हम्हर शास्त्रों मा मुख्य रूप से-
ब्रहम पु., पदम पु., विष्णु पु., वायु या शिव पु., भागवत पु., नारद पु., मार्कण्डेय पु., अग्नि पु., विष्य पु., ब्रहमवैत पु., लिंग पु., वराह पु., वामन पु., कूर्म पु., गरुड़ पु., मतस्य पु., ब्रहमांड पु. अर स्कंद पुराण यो अठारा पुराण अर इतगै (अठारै) उपपुराण भि मान्य छन ।
पर म्यारा हिसाब से एक पुराण होरि हूण चैंद वेकु नौ ह्वे सकंद 'झरक' । जी हाँ झरक पुराण, किलैकि यो मनखि तै सदनि अफ दगड़ अळझै कि रखंद । जो छ त सामान्य जिंदगी मा हाळ त्वड़ै क नौ छ पर आम जीवन मा पुराण लैक छैंच । झरक की खैर मनखि तै सिर्फ मैसूस हूंद बकै होरि कुछ ना । झरक तै पुर्याणा खुणि मनखि भारि कैबै भि करद अर कतगै बगत भारि चबलट भि । झरक वी हूंद जो आम बोलचालै भाषा मा बोझ मन्ये जयेंद ।
पृथि मा मनख्यूं तैं वुन त कतगै बानि झरक हूंदि । जन खाणा की झरक, पीणा की झरक, सीणा की झरक अर सबसे ठुल्लि झरक हूंद निझर्क कै जीणा की झरक । हर झरक इतगा करकरि हूंद कि मनखि जखम बटि होश संभलंद वखमै बटि किस्तों मा झरक तै निबटाण शुरु कैर दींद ।
बिन्सरि मा सबसे पैलि फारिग हूणा झरक । वांक बाद चस्स ठंड़ू अर निवतु या मनततु गरम पाणी ल नाणी धूणी कना झरक । फिर पूजा -पाठ, घाम द्यब्ता तै पाणी चढ़ाणा झरक । तब गौळि बुथ्याणा कु एक कुळा फीकी-मिट्ठी च्या तरकाणा झरक । भ्यलि, चिन्नी, दूध, गैस-लखुडु क्य- क्य अर कतग- कतग चा इन भि हैंकि बानि झरक समेत नै पुरणि झरक निबटाण प्वड़दि । वांक बाद कळ्यो रव्टा निमाड़ि धुँया- अणधुँया लारा लत्ता छटयांणा अर छळयाणा झरक ।
फिर रोजा कि वी चक्करापति वलि ड्यूटी, ध्याड़ी धंधा मल्लब अपड़ कारि बारि पुंगड़ि, औपिस, इस्कोल, जाणा झरक । औपिस वलुं तै बॉस कु बतैंया काम निबटाणा झरक । नौन्याळों तै इस्कोल जाणा झरक । मास्टरों तैं कोर्स पुर्याणा झरक । गारजिनों तै नौनों फीस, ड़रेस- बस्ता, किताब- कॉपी, प्यन, पिंन्सल-रबड़, पेपर अर रिजल्ट की झरक । गुर्ज्युं तैं डीए-पीए बढ़णा अर सरकरि छुट्टि निमड़णा की झरक ।
मरीजों तैं अंक्वे दवै- दारु बान भलु डाग्टर खुज्याणा झरक । सरकरि डाग्टरों तै प्राबेट मरीज निबटाणा झरक । गरीब गुर्बों तै छत्तीस बानि बिमर्युं मा सरकरि इक्या दवै घुळाणा झरक । कखि - कखि दूर दराज सरकरि हस्पतालों मा अभि भि वी लल्लंगी पिल्लंगी दवै चलणी छन जो कभी कै जमन बन बनि पिट़ंगा, फ्वाड़ा-फूंन्सा, घुंणदु, उंद-उब, मुंड़ रिंगण, ड़ौ कम कना अर नकसीर, बयळु, अंजण्या हूण मा भि दिये जयेंद छै ।
