बचपन के खेल-खिलौने

गढ़वाल के लोक-जीवन में उमंग भरने वाला प्रकृति का संग बचपन में भी खुशियों के रंग भर देता है। यही कारण है कि यहाँ बच्चों के अधिकांश खेल प्रकृति की गोद में खेले जाते हैं और खिलौने भी प्रकृति प्रदत्त उपहार ही होते हैं। कभी दूब घास तथा फूलों के गहने बनते हैं तो कभी पेड़ों के पत्ते और छोटे पत्थर बर्तनों का काम करते हैं और फिर इन पर परोसे जाते हैं हिंसर, किनगोड़, काफळ, करोंदे, घिंघारु आदि विभिन्न पकवानों की तरह। गढ़वाल में ऐसे खेल-खिलौने इस प्रकार हैं :-

  • गारा/बट्टी- बच्चों के द्वारा खेलने के लिए बनाए गए पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जिन्हें बैठकर हाथों से खेला जाता है।
  • कूड़िभंडि/चुलिभंडि- पत्थर-लकड़ी से घर बनाने का खेल।
  • कौं-कौं/चूं-चक्की- एक के ऊपर दूसरी लकड़ी रखकर बनी बच्चों की चरखी।
  • अंटि- बच्चों के खेलने की काँच की गोलियाँ।
  • अट्ठा/पिट्ठू- बच्चों का एक खेल जिसमें छोटे-छोटे आठ पत्थरों का ढेर बनाते हैं।
  • पंचपथरी- पांच पत्थरों का एक खेल जिसमें कपड़े की गेंद से मारा जाता है।
  • घुरणी- लकड़ी के टुकड़े के बीच में दो छेद करके धागा डालकर बनाया गया खिलौना।
  • फिंफरी- हरे पत्तों को होंठों पर रख कर सीटी बजाना।
  • पिच्चड़- कागज के टुकड़ों का खेल।
  • गिल्ली-डंडा- गुल्ली-डंडे का खेल।
  • घिसड़पट्टी/रड़ाघुस्सि- फिसलन वाला ढलवाँ पत्थर जिसके ऊपरी सिरे पर बैठकर बच्चे फिसलते हुए नीचे आते हैं।
  • फोबती- एक खेल जिसमें पीठ पीछे हाथों को पकड़ कर गोलाई में घूमते हैं।
  • गुत्थि- जमीन में एक छोटा-सा गड्ढा करके कुछ दूरी से उसमें सिक्के डाले जाते हैं। गड्ढे में गिरे सिक्के खेलने वाले के होते हैं। बाहर गिरे सिक्कों पर भी एक छोटे पत्थर से निशाना लगाया जाता है।
  • खुणखुणि- हिलाने से बजने वाला बाजा।
  • रिंगापत्ति- इस खेल में बच्चे एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर गोलाई में तेजी से घूमते हैं।
  • लुकाछिपि- बच्चों का एक खेल जिसमें कुछ बच्चे छिपते हैं और कुछ उन्हें ढूंढ़ते हैं।
  • सागर/ऐच्चि-दुच्चि- इस खेल में बच्चे जमीन पर छह वर्गाकार खाने बनाते हैं और एक छोटे पत्थर को इन खानों में फेंकते हैं तथा एक पाँव से आगे बढ़ा जाता है।

(साभार- हिंदी गढ़वाली अंग्रेजी शब्दकोश- रमाकान्त बेंजवाल एवं बीना बेंजवाल, संरक्षण आधार- अरविंद पुरोहित)