रामेश्वरी नादान

सखी रुचि बहुगुणा उनियाल जी की एक पोस्ट से मन में ये शब्द उभरे अभी अभी

कैसे कह दूं चलचित्र रामेश्वरी नादान के कविता पाठ करते हुए

---------------

कैसे कह दूं तुम्हें वेवफा

जब तुमने

वफ़ा को समझा ही नहीं

कैसे उलाहना देकर तुम्हें

समझाऊं हाले दर्द

जब तुमने मुझे जाना ही नहीं

काश सुन लेते तुम

मेरे अनकहे जज्बातों को

काश पढ़ लेते तुम

जो मैंने कभी लिखा ही नहीं

जो मैंने कभी लिखा ही नहीं

कैसे कह दूं तुम्हें

तुम मेरे हो सिर्फ

जब तुम मेरे हुए ही नहीं

कैसे कह दूं तुम्हें

तुम साथ चलो हर कदम

जब तुम साथ रहते ही नहीं

कैसे कह दूं तुम्हें

तुम गैरों से न मिलो

जब तुमने अपना माना ही नहीं

काश कह पाती मैं वो सब

जो तुम सुनना नहीं चाहते

जो तुम सुनना नहीं चाहते

नादान


(सीधा पटल पर अभी -अभी)समर्पित सभी महिला मित्रों को

क़ई बार मैं

-------------

कई बार मैं

खामोश हो जाती हूँ

कई बार मैं

कुछ नहीं चाहती हूँ

कई बार मैं

छोड़ देती हूं शिकायत करना

कई बार मैं

सम्मान से झुक जाती हूँ

कई बार मैं

आत्मसम्मान के लिए

लड़ जाती हूँ

कई बार मैं

रिश्तों को संभाल लेती हूँ

कई बार मैं

दर्द को पीकर

मुस्कुरा देती हूँ

कई बार मैं

अधिकार नहीं माँगती

कई बार मैं

भूल जाती हूँ

अपने आपको

कई बार मैं जीती हूँ

अपनों की खुशी के लिए

ये आसान नहीं है

पर मैं कर लेती हूं

क्योंकि मैं स्त्री हूँ

क्योंकि मैं स्त्री हूँ

"नादान"


सभी प्यारे बच्चों को चिल्ड्रन डे की हार्दिक बधाई

मेरे अंदर आज भी

मेरा बचपन शोर करता है

समझदारों की भीड़ में

नादानियाँ करने का

अक्सर जी करता है

"नादान" ही रहने दो मुझे

समझदारों से मुझे

अब तो डर लगता है

मेरे अंदर आज भी

मेरा बचपन शोर करता है

"नादान"


एक नासमझ "नादान"

बंधन में बंध गई

अपनी नादानियों की

गठरी लेकर

मायके की चौखट से

ससुराल की चौखट पर

आज ही के दिन तो

आयी थी

तुमने हाथ पकड़कर कहा था

माना तुम "नादान" हो

पर मैं तुम्हारी नादानियों को

सदा मुस्कुरा कर सह लूंगा

आज भी याद है

मैं डरी सहमी सी

जब भीड़ में तलाश रही थी

वो चेहरा

जो हमेशा के लिए

मेरा हो गया था

कह रही थी उसकी नजरें

अकेली नहीं हो भीड़ में

मैं हूँ न साथ तुम्हारें

कुछ ही पलों में

मैं एक घर से

दूसरे घर की हो गई थी ।

तुमने सदा साथ चलने का

वादा किया था मुझसे

चल भी रहे हो हर डगर पर

कई बार मैं रूठी

कई बार मैं टूटी

तुमने हर बार सम्भाल लिया

अपनी मजबूत बाहों में

रूठते मनाते हुए

साल दर साल

हम समझने लगे है

एक दूजे को

10 सालों के इस सफर में

जो सबसे खूबसूरत अनमोल

उपहार तुमने दिया है

वो है "तृप्त"

जिसे पाकर मैं तृप्त हो गई हूं

मेरी नादानियों को

सिर आंखों पे

बिठा लिया है तुमने

कदम दर कदम

यूँही साथ चलते रहिये

बस यही चाहत है

तुम्हारा नाम जुड़ा रहे सदा

मेरे वजूद के साथ

मैं नादानियाँ करती रहूं

तुम यूँही मुस्कुराकर

माफ करते रहो मुझे

मैं भी अनदेखा करती रहूं

हर उस लम्हें को

जो मुझे तुमसे

शिकायत करने को कहे

ये साथ यूँही बना रहे

जिंदगी के पथ पर

हम सदा साथ चलते रहे

नादान 🌹🌹🌹


रिश्तों की चादर

रिश्तों की चादर को

रफू करना पड़े तो

कर ही देना चाहिए

रिश्तों में छेद

कँहा अच्छे लगते है

नादान


मैं तुम्हारें लिए इमरोज़ बन जाना चाहती हूं

मैं तुम्हारें लिए

इमरोज बन जाना चाहती हूं

जानकर ये सच

तुम मेरे नहीं हो

तुम्हारी बाहों में खो जाना चाहती हूं

मैं तुम्हारें लिए

इमरोज बन जाना चाहती हूं

अमृता खोयी रही सदा

साहिर की यादों में

इमरोज ने कभी न बांधा

अमृता को वादों में

तन्हाई में आंसू

इमरोज भी बहाता होगा

अमृता की खुशी के लिए

संग मुस्कुराता होगा

मैं भी तुम्हारी खुशी के लिए

तुम पर न्योछावर होना चाहती हूं

मैं तुम्हारे लिए

इमरोज बन जाना चाहती हूं

तुम अपने होंठों पर आने दो

नाम गैरों का

तुम हँसकर सुनाते रहो

अपने इश्क की दास्तान

मैं फिर भी अपने शब्दों में

तुम्हें पिरोना चाहती हूं

मैं तुम्हारें लिए

इमरोज बन जाना चाहती हूं

तुम चाहे अमृता बनो

तुम चाहे बनो साहिर

प्रेम को बनाकर इबादत

मैं संग तुम्हारें चलना चाहती हूं

मैं तुम्हारें लिए

इमरोज बन जाना चाहती हूं

रामेश्वरी नादान

एक नई रचना जिसमें मैंने इमरोज बनने की इच्छा जाहिर की है । इमरोज का इश्क एक इबादत है ये जानते हुए की अमृता प्रीतम साहिर लुधियानवी से इश्क करती थी । उन्होंने कभी भी अमृता को साहिर की यादों से बाहर नहीं आने दिया । अमृता साहिर से इश्क निभाती रही अंतिम सांस तक । और इमरोज अपने इश्क को इबादत बनाते रहे । कभी अमृता को अकेला न छोड़ा प्यार के बदले प्यार कभी चाहा ही नहीं । पर सदा अमृता के हर सुख दुख के साथी बनकर इश्क को इबादत बना दिया ।