सच मा झरक भि जबरि तक पुर्येंदि नि छ तबरि तक इतगा घरि हूंद कि इन लगंद जन अभि त क्वी हाळ ही नि टूटि । हर छ्वटि बड़ी झरक अपड़ आप मा समोद्र मंथन से कम नि हूंदि जबरि तक वी झरक तै मुकैयै नि जा । झरक मुक्याणा खुणि भि मनखि तै तन - मन - धन से चौबीस घंटा हर तरीका से औनलैन रैण प्वड़ंद । नथर तबरि तक मनखि अफ्तैं मोहमाया जिलाणा झरक बटि बगतल छड़ै ही नि सकदु ।
हळया तै निसुड़ु, बंदौळु, लाट, जुआ, च्यूळु, म्वाळा क जुगाड़ कन प्वड़द मल्लप हैळ सज्याण से ल्हेकि लगाण तका झरक भि पुंगड़यू बाण से लेकि बूतण तक रैंद । वांक बाद दंदौळु भि सज्याण से लेकि लगाण तक किळड़ा, मूंड़ी, हथनड़ा, लाट च्यूळु निखुळण से लेकि मिसाण तक, सब चीजी कि झरक रैंद । ग्वैरेळ तै गोर चराणा, हकाणा अर वूंतै बाघ से बचाणा की भारि झरक रैंद ।
घसेन्यूं तै दाथी पल्याणा, ज्यूड़ा, पळ्युड़ा ब्वटणा झरक ।
डांड़ा सारी बूण बटि तिमला, तूणी, पैंय्यां, बांज, खैणा, कंड़ली, बेड़ू, तुसरु,भ्यूळ, ठ्यलुकु, बबुलु, जव्ता, कांस, सळमेड़ू, खग्सा, गाजौ, ताछी, कुमर्या, सिरौ, कैर्वा, मटर्या, मुशळा, सकीना, गोगिन, बसिलु जन घास कै बानि हारु तारु ल्याणा झरक रैंदि रैंदि छ । लखड़ैळूं तैं रम्ठा पळ्यांणा अर काचि सूखी भुतगिली, डाळि रम्ठ्याणा अर छनकाणा झरक । पतरोल तैं ड़ांड़ा बचाण से जादा अपड़ि ड्यूटी बचाणा झरक रैंद ।
जन छ्वारौं तैं पट्टा सुलकिणि मारि हल्लारौलि कना झरक रैंद । वुनि कुकुर, छौली, भ्वटयूं तैं गूणि, बांदर, सौला,रिक्ख, अटरेळु (कुरसेला), स्याळ अटगाणा झरक रैंद । गूंणि बंदरौं तैं काण, मास, रयांस (लोबिया), गैथ, छीमी, कखड़ि रमकाणै, भसगाणै अर लगुलि मगुलि झंझोड़णा झरक हूंद । सुंगर अर चकोरो तैं त आदत क हिसाब से बैयां बुत्यां पुंगड़ौं मा खड़ौला खैंड़णा झरक रैंद ही रैंद छ । रिक्ख- बाघ तै भि बारामास अपड़ि लद्वड़ि तिड़ाणा झरक । बळ्दुं तै हैल लगाण से जादा ड़ुकरणा, खिर्तु कना अर चौंखेणा झरक रैंद । ढ़ेबरा बखरौं तैं कुड़ुक बुखाणा क अलावा उज्याड़ जाणा भि कुटक्या झरक रैंदि रैंद चा ।
घ्वाड़ों तै काम मुक्येकि चाणा बुखाणा की अखंड झरक रैंद । भैंसा तैं भि पाणी ढंड़ियुंद थ्वबुड़ु टिकै कि पाणी ससोड़णा खूब झरक रैंद । कुकुरों तैं त जरासि छिबड़ट मा भुक्काभुक्क कना क, बिरव्ळा अटगाणा क, ढंड़ियुंद छपतोळेणा क अर अट्टा, उप्पनों पर दंथा बिल्कणा की भारि झरक रैंद । झरक त झरक हूंद ।
