गौं गौं की लोककला

द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के बाखली युक्त मकान में काष्ठ कला अलंकरण,लकड़ी पर नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : डा . दीपक मेहता

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 195

द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के बाखली युक्त मकान में काष्ठ कला अलंकरण,लकड़ी पर नक्कासी

कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण,लकड़ी पर नक्कासी - 195

संकलन - भीष्म कुकरेती

द्वारहाट अल्मोड़ा में प्रस्तुत उपाध्याय परिवार का यह मकान ऐतिहासिक है कि यहां ऐतिहासिक पुरुष मोती लाल नेहरू ने बैठक की थी व यह मकान द्वारहाट के प्रथम विधायक मदन मोहन उपाध्याय से संबंधित भवन भी है। अपरिवर्तित मकान बाखली थी व तिपुर व दुखंड ( बहार भीतर दो कमरे वाला ) भवन था। अब एक भाग ज्यों का त्यों है व एक भाग स्व मदन मोहन उपाध्याय धरोहर में परिवर्तित कर दिया गया है। परिवर्तित हिज्जे में लकड़ी पर ज्यामितीय कटान हुआ है व भव्य बनाया गया है.

पारंपरिक बाखली भाग में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्काशी विवेचना हेतु चार भागों पर टक्क लगानी आवश्यक है -

१- तल मंजिल की खोली में काष्ठ कला

२- पहली मंजिल की बड़ी मोरी , झरोखा या छाज में काष्ठ कला

३- पहली मंजिल की छोटी मोरी झरोखे , छाज में काष्ठ कला

४- दूसरी मंजिल में खिड़की पर नक्काशी

१- द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान के तल मंजिल में खोली पर काष्ठ कला :- तल मंजिल में आम उत्तराखंडी शैली की खोली शुरू होती है व पहली मंजिल में छत आधार तक पंहुचती है। खोली में दोनों ओर सिंगाड़ (स्तम्भ) हैं व प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ) तीन तीन उप सिंगाड़ों (स्तम्भों) के युग्म से निर्मित हैं। प्रत्येक उप स्तम्भ पत्थर के देळी (देहरी ) में पत्थर आधार पर स्थापित हैं व आधार पर काष्ठ कुम्भी है फिर ड्यूल है फिर घड़ा नुमा आकृति है व उसके ऊपर उर्घ्वगामी कमलाकृति है व यहाँ से उप स्तम्भ सीधी कड़ी में परिवर्तित हो मुरिन्ड की कड़ी बन जाते हैं। परिवर्तित ससिंगाड़ कड़ी में प्राकृतिक (बेल बूटे ) की नक्काशी हुयी है। मुरिन्ड के नीचे खोली में तिप्पत्ति कटान से बनी मेहराब है। मेहराब के बहरी त्रिभुजों में एक एक अष्टदलीय फूल उत्कीर्णित हुए हैं। मेहराब के ऊपर मुरिन्ड चौखट व बहु स्तरीय है। मुरिन्ड के केंद्र में देव आकृति लगी है। मुरिन्ड के ऊपर की कड़ी में भी वानस्पतिक कटान हुआ है। मुरिन्ड के बगल में दोनों ओर दो दो दीवालगीर (brackets ) लगे हैं. प्रत्येक डेवलगीर का आधार चौकोर है व उसके ऊपर हाथी बैठा है व हाथी के ऊपर पारंपरिक कलायुक्त डंडिकायें हैं।

२- द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान के पहली मंजिल के छाज /झरोखे /मोरी में काष्ठ कला - पहली मंजिल में बड़ी मोरी या बड़ा छाज या झरोखा है। छाज में तीन दरवाजे हैं। दोनो किनारे के दो दरवाजे शानदार बेलबूटे से युक्त लकड़ी के पटिले से ढके हैं और बीच का झरोखा आधार पर बंद है व ऊपर खनकने हेतु खुला है। तीनों दर वाजों में किनारे पर दो दो स्तम्भ (सिंगाड़ ) हैं। सभी छह सिंगाड़ आकृति में बिलकुल समान हैं। प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ ) का आधार गोलाई लिए आयात आकृति में है व उसके ऊपर बेल बूटों की नक्काशी हुयी है। गोलाई लिए आयताकृती के ऊपर घड़ा आकृति है जिसका आधार भी है व गला भी है। घड़े के मुंह के ऊपर सीधा आकर्षक कमल फूल की आकृति है व कमल पंखुड़ियों के ऊपर बेलबूटे उत्कीर्ण हुए हैं। यहां से सिंगाड़ लौकी आकर ले लेता है . जहां पर सबसे कम मोटाई है वहां उल्टा कमल दल आकृति है जिसके ऊपर ड्यूल है व ऊपर कुछ कुछ अर्ध घड़े की आकृति अंकित हुयी है व इस आकृति के ऊपर बेल बूटों की नक्काशी हुयी है। इस आकृति के ऊपर अर्द्ध धनुषाकार आकृति उभरी है जिसके ऊपर बेल बोते की नक्काशी हुयी है। अर्द्ध धनुष्कार आकृति समने वाले स्तम्भ (सिंगाड़ ) के विपरीत दिशा में है। सभी झरोखों। मोरियों / खोलों के मुरिन्ड बहुस्तरीय है व तल स्तर में बेल बूटों की नक्काशी हुयी है।

बीच का खुला छाज अन्य छज्जों से थोड़ा अलग है कि इस झरोखे के मुरिन्ड के नीचे मेहराब है। मेहराब के ऊपर भी बेल बूटों की सुंदर नक्काशी हुयी है।

३- द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान के पहली मंजिल की खड़की में काष्ठ कला - पहली मंजिल में एक छोटी खड़की या छोटी मोरी भी है जिसके दोनो और एक एक काष्ठ सिंगाड़ (स्तम्भ ) हैं। छोटी खड़की /मोरी का प्रत्येक स्तम्भ मुख्य खोली के स्तम्भ का प्रतिरूप (हो बहु नकल ) है।

४- द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान के दूसरी मंजिल की खिड़की में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कटान ही हुआ है।

निष्कर्ष निकलता है कि द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान में हिंदसे मुतालिक (ज्यामितीय) , कुदरती (प्राकृतिक ) व बुत्त सुदा (मानवीय ) नक्काशी हुयी है। बाखली अपने समय भव्य रही होगी।

सूचना व फोटो आभार : डा . दीपक मेहता

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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