उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -7
जातक कथाओं में उत्तराखंडी भोजन व भोज्य पदार्थ वर्णन
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --7
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --7
History of Gastronomy in Uttarakhand -7
आलेख : भीष्म कुकरेती
जातक कथाएँ बुद्ध से संबंधित कथाएं हैं जो 300 BC से 400 BC तक लिपि बद्ध hoti रहीं हैं।
यद्यपि जातक कथाओं में उत्तराखंड संबंधी वर्णन कम मिलता है फिर भी जो भी विषय हैं वे बुद्ध काल व तत्पश्चात उत्तराखंड के सामजिक व सांस्कृतिक वातावरण के लिए सहायक सामिग्री के रूप में होता है। जातक कथाओं में अधिकतर वर्णन उत्तराखंड के भाभर का मिलता है
जातक कथाओं में उत्तराखंड की वनस्पतियाँ
वृक्ष - महावेस्सन्तरजातक में धव , अश्वकर्ण खदिर , शाल , फन्दन , मालुव, कुटज सलल , नीप , पद्मिनी वन्य वृक्षों का वर्णन मिलता है।
फल - भाभर के वनों के आम प्रसिद्ध थे . कोल , भल्लाटक , बेले, गुलर , कैथ , जामुन , फल सर्वत्र उपलब्ध थे।
कंद मूल - आलू जैसा कोई मूल, कलंब , बिलाली , तल्ल्क कंद मूल मुख्य थे।
अनाज - धान , मूंग तिल , तंदुल अदि
दूध - गाय व भैंस
शहद का वर्णन काफी मिलता है
भोजन बनाने के लिए आग का प्रयोग की बाते कहीं गईं हैं।
पशु
जंगली हिंस्र पशु - बाघ ,हाथी , भालू , भेड़िया , गीदड़ , वन कुत्ते
अन्य जंगली पशु -बंदर , गैंडा
शिकार योग्य पशु - वन गाय -बैल , वन भेद -बकरियां , सूअर , खरगोश , तरह तरह के मृग , चमर गाय
उत्तराखंड में पाई जाने वाले पक्षियों का जिक्र भी जातक कथाओं में मिलता है।
जातक कथाओं में उत्तराखंड में आखेट का भी वर्णन मिलता है
मनुष्य मांश भक्षण का भी वर्णन मिलता है।
नमक और छौंका लगना
झंगोरा व मंडुए आदि की लपसी का वर्णन मिलता है।
उत्तराखंड संबंधी जातक कथाओं में कहा गया है की तपस्वी बिना नमक और बगैर छोंके का भोजन करते थे. याने कि नमक के अतिरिक्त छौंके का प्रचालन इस युग में हो चुका था।