भोटिया बादाम

उत्तराखंडः कमाल का है हेजलनट यानि भोटिया बादाम

अंग्रेजी चॉकलेट वह भी स्वीट्जरलैण्ड में हेजलनट के साथ वाह आनन्द ही आनन्द ! पता चला हेजलनट तो भोटिया बादाम है और उत्तराखण्ड में खूब पाया जाता है। उत्तराखण्ड में पाये जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण पौधा भोटिया बादाम/hazelnut (Corylus avellana) के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं से अवगत करा रहा हूँ। यह एक Betulaceae कुल का पौधा है। उत्तराखण्ड में यह समुद्र तल से 1000 से 3000 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों में पाया जाता है। यह प्रमुख रूप से उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र के धारचूला, पिथौरागढ़ तथा गढ़वाल में चमोली जिलें में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।

भोटिया बादाम की खेती उत्तराखण्ड में अभी तक व्यवासयिक रूप से नहीं की जाती है, यह केवल प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। प्रतिभा चौहान, ट्रिब्यून समाचार पत्र के अंक 29 नवम्बर, 2015 के अनुसार हिमाचल प्रदेश में भी भोटिया बादाम प्राकृतिक रूप से चम्बा जिलें में पाया जाता है तथा हिमाचल सरकार ने भोटिया बादाम के औद्योगिक उत्पादन के लिए 20,000 पेड़ इटली से आयात कर किसानों को वितरित किए हैं जिसमें तत्कालीन उद्यान एवं सिंचाई मंत्री, विद्या स्टॉक ने मुख्य भूमिका निभाई, ताकि हिमाचल में भोटिया बादाम का औद्योगिक उत्पादन किया जा सके।

टर्की में भोटिया बादाम की स्थानीय स्तर पर पांच प्रजातियां विकसित की गयी हैं, जैसे : तम्बूल, यासी बादाम,शीबरी काराफिनडिक तथा हैम प्रजाति मुख्य रूप से औद्योगिक फसल के रूप में उगायी जाती है। विश्व में सर्वाधिक औद्योगिक मांग Corylus avellana की प्रजाति का है जो कि टर्की में विकसित की गयी है। टर्की के एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार Alpha-Tocopherol एवं Beta- Tocopherol सभी प्रजातियां में मुख्य अवयव के रूप में पाया जाता है। टर्की अध्ययन के अनुसार प्रति दिन 42.5 ग्राम भोटिया बादाम खाने से शरीर को लगभग 44.4 – 83.6 प्रतिशत कॉपर तथा 40.0-44.8 प्रतिशत मैग्नीज प्राप्त होता है, जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी है।

भोटिया बादाम में फालिक एसिड बादाम व अखरोट से सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है जो कि शरीर में कोशिका वृद्धि तथा कोशिका निर्माण में अत्यंत आवश्यक होने के साथ-साथ रक्त हीनता को रोकने में भी मदद करता है। भोटिया बादाम में हाल हीं में हुए कुछ शोध के अनुसार Taxol नामक रसायन के स्रोत के रूप में भी देखा जा रहा है। इसमें Taxol की मात्रा लगभग 4.2 µg/g पाया जाता है जिसको विभिन्न कैंसर रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह एक विटामिन- A (20.0 iw) तथा E (15 mg/ 100g)के साथ-साथ प्रोटीन(14.95 g/100 g), फासफोरस (290mg/100 g), कैल्शियम (114.0mg/100 g), मैग्नीशियम (163.0mg/100 g), पोटेशियम (680 mg/100 g) का महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत है।

उपरोक्त पोष्टिक गुणों के आधार पर कई अन्य खाद्य पदार्थाे में पोषक पूरक के रूप में भी मिलाया जाता है जो कि Anti oxidants का प्राकृतिक स्रोत होने के कारण आप्रकृतिक घटकों का विकल्प बन सकता है। विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार भोटिया बादाम का तेल Low Linolenic Acid होने के कारण Light ness, Good flavor एवं लम्बी अवधि तक सुरक्षित रह सकता है। यह एक olive Oil का औद्योगिक रूप से पौष्टिकता की दृष्टि एवं औषधीय गुणों के कारण बेहतर विकल्प बन सकता है। यह विभिन्न रोगों जैसे Ovarian Cancer, Breast Cancer, Lung Cancerतथा Head and Neck Carcinomas के उपचार मेंं भी प्रयोग किया जाता है।

