गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

साइकलवाड़ी संदर्भ में उदयपुर गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -12

सूचना व फोटो आभार - दिनेश कंडवाल साइकलवाड़ी

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी /निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 15

साइकलवाड़ी ( उदयपुर ) में दिनेश कंडवाल बंधुओं की तिबारी में काष्ठ कला

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

साइकलवाड़ी गांव वास्तव में किमसार (उदयपुर पट्टी ) का ही एक भाग है। किमसार स्थान खस नामावली का द्योतक है अतः यह स्थान 2000 साल पहले भी चिन्हांकित हो चुका होगा। किमसार मुख्यतया कण्डवालों का प्रसिद्ध गाँव है। किमसार की प्रसिद्धि ढांगू , डबरालस्यूं व लंगूर , अजमेर में भी है। किमसार वास्तव में पंडिताई व वैदकी हेतु अधिक प्रसिद्ध था । जसपुर -ग्वील में प्रसिद्ध है कि किमसार के कंडवाल वैदकी व पंडिताई के लिए इतने प्रसिद्ध थे कि जसपुर -ग्वील वालों ने एक कंडवाल परिवार को अपनी सीमा ठंठोली (ढांगू ) में इसीलिए बसाया कि क्षेत्र में वैदकी व पंडिताई की कमी दूर हो जाय। ठंठोली के कंडवाल भी वैदकी व पंडिताई के लिए प्रसिद्ध हुए हैं।

साइकलवाड़ी में दिनेश कंडवाल बंधुओं की तिबारी कलाकृति के अनुसार सामन्य तिबारी है। जैसाकि आम तिबारियों में होता है मकान दुभित्या कमरों का मकान है जिसमे तल मंजिल में तीन कमरे अंदर व तीन कमरे बाहर हैं व ऊपरी पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवाल न हो बरामदा है जिस पर काष्ठ स्तम्भों के कारण मोरी /खोली /द्वार बना है।

दिनेश कंडवाल की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं। ये चार स्तम्भ तीन खोली / मोरी / द्वार बनाते हैं। पाषाण छज्जे के ऊपर उप छज्जा है जिस पर स्तम्भ आधारित हैं । स्तम्भों के आधार पर पर कुछ कलाकृति उभरी अवश्य गयी थी किन्तु अब वह कलाकृति दृष्टिगोचर नहीं होती है। स्तम्भ के आधार में अवश्य कलाकृति दिखती है। बाकि सभी स्तम्भों के ऊपरी भाग में में कोई विशेष कलाकृति नहीं दिखती है या कह सकते हैं कि चरों स्तम्भ सपाट हैं। चारों स्तम्भ सीधे छत के नीचे दासों (टोडियों _ के नीचे एक समांतर कड़ी से मिलते हैं , स्तम्भों के शीर्ष पर स्थित इस काष्ठ कड़ी (shaft ) पर कुछ कलाकृति रही होगी और लगता है प्रतीकत्मक चक्राकार पुष्प खुदे थे।

दासों व अन्य काष्ठ कृतियों पर भी कोई कला नहीं दिखती हैं या अंदाज नहीं लगता कि कोई विशेष उल्लेखनीय कलाकृति खुदी होंगी।

The geometrical art dominates all wood carving in this Tibari

संभवतया यह तिबारी सन 1950 के लगभग ही निर्मित हुयी होगी व स्थानीय कलाकरों द्वारा ही निर्मित हुयी होगी

दक्षिण गढ़वाल में ढांगू , उदयपुर , अजमेर , डबराल स्यूं व लंगूर में इस तरह की सामन्य नक्कासी वाली तिबारियां बहुत थीं। इसी तरह सामन्य कलाकृति लिए चार पाषाण स्तम्भों वाली तिबारियां भी दक्षिणक्षेत्र के उपरोक्त पट्टियों में देखने को मिलती थीं। अधिकतर तिबारियां नष्ट होने के कगार पर हैं।

सूचना व फोटो आभार - दिनेश कंडवाल साइकलवाड़ी

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