उत्तराखंड के कलम वीर

@जगमोहन रौतेला

*** सेना के प्राण तथा सम्मान बचाओ *** राजीव नयन बहुगुणा ***

चौतरफ़ा संकट से घिरे राष्ट्र को कुछ भीतर घाती शत्रु और गहन संकट में डालने की चाल चल रहे हैं ।

कुछ कोरोना महामारी में डॉक्टर के पास जाने की बजाय ताली , थाली बजाने की सलाह देते हैं , तथा जुलूस बना कर सड़कों पर निकल पड़ते हैं ।

दूसरी ओर हिमालय सीमांत के गहन संकट में कुछ मक्कार और गद्दार इसे सरकार की बजाय सेना की नाकामी सिद्ध करने पर आमादा हैं ।

1962 के चीन आक्रमण के वक़्त भारत की कम्युनिस्ट पार्टी दो फाड़ हुई थी । एक पक्ष चीन को हमलावर मानता था , जबकि दूसरा धड़ा चीन को निर्दोष क़रार देता था ।

कालांतर में सिद्ध हुआ कि चीन के पास सिर्फ साम्यवादी झंडा है । वस्तुतः वह एक साम्राज्यवादी , किसान विरोधी , युद्ध पसन्द , उपभोक्तावाद का प्रसारक तथा भू माफिया मुल्क़ है । गत दशकों में चीन ने किसानों का पानी छीन कर उद्योगों को डायवर्ट कर दिया , तथा अंधाधुंध उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन कर अनेक देशों के उद्योगों की वाट लगा दी ।

इस बार उसने अपने बाजार के प्रसार के लिए दक्षिण पंथी दलों तथा व्यापारियों को चुना । इनमें से कुछ वन्य जीवों के अंगों तथा दुर्लभ जड़ी बूटियों के तस्कर हैं । इन्हें चीन से व्यापक रक़म प्राप्त होती है । कुछ नकली चीनी समान के आढ़ती हैं , जो कविंटल के भाव से खरीदे चीनी कबाड़ को भारतीय बाजार में फेंक कर अरबों मुनाफा कमा रहे हैं । इन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है । ये किसी भी हाल में चीन का तनिक भी अनिष्ट नहीं चाहते । चीन की मजबूती पर ही इनका अवैध व्यापार टिका है । कमीशन खा कर सड़कों , पुलों , सुरंगों और मूर्तियों का ठीका चीन को दिलाते हैं ।

सरकार की बजाय सेना पर दोष मढ़ने वाले , अपने अपहृत तथा मृत सैनिकों की संख्या छुपाने , महामारी में थाली , शंख बजाने वाले ऐसे ही चीनी एजेंट शामिल हैं

कठिन समय है । घर के भेदियों को पहचानो । सेना के प्राण तथा सम्मान बचाओ