भोटिया बादाम में Unsaturated fatty Acid (Oleic linolenic Acid) होने के कारण यह हानिकारक वसा को कम करता है तथा लाभदायक वसा को बढ़ाता है जो कि हृदय की रक्त वाहिनी में रक्त प्रभाव को बेहतर करने में सहायक होता है। उपरोक्त पोष्टिक एवं औद्योगिक महत्ता के कारण विभिन्न देशों – टर्की, इटली, स्पेन, फ्रांस तथा अमेरिका में इसकी व्यवसायिक खेती की जाती है। टर्की विश्व में भोटिया बादाम का सर्वाधिक 65 प्रतिशत उत्पादन किया जाता है (6,25,000 टन) जो कि विश्व में 75 प्रतिशत योगदान देता है।

अमेरिका विश्व बाजार में 25 प्रतिशत योगदान देता है। विश्वबाजार में भोटिया बादाम को luxury Food के रूप में जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व लगभग 455000 टन का उत्पादन किया जाता है जिसमें 65 प्रतिशत टर्की, 20 प्रतिशत इटली, 3 प्रतिशत अमेरिका में किया जाता है। यूरोप वर्तमान में भोटिया बादाम का सर्वाधिक उपभोग करने वाला देशों में सुमार है। विभिन्न देशों में भोटिया बादाम को विभिन्न औद्योगिक उत्पादों जैसे चाकलेट, अनाजों से उत्पादित उत्पादों ब्रेड,तेल, कॉफ़ी पेय पदार्था जैसे बियर, बोतका, आदि में पोष्टिक एवं Flavoring Agent के रूप में तथा Pharmaceutical Industry एवं Cosmetic Industry में प्रयुक्त किया जाता है।

भोटिया बादाम राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में स्थान ले चुकी है। विश्व बाजार में यह छिलके सहित एवं छिलके रहित दोनों अवस्थाओं में बेचा जाता है। अकेले अमेरिका के Oregon में भोटिया बादाम का औद्योगिक उत्पादन किया जाता है जो कि British Columbia तथा Canada को निर्यात किया जाता है। वर्ष 1996 में उत्तरी अमेरिका में भोटिया बादाम का उत्पादन 19900 टन था, जिसका विश्व बाजार में 1 डॉलर से 3 डॉलर प्रति Ib में बेचा जाता है। Roasted अथवा Chocolate के रूप में 12 डॉलर प्रति Ib तक बेचा जाता है। आस्ट्रेलिया में प्रति वर्ष 2000 टन भोटिया बादाम का आयात किया जाता है, केवल कैडवरी कम्पनी के द्वारा भोटिया बादाम के तेल को विभिन्न खाद्य पदार्थां को तैयार करने के लिए बहुतायत मात्रा में आयात किया जाता है। Nutella विश्व बाजार का 25 प्रतिशत भोटिया बादाम का विभिन्न खाद्य पदार्थों में उपभोग करता है।

विश्व बाजार में भोटिया बादाम से निर्मित उत्पादन तेल, Spreadable Nut butter (Euphoria) Ecstsy, Bio Industry तथा Nutella जैसे लगभग 50,000 से अधिक उत्पाद तैयार किये जाते है। 1 नवम्बर, 2016 Julian Galeकी रिपोर्ट के अनुसार टर्की में भोटिया बादाम 7.72 से 24.25 USD प्रति kg तक बेचा गया है। Sreeja Dry Fruits and spices, हैदराबाद में भोटिया बादाम 2500 प्रति kg तक बेचा गया है। Crystal Aromatic, नई दिल्ली में भोटिया बादाम का तेल 7000 प्रति kg तक बेचा गया है। चूंकि उत्तराखण्ड प्रदेश का अधिकतम भूभाग वन आच्छादित है जहां पर कुछ संरक्षित वन क्षेत्रो तथा न्याय पंचायत की बेनाप भूमि पर भोटिया बादाम की खेती की जा सकती है जो कि प्रदेश की आर्थिकी मे सहायक होगा

भोटिया बादाम की आर्गनिक जैविक खेती

परिचय

हेजल नट का फल

वैज्ञानिक नाम : कोरीलस एविलाना (एल.)

