इन्द्रकील पर्वत

उत्तरकाशी: पर्वतों की श्रेणी में एक नाम इन्द्रकील पर्वत भी,महाभारत की जनश्रुतियों और आस्था से भरे पर्वत को भी इंतजार है धार्मिक पर्यटन के नक्शे में आने का

उत्तराखंड में पर्वतों की एक लंबी फेहरिस्त है। अमूमन पर्वत धार्मिक ,पौराणिक आस्था से भी जुड़े हैं। उत्तरकाशी जिले में एक पर्वत इंद्रकील नाम से भी हैं। जिसमे कई महाभारतकालीन जनश्रुतियां भी जुड़ी है।

पर्वत व उसके आसपास के इलाके कई पौराणिक मान्यताओं से भी जुड़े हैं। इस पर्वत की पौराणिक मान्यता,इतिहास व यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को लेकर उम्मीद की जा रही है कि यदि इंद्रकील को धार्मिक पर्यटन के नक्शे में लाया जाए तो इससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है।

इस पर्वत और यहाँ की मान्यता को लेकर एक संगठन जो कि गंगोत्री-यमुनोत्री विकास समिति नाम से है के द्वारा इंद्रकील को पर्यटन के नक्शे में लाने के प्रयास किये जा रहे हैं। समिति का मानना है कि यदि पर्यटन का सरकारी तंत्र यहाँ के महत्व को लेकर थोड़ा भी भाग दौड़ करे तो यह दर्शनीय स्थल भी धार्मिक पर्यटन में शुमार हो सकता है।

समिति के मुताबिक इंद्रकील पर्वत गंगोत्री, यमुनोत्री मार्ग के बीच पड़ने वाले धरासू से करीब 5 किलोमीटर मोटर मार्ग व उससे आगे 8 किलोमीटर पैदल दूरी यानि कुल 13 किलोमीटर दूर है। इस पर्वत से दो भागीरथी की सहायक नदियों का उद्गम भी है जिसमे एक धनपति नदी व एक गमरी नदी जिन्हें स्थानीय भाषा मे गाड़ भी कहते हैं। स्थानीय लोग इस पर्वत का नाम इदल कयान भी पुकारते हैं।

जनश्रुतियों में इस पर्वत की कई कई कहानियां हैं। मान्यता है कि इस पर्वत के शीर्ष में अर्जुन की इंद्र से भेंट हुई थी और इंद्र के कहने पर ही अर्जुन ने घाटी में भागीरथी किनारे तपस्या की थी जिसके उपरांत उन्हें महादेव के दर्शन हुए थे। यह भी कहा जाता है कि इंद्र की धरती पेट कही सभा लगती भी है तो वह इंद्रकील में लगती है। बताते है कि इस पर्वत पर एक शिला भी है जिस पर निशान भी हैं। यह निशान महाभारत की लड़ाई के दौरान के किसी हाथ का निशान लगता गया। इसके अलावा इंद्रकील से जुड़ी कई और मान्यताएं और रहस्य भी है। इंद्रकील के नजदीकी गांव चमयारी व मरगांव हैं जिनके शीर्ष मध्य पर्वत है। यहां माता राजराजेश्वरी का भव्य मंदिर भी है। यहां प्राकृतिक झरना भी है,इसके अलावा इलाका प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरा पड़ा है जिसे पर्यटन का सिर्फ व सिर्फ इंतजार है।