उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -43
उत्तराखंड में रामबांस का इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास - 1
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --42
उत्तराखंड में रामबांस का इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास - 1
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --43
आलेख : भीष्म कुकरेती
Botanical Name Agave americana
स्वतंत्रता से पहले रामबांस उत्तराखंड बड़ा आर्थिक महत्व की वनस्पति थी। रामबांस से बाड़ तो लगाई जाती थी साथ में रामबांस से रेशे मिलते थे , रामबांस से कपड़े धोये जाते थे , रामबांस कई दवाइयों में काम आता था।
रामबांस के कोमल कोपलों के भाजी भी खायी जाती थी। इसके अतिरिक्त चीनी व शराब भी रामबांस से बनाई जाती थी
रामबांस बहुत पुरानी वनस्पति।
रामबांस मूलस्थान मैक्सिको , दक्सिण अमेरिका। है।
स्पेनी अन्वेषक रामबांस को यूरोप लाये।
कृषि इतिहासकार मानते हैं कि पुर्तगाल द्वारा रामबांस का प्रवेश भारत में पन्द्रहवीं या सोलहवीं सदी में हुआ।
1790 इ में रामबास या सहोदर मद्रास में बोया जाता था जिसका उपयोग रेशों के लिए होता था। विलियम वेब ने 1798 रामबांस या इसके सहोदर के रेशों से बनी रस्सी सेंत जॉर्ज फोर्ट के मिलट्री में था। 1839 तक रामबांस (बांस केओरा ) बंगाल में रेशों के लिए उपयोग होने लगा था और सेना के लोग भी रामबांस या सहोदर के रेशों की रस्सियाँ उपयोग में लाते थे।
कटक का रेजिडेंट अधिकारी मुरी ने उड़ीसा में पता लगाया कि रामबांस (Agave americana) से रेशे बन सकते हैं। मुरी रेशे दिखाने अपने हेड ऑफिस कोलकता लाया
1841 इ में अलीपुर जेल में रामबांस या इसके सहोदर के रेशों से रस्सियाँ बनतीं थीं इसी समय बुलंदशहर में भी रामबांस या इसका सहोदर उगाया गया।
सन 1890 तक भारत में रामबांस रेशेयुक्त वस्तुओं को बनाने हेतु एक मुख्य कच्चा माल बन चुका था।
उत्तराखंड में रामबांस ने अठारवीं सदी में प्रवेश किया होगा। किन्तु प्रवेश के साथ ही रामबांस प्रचार प्रसार तीब्र गति से हुआ होगा
Copyright @ Bhishma Kukreti 26/10/2013