स्थानीय नाम : भोटिया बादाम

हिन्दी नाम : फिनडेक अथवा बिनडेक

बागवानी का मौसम : पूरे वर्ष

जलवायु

फल की सफल खेती के लिए विशेष स्थान पर वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हेजल नट के लिए ठण्डी गर्मी लम्बी गर्म गर्मी से विकास के लिए ज्यादा ठीक है और सुषुप्तावस्था से निकलने के लिए थोड़ा ठण्डा लम्बे समय तक जरूरी है। आर्द्र क्षेत्रों मे, पेड़ पर्णीय बीमारियों के लिए ज्यादा सहनशील है। दूसरे क्षेत्रों के वातावरण की अपेक्षा पेसिफिक घाट की लम्बी गर्मी मे फिलबर्ट होता है। तुर्की हेजल (कोराइलस कोलरना) जो कि यूरोपिन हेजल (सी.एवीलाना) से अलग है, भारत के ठण्डे क्षेत्रो मे भी उगते है। हेजल नट की एक ठण्डी शीतोष्ण वातावरणीय फसल, को थोडी वर्षा चाहिए होती है। यह भारत मे 1,800 से 3,300 मी० की ऊँचाई पर उगते पाये जा सकते है। पेड़ो मे 3 से 14 मी० लम्बाई की भिन्नता दिखाती है। छोटे झाड़ी व बड़े पेड़ कहलाते है। हेजलनट ठण्डे के लिए अवरोधी है। खुले पुष्पों की तुलना मे केटकिन तथा गर्भकेसर ठण्डे से ज्यादा अवरोधी है। मध्य दैनिक तापमान 1.2-4.2 डि०से० की अवधि मे उत्पादन को बढ़ावा देता है, परन्तु तापमान के ओर बढ़ने पर उत्पादन घट जाता है। अक्टूबर के गर्भकेसर पुष्पों की तुलना मे मध्य शीत ऋतु की कायिक कलिकायें ज्यादा कठोर है परन्तु अधिकतर गर्भकेसर पुष्प नर की तुलना मे केवल जनवरी मे कठोर होते है। दिसम्बर मे 30 डि०से० व जनवरी मे 40 डि०से० से कई हेजलनट गर्भकेसर पुष्प पूर्ण पुष्पन में क्षतिग्रस्त होते है। अच्छी हवा निकास एंव शुष्क हवाओं से सुरक्षा वाला स्थान हेजलनट के लिए सर्वोत्तम है। क्षेत्र, जहाँ कम वर्षा होती है और अच्छे से पूरे वर्ष वितरित हाती, हेजलनट की खेती की सफलता के लिए आदर्श मानी जाती है।

भूमि

फिलबर्ट के लिए उपयुक्त त्रुटिहिन मृदा विभिन्न क्षेत्रो मे फैली है, लेकिन सभी गमलो मे यह गहरी, उपजाऊ एंव अच्छे निकास वाली होनी चाहिए। गहरी मृदायें प्राकृतिक रूप से शुष्क ऋतु के दौरान पानी एवं पौधे के पोषक तत्वों की अधिक मात्रा मे रखी जाती है। हेजल नट की जड़े 2.5-4.0 मी० की गहराई तक जल्दी पहुँचती है। जड़ो की वृद्धि, अभेद्य सख्त परत, पानी स्तर, बालू अथवा पत्थर एवं आकार तथा फसल उपज में अत्याधिक विभिन्नता के कारण अच्छी उपज नहीं देती है। कई वर्षों कम उत्पादन के बाद एक अच्छी फसल हो सकती है। अधिक उपज वाले वर्ष मे नयी शाखा वृद्धि बहुत कम एवं उत्पादकता नहीं होती है तथा इसे अधिक फलन के लिए शाखा वृद्धि विकास के लिए दो या अधिक वर्षा चाहिए होते है। 4मी० की गहराई तक मृदा अच्छे से हवादार होनी चाहिए। अखरोट या पीकन की तुलना मे हेजल नट कठोर मृदाओं के लिए ज्यादा सहनशील है। छोटे वृक्ष और झाड़ियाँ बेकार पहाड़ी मृदा से अच्छा फल देती है। परन्तु गहरी उपजाऊ मृदा मे उगने वाले वृक्षो की तुलना मे उपज कम होती है। उदासीन से थोड़ी अम्लीय मृदायें जिनका पी० एच० 6 है हेजलनट के लिए अच्छी होती है। हल्की बलुई मृदायें अच्छी नहीं होती है। सफलता के लिए निकास के साथ ठीक नमी जरूरी है।

किस्में

किस्में एवं संकर -:

