शकुंतला बिष्ट नायर

उत्तराखंडी थी पहली लोकसभा की सासंद शकुंतला बिष्ट नायर

शादी के बाद उनके नाम से बिष्ट सरनेम हटकर नायर लग गया और उत्तराखंडी समाज ने भी उन्हें भूला दिया। जी हां, बात हो रही है शकुंतला बिष्ट नायर की। मसूरी, देहरादून निवासी दिलीप सिंह बिष्ट की बेटी शकुंतला पहली लोकसभा के लिए 1952 में चुनी 24 महिला सांसदों में से एक थीं।

मात्र 26 की उम्र में चुनकर वे लोकसभा पहुंच गई थीं। वह दौर कांग्रेस और पं. जवाहर लाल नेहरू के था। हिंदू महासभा के टिकट पर उत्तर प्रदेश के गोंडा पश्चिम सीट से 1952 में मैदान में उतरी शकुंतला ने कांग्रेस उम्मीदवार लाल बिहारी टंडन को हरा दिया। लोकसभा में वे हिंदू महासभा की एकमात्र महिला संसद थीं। इस सीट को अब कैसरगंज के नाम से जाना जाता है।

शकुंतला बिष्ट की स्कूली शिक्षा मसूरी के विंडबर्ग गल्र्स हाईस्कूल में हुई। वहां वे केरल के अलेप्पी मूल के आईसीएस अधिकारी केके नायर के संपर्क में आई और 20, अप्रैल 1946 में दोनों ने विवाह कर लिया। इस तरह शकुंतला बिष्ट अब शकुंतला नायर बन गई। पति-पत्नी दोनों ही हिंदूवादी विचारों से प्रभावित थे। इसलिए शकुंतला हिंदू महासभा के बैनर तले राजनीति में उतर गई। बाद में नायर ने भी नौकरी छोड़ दी और भारतीय जनसंघ से जुड़ गए। शकुंतला भी जनसंघ में शामिल हो गईं। वे 1962 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की भी सदस्य भी रहीं।

भारतीय जन संघ के टिकट पर 1971 में भी शकुंतला नायर कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा पहुंची थीं। केके नायर भी बाद में जनसंघ से 1967 में बहराइच से लोकसभा पहुंचे। यानी चौथी लोकसभा में पति और पत्नी दोनों ही लोकसभा में थे।

कहा जाता है कि आईसीएस अफसर केके नायर के कार्यकाल के समय ही अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद में राम लला की मूर्ति ‘प्रकट’ हुई थी। फैजाबाद के जिलाधिकारी थे। नायर उत्तर प्रदेश कैडर के अफसर थे। इसलिए आईसीएस के तौर पर उनकी ज्यादा समय नियुक्ति उत्तर प्रदेश में ही रही । यह भी कहा जाता है कि रामलला की मूर्तियां स्थापित करने में शकुंतला की भी सक्रिय भूमिका थी। नायर दंपत्ति ने देवीपाटन व फैजाबाद क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बना दिया। शकुंतला नायर के समय मात्र 24 महिलाएं ही लोकसभा पहुंचीं थीं। यानी 1952 में संसद में महिला सांसदों की संख्या मात्र 5 फीसदी थी। जबकि 16वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 66 हो गई।