गौं गौं की लोककला

जुलेड़ी (उदयपुर ) में राघवा नन्द ममगाईं निर्मित तिबारी में काष्ठ कला, अलंकरण , लकड़ी नक्काशी

सूचना व फोटो आभार : हर्ष डबराल

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 187

जुलेड़ी (उदयपुर ) में राघवा नन्द ममगाईं निर्मित तिबारी में काष्ठ कला, अलंकरण , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , बखाई , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 187

संकलन -भीष्म कुकरेती

पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर ब्लॉक में ढोर पाली, मुगलिया गांव , फल्दाकोट गावों के निकट जुलेड़ी गांव एक समृद्ध गांव है। यहां से भी ब्रिटिश काल में समृद्धि प्रतीक तिबारियों , निमदरियों की सूचना मिली है। आज प्रस्तुत है जुलेड़ी (यमकेश्वर) में स्व . राघवा नंद ममगाईं निर्मित तिबारी में काष्ठ कला चर्चा। आज राघवा नंद ममगाईं के 81 वर्षीय पौत्र तारा दत्त ममगाईं इस भवन में निवास करते हैं। इस हिसाब से स्व राघवा नंद ममगाईं का जन्म लगभग 1890 -1900 (एक साखी में 20 वर्ष का अंतर् सिद्धांत ) बैठता है व प्रस्तुत जुलेड़ी में राघवा नंद ममगाईं की तिबारी लगभग 1930 के बाद ही निर्मित हुयी होगी। स्व राघवा नंद ममगाईं के पूर्वज डबरालस्यूं जल्ठ से जुलेड़ी आकर बसे थे।

जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं का मकान दुपुर , दुखंड /दुघर है व तिबारी पहली मंजिल में स्थित है। जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं के मकान की तिबारी चौखाम्या व तिख्वाळ्या (चार स्तम्भ या सिंगाड़ व तीन ख्वाळ वाली ) तिबारी है। जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं की तिबारी पहली मंजिल में लकड़ी के स्लीपर जैसे देळी . /देहरी के ऊपर स्थित है , देहरी सपाट चौखट रूपी है।

जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं की तिबारी के सिंगाड़ /स्तम्भ आम गढ़वाली तिबारियों के सिंगाड़ों जैसे गोल नहीं अपितु चौखट नुमा है व प्रत्येक सिंगाड़ के आधार में कुम्भी /पथोड़ आकृति उभर कर आयी हुयी है और साथ ही प्रत्येक सिंगाड़ में आधार से कुछ ऊपर तक तीर पर्ण की आकृतियां अंकित हुयी है (तीर के पश्च भाग जैसे पत्तियों से निर्मित आकृति ) . इसके बाद सिंगाड़ में कोई कला अंकित नहीं है व सपाट सिंगाड़ ऊपर चौखट मुरिन्ड से मिल जाते हैं , मुरिन्ड बहुस्तरीय , सपाट व चौखट हैं।

जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं के मकान व तिबारी में अन्य कोई विशेष काष्ठ कला दृष्टिगोचर नहीं होती है। मकान में पहली मंजिल में धातु जंगल बाद में स्थापित हुआ है।

निष्कर्ष निकालना सरल है कि यमकेश्वर के जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं निर्मित तिबारी में ज्यामितीय व कुछ स्थलों में प्राकृतिक काष्ठ कला के दर्शन होते हैं व जुलेड़ी में स्व राघवा नंद ममगाईं के मकान में कोई मानवीय काष्ठ कला उत्कीर्णन नहीं हुआ है।

सूचना व फोटो आभार : हर्ष डबराल

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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