ग्वीलेर तैं गौड़ि- पिजाण, भैंसी- पनफाण अर बगतल ग्वीलू कना झरक हूंद । सौरस्या बेटी तै मैत जाणा अर मैत्यु की राजि खुशि पूछणै झरक रैंद । समधी तै मैमनदरिम समद्यूंळ जाणा झरक । सासू तै ब्वारि तै काम बताणा अर नखि बता सूणाणा झरक भि हूंद । दद्दी-दाजि तै नाती नतेणा घिराणा भारि रंगमति झरक रैंद।
ब्वारि तै नै नै साड़ी मुल्याणा फिर पीको कराण अर फॉल लगाणा झरक । दाजि तै बैंक बटि पिंन्सन अपड़ कीसाऊंद सरकाणा झरक । तब कखि न्यूतू लिखाणै अर पौंछाणा झरक । सुळप्यों तैं सुलपा सुलगाण से जादा भंगलौड़ बज्यांणा अर भंगला गट्टी बणाणा झरक हूंद । जन बौळया तै बबड़ाणा झरक रैंद उनि गळादारों तैं भि गळदैं कना झरक रैंद । झांज्यूं तैं तुर्रा खुज्याणा झरक । नचाड़ौं तैं ड़ौंणा अर धौंण किस्तों मा हलाणा की नमुन्या झरक रैंद ।
जतगा वीर सिपैयों तै सदनि तन मन धन से अपडु देश बचाणै झरक रैंद उतगै नेतों तै देशा बजट मुक्याणा बिमर्या झरक रैंद । दुकानदारों तै जन झरक गरहाकों तैं मुंगर्याणा रैंद उनि सेल्समैनों तै अपडु तारगेट पुर्याणा रैंद । मल्लप मनखि तैं येन केन प्रकारेण रुप्या बिटोलणा बरमसिया झरक रैंद हि रैंद छ । स्वारा भारौं तैं बिरणि कुटुमदरि बीच मा बगैर मतलबा टंगिड़ि छिरकाणा अर इनै फुनै की उनै कैरि वूँक दिमागै धुरपळिम बैठि हैंका कूड़ि भितिरि धुँआरळि कराणा भारि झरक रैंद ।
जन पंदेरा तै पाणी अर डाळ्यूं तै सदनि फल- फूल बंटणा झरक लगि रैंद । जन प्वतळों तैं फूल चुगन्याणा अबेर हूणि रैंद । जन गितारों तै गीत सूणाणा रौंस लगद । जन अचणचक से भू लोक मा भैंचुल हूंद । जन नरसिंह द्यब्ता पश्वा फरि पंद्रह सेकिंड़ा झल झलाक आंद । उनि कवियों तैं या ल्यखदरौं तैं नै नै रचना ल्यखणा कौंकळि लगंद, खज्जी लगंद । तब ल्यखण वला अपड़ि जिकुड़ि बटि निकल्या शब्दु गंगा मा कलम देव तै अस्न्याण करैकि अपड़ रचनाधर्मिता तैं स्यवा लगंदि मतलब एक नै बानि झरक मुक्यंदि । मल्लप कभि जो काम वेद व्यास भगवान जी ल शुरू कार छौ वो काम हज्यूं तै भि चलन मा हूण हि लग्युं छ ।
या झरक यात्रा इतगा ठुल्लि हूंद कि आदिकाल से लेकि अनंत काल तक कभि पुर्येंदि नि च । मल्लब कै भि जीव क होश संभलण से लेकि माटू बणण तका झरक यात्रा सदियों बटि अफि अफ इनि चलनी रैंद ।
अथ झरक पुराण प्रथम भागस्य इति.....!
.........हरि बोल ।।