डेवियाना- पौधा बड़ा तथा फैला हुआ होता है। नट शंकु के आकार का होता है। इसका वजन 4.8 ग्राम होता है। इसकी लम्बाई 3.04 सेमी०, चौड़ाई 1.78 सेमी० व रंग स्लेटी होता है। गिरी भी शंकुवाकार, औसतन वजन 2.1 ग्राम, लम्बाई 2.69 सेमी०, चौड़ाई 1.38 सेमी० तथा सुगन्ध अच्छी होती हैं। अन्य किस्मों के लिए इसे परागणकर्ता के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।

हलशे रीसन- पौधा बड़ा, अच्छा फैलाव लिए होता है। नट शंकुवाकार होता है। नट का औसत वजन 3.5 ग्राम, लम्बाई 3.01 सेमी० चौड़ाई 2.7 सेमी० तथा रंग स्लेटी होता है। इसकी गिरी शंकुवाकार के आकार की तथा औसत वजन 2.0 ग्राम, लम्बाई 1.91 सेमी०, चौड़ाई 1.59 सेमी० तथा खुशबू अच्छी होती है।

रोमिश जिलर- पौधा बड़ा तथा फैला हुआ तथा नट शंकुकार होता है। नट का वजन 5.0 ग्राम, लम्बाई 3.01 सेमी०, चौड़ाई 2.07 सेमी० तथा रंग स्लेटी होता है। गिरी का वजन 2.5 ग्राम, लम्बाई 2.61 सेमी० चौड़ाई 1.32 सेमी० तथा अच्छी सुगन्ध अच्छी होती है।

लैम्बर्ट फिलबर्ट- पौधा बड़ा तथा अच्छा फैला हुआ होता है। नट शंकुवाकार जिसका औसत वजन 5.4 ग्राम, लम्बाई 2.27 सेमी०, चौड़ाई 2.42 सेमी० तथा रंग स्लेटी होता है। गिरी का औसत वजन 3.0 ग्राम, लम्बाई 1.95 सेमी०, चौड़ाई 1.87 सेमी० तथा सुगन्ध अच्छी होती है।

टोन्डा गिफोनी- गुठली सख्त तथा गिरी का वजन 1.80 ग्राम होता हैं। फल की नोक पर भूरे रंग की कतार होती है। पौधे की औसत लम्बाई 2.88 मी० होती है।

टोन्डा रोमाना- गुठली कम सख्त तथा गिरी का वजन 1.98 ग्राम होता है। फल की नोक पर भूरे रंग की कतार होती है। फल वृन्त पर गाढ़ा भूरा रंग होता है जो फल की नोक पर हल्का हो जाता है। पौधों की औसत लम्बाई 2.66 मी० होती है।

जेन्टाइल डेले लेन्गहे- गुठली मुलायम होती है। गिरी का वजन 2.4 ग्राम होता है गिरी का रंग आकर्षक (क्रीम सफेद), उभरी धारियाँ व नोक होती है। पौधे की लम्बाई 2.71 मी० होती है।


उत्पत्ति तथा वितरणः

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में यूरोपियन प्रजातियों को फिलबर्ट और अमेरिकन प्रजातियों को हेजल नट कहते हैं। चीन की एक पाण्डुलिपि के अनुसार, हेजल नट की खेती लगभग 5000 वर्ष से की जा रही है। रोम तथा ग्रीक लोग फिलबर्ट को औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं। पिलने, एविलाना प्रजाति का उद्भव एशिया से हुआ बताते थे। हेजल नट या फिलबर्ट या भोटिया बादाम के हजारों पौधे जम्मू कश्मीर तथा हिमांचल प्रदेश के जंगलों में देखे गये हैं। उत्तराखण्ड की पहाड़ियों में हेजल नट के बीजू पौधे (कोरयूनस कोलयूराना) जिनको कि कापसी कहते हैं, फलत में तो आते हैं, लेकिन खाने योग्य नहीं होते हैं। अब कुछ नयी प्रजातियों का चयन करके उत्तराखण्ड की पहाड़ियों पर लगाया जा रहा है। इसकी खेती मुख्यतः संयुक्त राष्ट्र के ओरनेगो और वाशिंगटन में की जा रही है। चार उत्पादक क्षेत्र तुर्की, इटली एवं ओरीगन क्रमशः काले सागर, मेडीटेरियन सागर तथा पेसीफिक सागर द्वारा घिरे होने के कारण प्रभावित होते रहते हैं।

हैजल नट का पेड़