" मास्टर जी- मेरे प्रेरक"

बात 1971-72 की है । गांव के मास्टर उमेश भट्ट भाई जी हमारे साथ ही सरोजिनी नगर , दिल्ली में रहते थे।वह सेन्ट्रल स्कूल नजफगढ़ , दिल्ली में गणित के अध्यापक थे। मैं उन्हें भैजी नहीं अपितु मास्टर जी पुकारता था। मास्टर जी बहुत ही कड़क इंसान थे अौर उतने ही अनुशासित ।दिल्ली की दिसम्बर की कड़कती सर्दी में भी सफेद रंग की हाफ़ बुशर्ट व सलेटी पेंट एंव राजस्थानी जूती ही उनका पहनावा था। बारह महिनों मास्टर जी की यही पौशाक थी। सुबह चार बजे उठना , पांच बजे दिसम्बर में भी ठण्डे पानी से नहाना , साढे पांच बजे घर से स्कूल के लिये रवाना हो जाना उनकी दिनचर्या थी। रात को दस बजे घर वापिसी। दिन में दो बजे के बाद दो चार जगह टयूशन पढाते थे। मास्टर जी गणित के अध्यापक थे।

मेरी तो उन दिनों परीक्षा की घड़ी थी। मास्टर जी सुबह अपने साथ ही साढे चार बजे मुझे भी उठा देते थे । सुबह पांच बजे ठण्डे पानी से स्नान का आदेश मुझे मिल जाता था। फिर दिन के लिये होम वर्क एंव रात को दस से ग्हारह बजे तक गणित की मेरी क्लास ली जाती थी । कान तो रोज ही गर्म होते थे मेरे। गांव से पांचवी पास करके दिल्ली आने के बाद पिताजी ने मुझे उनके सुपर्द कर दिया था । बाप रे बाप ! मैं जान बूझ कर रोज जल्दी रजाई अोढ कर सो जाता था पर मास्टर जब भी रात को घर आते गिलास से ठण्डा पानी डालकर मुझे उठा देते। स्कूल जाने से पूर्व मुझे दिया गया होमवर्क जांचते । गलत होने या न करने पर कान गर्म । पिताजी जानबूझकर रजाई के अन्दर मुंह दूसरी तरफ करके लेटे रहते। उन्होने तो मेरी भलाइ के लिए मास्टर जी को अपने साथ रहने के लिए बुलाया था।

मास्टर जी के पास सामान के नाम पर एक छोटी अटेची थी। बस दो जोड़ी एक ही रंग के कपड़े वही सफेद हाफ शर्ट व सलेटी रंग की जोड़ी, दो जोड़ी राजस्थानी जूते! बस यही तो था उनका सामान। साधारण संस्कारी विद्वान व्यक्ति , बाकी फालतू किसी से बातचित नहीं । गंभीर चेहरा।

मैं रोज भगवान से प्रार्थना करता कि उनकी बदली दिल्ली से बाहर हो जाये क्यों कि एक दिन वो पिताजी से बोल रहे थे कि शायद उनका ट्रांसफर सिक्किम हो जाये जो कि उन्होने मांगी थी।

एक दिन मैने पूछ ही लिया, "गुरूजी, आपकी बदली नहीं हो रही"?

" तेरे को क्या जल्दी है? मास्टर जी ने कहा।

"नहीं, बस ऐसे ही पूछ रहा हूं। " मैने कहा

"अच्छा, गुरु जी, ये बताआोे !आप के यहां तो सारे स्टूडेंट्स जाट होंगें। आप कैसे कनोट्रोंल करते हो ? उनको। वो तो उम्र में अौर शरीर मे़ भी ताकतवर होते हैं । मेरा दूसरा प्रश्न था ।

"हां ! मेरा एक सिद्धांत है। पहले दिन ही मैं पता कर लेता हूं कि 11वीं पास करके जो जो विधार्थी 12वीं मे आये हैं उनमें शरारती कौन हैं? तो पहले दिन ही उनकी किसी न किसी बहाने से दब के धुनाई कर लेता हूँ। जब सारे सरदार ही पहले दिन ही पिट जाते थे तो बाकी अपने आप ही डर जाते थे. सारे साल आराम" बाकी कोई कुछ बोल ही नहीं सकता. "गुरू जी ने मंत्र दिया.

उसके ब‍ाद मास्टर जी सिक्किम ट्रांसफर् हो गये अौर रिटायरमेंट तक वहीं रहे. आज वो इस दुनिया में नहीं हैं पर उनका सिद्धांत मैने जीवनभर अपनाया ।

जो सबसे कठिन काम होता था उसको सबसे पहले करना।

मास्टर जी मेरे लिये भाई सहाब या शिक्षक ही नहीं बल्कि जीवन प्रेरक भी हैं। आज भी जब मैं किसी अध्यापक से मिलता हूँ या फेसबुक के माध्यम से जानता हूँ तो मुझे मास्टर जी याद आ जाते हैं। आज गुरुजी ब्रह्मलोक में हैं । मेरी किस्मत में नहीं था कि मैं आखिरी समय में गुरु जी से मिल पांऊ पर उनका अनुशासन अौर अन्य सिद्धांत जीवन में बहुत काम आये ।आज मैं जीवन में जो कुछ भी हूं उन जैसे गुरूअों की शिक्षा तथा आशीर्वाद के कारण।