गौं गौं की लोककला

दांतू (दारमा घाटी, पिथौरागढ़ ) के एक भव्य मकान में काष्ठ कला , अलंकरण, नक्काशी

सूचना व

प्रेरणा- बसंत शर्मा

फोटो आभार:प्रसिद्ध फोटोग्राफर व कलाविद लोकेश शाह

Copyright

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 212

दांतू (दारमा घाटी, पिथौरागढ़ ) के एक भव्य मकान में काष्ठ कला , अलंकरण, नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी-212

संकलन - भीष्म कुकरेती

दांतू गाँव पिथौरागढ़ में धारचूला तहसील के दारमा घाटी का महत्वपूर्ण सीमावर्ती गांव है जो आदि कैलाश मानसरोवर ट्रैकिंग मार्ग पर स्थित है। भारत तिब्बत सड़क पर होने से दारमा घाटी के सभी गाँव भारत -तिब्बत के मध्य व्यापार के गाँव कभी उत्तराखंड के समृद्ध गाँव थे और समृद्धि मकानों में झलकती थीं। आज इन्ही समृद्ध गाँवों में से एक गाँव दांतू गाँव के एक मकान में सन 1 960 से पहले काष्ठ कला अंकन नक्काशी पर चर्चा होगी। मकान पूर्ण तया बाखली (लम्बे , एक साथ जुड़े कई घर ) नही है किन्तु खोळी प्रवेशद्वार ) , छाज ( झरोखे ), खिड़कियां आदि की शैली बाखली समान ही है। दारमा घाटी में मकान रिवाज अनुसार इस मकान में भी तल मंजिल में गौशाला व् भंडार थे व ऊपरी मंजिल में निवास इस्तेमाल का रिवाज था।

दांतू का यह मकान कुमाऊं शैली व ब्रिटिश शैली के मिश्रण से निर्मित हुआ है ( खोली व खिड़कियों के मुरिन्डों के ऊपर पत्थर के मेहराब ब्रिटिश शैली के हैं )।

दांतू के इस मकान में काष्ठ कला समझने हेतु मकान के तल मंजिल में कमरों के मुरिन्ड व दरवाजों में , खोळी में व पहली मंजिल में दो छाजों में काष्ठ कला पर ध्यान देना होगा।

तल मंजिल के कमरों के दरवाजों पर ज्यामितीय कटान हुआ है किन्तु कमरे के सिंगाड़ (स्तम्भ ) व स्तम्भ से मुरिन्ड की बनी कड़ियों में प्राकृतिक कला (पर्ण लता वा पुष्प , सर्पिल लता ) अंकन हुआ है। कमरे के मुनरिन्ड के मध्य एक बहुदलीय पुष्प की आकृति खड़ी है जो भव्य है।

दांतू गाँव के इस भग्न हुए मकान की खोळी (ऊपर मंजिल में जाने हेतु आंतरिक प्रवेशद्वार ) आज भी भव्य खोळी है जो लकड़ी की टिकाऊ होने व नक्काशी की बारीकियों से ही समझा जा सकता है।

खोली के दोनों ओर के सिंगाड़ (स्तम्भ ) चार चार उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से निर्मित है। दो किनारे के उप स्तम्भों में आधार में कुछ ऊंचाई तक कमल फूल की कुम्भी व ड्यूल की कला दिख रही है व इसके बाद सभी चारों उप स्तम्भों में सर्पिल पर्ण लता का ाबंकन दिख रहा है। सभी उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड के चौखट की कड़ियाँ बन जाते हैं। यहां भी मुरिन्ड कड़ियों में सर्पिल पर्ण लता का अंकन हुआ है। मुरिन्ड के केंद्र में चतुर्भुज देव आकृति अंकित हुयी है। मुरिन्ड के ऊपर दो मेहराब हैं एक मेहराब नक्काशी युक्त लकड़ी का है व दूसरा मेहराब लकड़ी के मेहराब के ऊपर पत्थर का मेहराब है जो ब्रिटिश भवन शैली का द्योत्तक है। मुरिन्ड के ऊपर अर्ध गोल स्कंध काष्ठ कला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है। मेहराब के इस अर्ध गोल आकृति के अंदर उठे अंजुली जैसे फूल की पंखुड़ियाों का आकर्षक अंकन हुआ है जो नक्काशी के बारीक व शानदार नक्काशी का उम्दा नमूना है। अर्ध गोल आकृति के अंदर फूल पंखुड़ियों के उठी अंजुली (अंज्वाळ ) के अंदर एक बहुदलीय फूल अंकित है। खोली में बेहतर दर्जे की नक्काशी हुयी है। जो शिल्पकार के कुशल काष्ठ शिल्प व मकान मालिक के कला प्रेम को दर्शाने में सफल है।

मकान के पहली मंजिल में खोली के आधे में दोनों ओर बहुत कम चौड़े छज्जे (पौड़ी गढवाल की तुलना म बहुत कम चौड़े ) हैं व दोनों ओर के छज्जों के उपर एक एक लकड़ी का नक्छाकाशी युक्जत ( झरोखा ) सजा है। छाज आम कुमाउंनी छाज (झरोखे , मोरी ) जैसा छाज है। दोनों छाज आकृति व कला दृष्टि से एक समान हैं। प्रत्येक छाज दो दरवाजों से बनी है। प्रत्येक छाज के प्रत्येक दरवाजे के दोनों ओर मुख्य स्तम्भ हैं जो तीन तीन उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बने हैं। प्रत्येक दरवाजे के बाहर व भीतरी उप स्तम्भ में आधार पर कमल फूल से बनी कुम्भी व ड्यूल आकृतियां अंकित हैं। आधार के ऊपरी कमल आकृति के बाद उप स्तम्भ बीच के उप स्तम्भ जैसे सीधे मुरिन्ड से मिलते हैं व मुरिन्ड की कड़ियाँ बन जाते हैं। इस दौरान सभी उप स्तम्भों में पर्ण -लता आकृति अंकित हुयी हैं।

मध्य ओर के प्रत्येक दरवाजे का नीची वाला भाग लकड़ी के पटिले (तख्ता ) हैं व ऊपरी भाग में ऊपर मेहराब व नीचे उल्टा मेहराब हैं और इन दो मेहराबों के मध्य ढुढयार (छेद , झरोखे ) है। दुसरे घर या इसी घर के दूसरे भाग में खिड़कियों के स्तम्भों में भी नक्काशी हुयी है।

निष्कर्ष निकलता है कि दांतू गाँव का यह मकान भव्य था व इस मकान में लकड़ी में दिलकश नक्काशी हुयी है। कला व अलंकरण दृष्टि से ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण हुआ है। अब चूँकि यह क्षेत्र चीन युद्ध के बाद तकरीबन बांज ही पड़ गया था तो मकान ध्वस्त हो गए हैं किन्तु टिकाऊ लकड़ी प्रयोग होने व पत्थर से मकान अभी भी कुछ ना कुछ सही स्थिति में है।

सूचना प्रेरणा- बसंत शर्मा

फोटो आभार:प्रसिद्ध फोटोग्राफर व कलाविद लोकेश शाह

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020