गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

जसपुर (ढांगू ) गढ़वाल में सौकारुं की काष्ठ तिबारी में भवन काष्ठ कला अंकन

सूचना व फोटो आभार : सारथी जखमोला

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 22

गुदुड़ में आदित्यराम जखमोला की निमदारी में काष्ठ कला अंकन

Traditional House Wood Carving of Gudur (Malla Dhangu) , Uttarakhand

गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -14

Traditional House wood Carving Art of Dhangu , Garhwal, Himalaya -14

-

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 23

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 23

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

गुदुड़ गाँव यद्यपि भौगोलिक रूप से डबरालस्यूं याने हिंवल नदी पार है किन्तु प्रशाशनिक हिसाब से मल्ला ढांगू का भाग है। कारण है कि जब डबरालस्यूं को ढांगू पट्टी से विभक्त किया गया तो खमण , गुदुड़ व डळयण तीनो गैर डबराल गाँवों को ढांगू में ही रहने दिया गया। दूसरा मत है कि डबरालों लों ने खमण जसपुर के (बाद में ग्वील ) कुकरेतियों को दहेज़ में दिया था तो खमण की धरती को ढांगू में ही रहने दिया गया।

वास्तव में गुदुड़ गाँव गटकोट (मल्ला ढांगू ) का ही हिस्सा है और वहां गटकोट के जखमोला परिवार बसा था व अब कुछ बड़ा गांव है। गढ़वाली से हिंदी - अंग्रेजी शब्दकोश के सम्पादक डा . अचला नंद जखमोला गुदुड़ गाँव के ही हैं।

इस लेखक को गुदुड़ से एक निमदारी याने उपरिमंजील पर जंगलेदार मंजिल की सूचना मिली जो आदित्यराम जखमोला की निमदारी कहलायी जाती है। ढाई मंजिला (तिपुर ) मकान भव्य दीखता है। तल मंजिल व पहली मंजिल पर प्रत्येक मंजिल में दस स्तम्भ या खम्बे दिखाई देते हैं। ऊपर भी व तल मंजिल में इन स्तम्भों से बने नौ नौ मोरी दिखाई देते हैं

तल मंजिल के स्तम्भों /खम्भों में पहली मंजिल का काष्ठ छज्जा कड़ी में टिका है. फिर छज्जे की कड़ी ऊपर पहली मंजिल के दस काष्ठ स्तम्भ या खम्भे खड़े हैं। पहली मंजिल के स्तम्भ क्रिकेट बैट नुमा है व नीची की और बैट का प्लेट है व ऊपर जैसे हत्था (shaft ) हो। ऊपर शाफ्ट का कड़ी तीसरी/ढाई मंजिल की छत की छज्जा पट्टी से मिल जाते हैं व तीसरी मंजिल या ढाईवीं मंजिल की छत को टेक देने हेतु इन स्तम्भों पर ब्रैकेट या टिक्वा लगे हैं। पहली मंजिल के स्तम्भों के निचले भाग में जंगले /रेलिंग फिट हैं.

तिमंजल /तिपुर का छज्जा तीन से ढका है याने यह छज्जा प्रयोग में नहीं आता है।

सभी स्तम्भों , ब्रैकेटों /टिक्वाओं , स्तम्भ कड़ियों (Shaft of Column ) , दासों (टोढ़ी ) , पट्टियों , खिड़कियों दरवाजों के व अन्य द्वारों में केवल ज्यामितीय (Geometrical ) कला के दर्शन होते हैं , कहीं भी प्राकृतिक या मानवीय (figurative ) कला के दर्शन नहीं होते हैं।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गुदुड़ में आदित्यराम जखमोला की निमदारी ज्यामितीय कला की दृष्टि से शोभायुक्त निमदारी है और जिसमे कोई प्राकृतिक या मानवीय कला अंकन नहीं है। यहां तक कि शगुन हेतु कोई प्रतीकात्मक कला वस्तु भी नहीं लगे हैं या ऐसा कुछ अंकन हुआ है ।

तिबारी की शक्ल , संरचना , संघटन , सजावट, सलीका से लगता है कि गुदुड़ के आदित्यराम जखमोला की निमदरी की सृष्टि सन साठ के पश्चात ही हुयी होगी। चूँकि इस निमदारी में कोई विशेष कला उपयोग नहीं हुआ है तो साफ़ है कि स्थानीय ओड व बढ़इयों ने निमदारी निर्मित की है।

सूचना व फोटो आभार : सारथी जखमोला

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020