गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 179
(अलंकरण व कला पर केंद्रित )
संकलन - भीष्म कुकरेती
मलारी क्षेत्र सीमावर्ती गाँव के कारण ही नही ऐतिहासिक नर मुंडों के कारण जग प्रसिद्ध क्षेत्र है I मलारी गाँव में आज दो तीन प्रकार के भवन पाए जाने लगे हैं I आधुनिक बव्हं जो स्वतन्त्रता के आस पास निर्मित मकान और प्राचीन शैली में निर्मित भवन Iमलारी के सभी प्रकार की शैल्यों की विवेचना की जायेगी I
आज मलारी गाँव के एक प्राचीन (अति प्राचीन नही ) शैली में निर्मित भवन की काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन पर विचार किया जाएगा I बर्फ गिरने वाले क्षेत्र , अत शीत क्षेत्र में लकड़ी के मकानों की एक प्रकार इ शैली नेलंग , जाडंग , मुन्सियारी , गमसाली व मलारी गाँवों में कुछ कुछ मिलती जुलती है I
मलारी के इस भवन का नाम मलारी भवन संख्या 1 दिया गया है . मलारी भवन संख्या 1 दुपुर मकान है I इसी भवन से बिलकुल सटा दूसरा मकान है जो कुमाऊं में बाखलियों की याद दिला देता है I मलारी भवन संख्या 1 के तल मंजिल के बरामदे को उपर लकड़ी के छज्जे से ढका ग्या हैI तल मंजिल से उपर के बरामदे में जाने हेतु आंतरिक रास्ता है याने सीढ़ी से ही उपर जाया जा सकता हैI आगे आये छज्जे को तल मंजिल में स्थापित चार गोल खम्बों (बली) से उठाये रखा गया है I पहली मंजिल की छट के आधार में दो सतह हैं व दोनों लकड़ी से ही निर्मित हैं I पहली मंजिल के बरामदे को काष्ठ आकृति से ढका गया है और यह आकृति विशेष आकृति कहलाई जायेगी I पहली मंजिल के बरामदे को पहले 12 खम्बों /स्तम्भों से ढका गया है व फिर इन स्तम्भों के आधार पर दो लकड़ी के पटलों (चपटी पट्टी ) व सबसे ऊपर (मुरिंड कड़ी के नीचे) लकड़ी के एक पटले (चपटी पट्टी ) से ढका गय है व बीच में खोळ छेदिका निर्मित हुआ है जो बाहर झाँकने के काम आता है I
आधार के निम्न स्तर के पटले पर हर खोह /ख्वळ में सुंदर अलग अलग काष्ठकला के दर्शन होते हैं याने आधारिक पटले में 11प्रकार की कला उत्कीर्ण हुयी है .
दूसरे मकान से चिपकी तरफ से पहला ख्वाळ के पटले में कला अंकन - छाया चित्र में कुछ भी पता नही चल रहा है पर यह निश्चित है कि मानवीय या प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है I
2सरे ख्वाळके पटले में गोल फूल या फर्न पत्ती नुमा कला आकृति के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं I
3सरे ख्वळ के पटले पर गोल फूल , सर्पिल , गुंथी चोटी की आक्रति दिख रही है व मध्य में जैसे चिड़िया की चोंच हो के चिन्ह दिख रहे हैं .
4थे व पांचवें ख्वळ के पटलों में भी आक्रति मिट गयी हैं I
6ठे ख्वळ के पटले में बड़ा गोल फूल व एक चिड़िया व एक जानवर की आकृति अंकन का आभास हो रहा हैI
7वें ख्वाळके पटले पर मानव आकृति और सम्भवतया कोई मिथकीय आकृति अंकित हुयी दिख रही है I
8वें ख्वाळ के पटले पर भी कोई पुराण /मिथकीय आकृति लग रही है जैसे कोई देव हो जिसके हजारों हाथ हों या देव से किरण पुंज बिखर रहे हों I अंकन में आभास अलंकार लग रहा है I
9वें ख्वाळ के पटले में नीचे हाथी उत्कीर्ण (खुदाई ) हुआ है व उपर एक मानव हनुमान सुमेरु पर्वत उठाये लग रहा है व दूसरी आकृति ऐसे लग रही जैसे शिवजी के हाथ में डमरू हो I
10 वें ख्वाळ के पटले में पूजा करते समय चौकी में जो नव ग्रह का प्रतीक रचा जाता है वाही आकृति दिख रही है I
11 वीं ख्वाळ के पटले पर कला अंकन सर्वथा अस्पष्ट है .
भवन के कड़ीयों , खम्बों, तल मंजिल के कमरे के दरवाजों आदि पर ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई विशेष कला अंकन नही दीखता है .
मलारी भवन संख्या 1 को अध्ययन के पश्चात कहा जा सकता है कि मलारी के भवन में लकड़ी प्रयग शैली में शीतप्रदेशों निलंग –जाडंग घाटी; जौनसार; मुन्सियारी, गमशाली आदि जैसे हैं या कई मामलों में समानता है विशेषत: पहली मंजिल में बरामदे को लकड़ी के पटलों से द्ज्कने की शैलीI
मलारी भवन संख्या 1 के पहली मंजल के पटलों में वानस्पतिक , मानवीय व ज्यामितीय व आध्यात्मिक /धार्मिक प्रतीक का अलंकरण बड़े सलीके से हुआ हैI
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