गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

खमण (मल्ला ढांगू ) के खुशीराम लखेड़ा की जंगलादार निमदारी में काष्ठ कला

सूचना व फोटो आभार - सुशील कुकरेती (गुदड़ )Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 25


ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर काष्ठ अंकन कला -18

Traditional House wood Carving/Tibari , Art of Gangasalan (Dhanu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Llangur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya -25

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 25

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

खमण गाँव वास्तव में हिंवल नदी पार का गाँव है किन्तु डबरालस्यूं नहीं अपितु पट्टी मल्ला ढांगू अंतर्गत आता है। ढांगू पट्टी से करुंद पट्टी के रूप में अलग होने या करुंद से डबरालस्यूं परिवर्तन के बाद भी खमण को डबरालस्यूं में नहीं रखा गया। इसका कारण है कि 1820 या उसके लगभग डबरालों ने खमण को जसपुर के कुकरेतियों (ग्वील संस्थापक बृषभ 'जी' की मां जो डबराल थी ) को दहेज में दे दिया था ) अतः जब ढांगू से करुंद पट्टी अलग हुयी या डबरालस्यूं बनी तब डाबरलों ने खमण को डबरालस्यूं में न लेने का फैसला किया होगा (लोक कथा पर आधारित ) ।

खमण में कुकरेती जी नहींअपितु व लखेड़ा , पंत व जुगराण जाति के परिहार वास करते हैं। मोक्षप्राप्त महंत इंदिरेश चरण दास का श्रीधर कुकरेती के नाम से खमण में ही जन्म हुआ व लालन पोषण हुआ।

खमण में तिबारियां ही नहीं अपितु जंगलेदार निमदारी होने की सूचना मिली है धीरे धीरे सभी सूचना मिल जाने पर उन भवन कलाओं पर लिखा जायेगा।

खमण में खुशिराम लखेड़ा की तिमंजली निमदारी एक समय खमण की छवि वर्धकों में से एक थी (landmark in Khaman ) .

खमण के खुशीराम लखेड़ा की निमदारी तिभित्या (तीन भीत याने तीन दीवाल या एक आगे व एक पीछे के कमरे ) कमरों वाली जंगलादार निमदारी है। पहले मंजिल (मंज्यूळ ) व दूसरे मंजिल (तिपुर ) में ही काष्ठ स्तम्भ हैं जबकि तल मंजिल में कोई स्तम्भ नहीं है।

ऊपरी दोनों मंजिलों (मंज्यूळ व तिपुर ) में प्रत्येक मंजिल में दस काष्ठ स्तम्भ है व उनसे 9 खोली (रिक्त स्थान ) बनते हैं। अग्र भीत (दिवार ) व स्तम्भ के मध्य छज्जे हैं। पहली मंजिल का छज्जा पाषाण का है व पाषाण दासों (टोड़ी ) पर टिका है जबकि तिपुर का छज्जा काष्ठ का है व लकड़ी के दासों (टोड़ी ) पर टिका है। दोनों मंजिलों के प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ के तीन भाग है आधार भाग जो चौड़ा है व उसमे कला उत्कीर्ण हुयी है कुछ कुछ कमल दल जैसा ही। फिर इस स्तम्भ आधार के बाद कड़ी है (shaft of column ) शुरू होता है जो कलायुक्त कमल दल में समाप्त होता है व फिर से स्तम्भ का ऊपरी ब्लेड, wood plate या डीला शुरु होता है , डीले के बाद कमल दल आकृति उभरती दिखाई देती है।

बाकी सभी लकड़ी में सभी जगह ज्यामितीय कला देखने को मिलती है। कहीं भी मानवीय (figurative पशु , पक्षी , मनुष्य , तितली आदि ) कला ादेखने को नहीं मिलती है याने केवल वानस्पतिक (प्रकृति ) व ज्यामितीय कला ही खमण के खुशीराम लखेड़ा की निमदारी में मिलते हैं

दोनों मंजिलों के दो स्तम्भ मध्य आधार पर एक डेढ़ फ़ीट ऊँचा काष्ठ जंगला है।

छत का आधार काष्ठ पट्टियां हैं।

कहा जा सकता है कि खमण के खुशीराम लखेड़ा की तिमंजिला निमदारी तीन मंजिला होने के कारण क्षेत्र में प्रसिद्ध हुयी है हाँ काष्ठ कला की दृष्टि से केवल स्तम्भों पर कला ही उभर कर आयी है। संभवतया यह निमदारी सन 1947 -1955 मध्य निर्मित हुयी होगी। स्थानीय ओड व बढियों ने ही निर्माण किया किया होगा।

सूचना व फोटो आभार - सुशील कुकरेती (गुदड़ )

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020