कीर्ण हुए हैं।

तिबारी में कहीं भी मानवीय चित्रकारी (Figural , पशु , पक्षी , मानव अदि ) नहीं हुयी है। तीन मुख्य कलाएं उभर कर सामने आयी है ज्यामितीय , प्राकृतिक व दार्शनिक (आध्यात्मिक /धार्मिक ) कला पक्ष।

बिन चाप (मेहराब Arch ) की तिबारी होते भी यह तिबारी दर्शनीय है चक्षु आनंद दायक है जैसे साइकलवाड़ी में दिनेश कंडवाल , कठूड़ में विद्या दत्त कुकरेती की तिबारियां। जबकि कठूड़ की टंखी राम की तिबारी भी बिन मेहराब की चौकोर तिबारी है किंतु शीर्ष में पट्टियों में कोई विशेष कला नहीं हुयी है।

तिबारी क छाया चित्र से साफ़ झलकता है कि मकान की छत गिर गयी है और मकान ध्वस्त होने ही वाला है फिर कोई पठळ ले जायेगा का कोई दारु (काष्ठ ) ले जायेंगे और यह कलायुक्त तिबारी की कहानी भी ऐसे ही बिन सुने जाने समाप्त हो जाएगा जैसे गढ़वाल में सदियों पहले भव्य इतिहास भूस्खलन , भूकंप में समाप्त हुआ । आवश्यकता है कि इन तिबारियों का सर्वेक्षण हो , अध्ययन तो हो व इन्हे डिजिटल माध्यम में ही सही सुरक्षित रखा जाय।

सूचना व फोटो आधार - अभिलाष रियाल व कमल जखमोला

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020