गढ़वाली में लकड़ी से सम्बन्धित शब्दावली

गढ़वाली में लकड़ी से सम्बन्धित शब्दावली

अंगदिरा/अंदखिरा- (चूल्हे के ऊपर का स्थान जिसमें लकड़ियाँ रखी जाती हैं ताकि सूखी रहें)

अछाणो- (धारदार हथियार से किसी वस्तु को काटने के आधार की लकड़ी)

अटाळी- (लकड़ी का छोटा-सा टुकड़ा जो भीमल के रेशों की रस्सी बटने के लिए प्रयुक्त होता है)

अड्या- (गोशाला का दरवाजा बंद करने के काम आने वाली लकड़ी)

अणौ- (हल का हत्था)

अदाळो- (घिसा हुआ हल)

अवांण/ठांकरो- (बेल को सहारा देने के काम आने वाली लकड़ी)

आंधो- (दीपावली के अवसर पर चीड़ की लकड़ियों से बना बड़ा 'भैल्लो')

आथर- (दुमंजिले मकानों में ऊपरी मंजिल का तख्तों के ऊपर मिट्टी डालकर बना कच्चा फर्श)

कड़ी- (शहतीर)

किलड़ी- (लकड़ी की बनी कील)

कीलो- (खूँटा)

कुठार/पठ्वा- (लकड़ी का बड़ा बक्सा जिसमें अनाज आदि रखते हैं)

कोसड़ी- (नमक रखने का काष्ठ पात्र)

क्वीलू- (जंदरी में प्रयुक्त छोटी लकड़ी की फट्टी जो जंदरी के ऊपरी पाट को स्थिर करती है)

खटुलो/सांग- (शव को ले जाने वाली लकड़ी)

खोळी- (मकान का नक्काशीदार मुख्य द्वार)

गंज्याळो- (मूसल)

गुळ्या/गुंळ- (दरवाजे को अंदर से बंद करने की लकड़ी)

गेंडखी- (लकड़ी का छोटा तथा मोटा टुकड़ा)

गेला- (पेड़ काटने के बाद बनाए गए तने के 10-12 फिट के टुकड़े)

घोगा- (बच्चों की देवडोली)

चरेटो- (बकरियों को नमक आदि देने के लिए बना काष्ठ पात्र)

चूं-चक्की/कौं-कौं- (एक लकड़ी के ऊपर दूसरी लकड़ी रखकर बनी बच्चों के खेलने की चरखी)

चिलम- (तंबाकू पीने की काष्ठ नली)

चौकुलो- (काष्ठ निर्मित चौकी)

च्वीला- (हल पर लगाने के काम आने वाले लकड़ी के छोटे टुकड़े)

छिल्ला- (चीड़ की लकड़ी का अधिक लीसायुक्त लाल रंग का हिस्सा)

जांठी/सोटगी- (छड़ी)

जुव्वा- (हल चलाते समय बैलों को साथ रखने के लिए उनके कंधे पर रखी जाने वाली लकड़ी)

जोळ- (पाटा)

ज्वबरू- (दूध या दही रखने का काष्ठ पात्र)

झाटगो/झिंकड़ो- (बेल को सहारा देने के काम आने वाली पेड़ की छोटी शाखा)

डंडी/पिनस- (पालकी)

डोल्ला- (डोली)

ड्वींटा- (जानवरों को 'पिंडा' खिलाने के लिए बना काष्ठ पात्र)

ढिकारो- (मिट्टी के ढेले तोड़ने का उपकरण)

ताकुळि- (तकली)

दबळी/ड्वीलु- (गुल्थ्या या बाड़ी को बनाते समय घुमाना में प्रयुक्त डंडी)

दार- (गोल बल्लियाँ)

नटै- (सामान्यत: चपटी बल्ली जिस पर 'दार' टिके होते हैं)

नसुड़ो- (हल)

निमाउ- (जो हल पर लाट को फिक्स करने के काम आता है)

पठ्वा- (लकड़ी का बना लम्बा-सा संदूक)

पनाळ- (घराट तक पानी पहुँचाने के लिए बनाई गई खोखली लकड़ी)

पनाळा- (घराट की भेरण पर लगे लकड़ी के टुकड़े जिन पर पनाळ से पानी गिरता है और घराट घूमने लगता है)

पराळझड़ी- (छोटी, पतली एवं चिकनी डंडी जो धान की मंडाई के बाद पुआल पर बचे धान को झाड़ने के काम आती है)

परोठो- (दही रखने का लकड़ी का पात्र)

पर्या- (दही मथने के लिए बना काष्ठ पात्र)

पसिणा- (मिट्टी के कच्चे मकानों में कच्चा फर्श डालने में प्रयुक्त मोटे लट्ठे)

पाटी- (तख्ती)

पुर्चा- (पठार वाले मकानों में बल्लियों के ऊपर घने बिछाए जाने वाले फट्टे जिन पर मिट्टी और पठाल रखते हैं।)

फणेटा- (पेड़ के तने को आरी से चीरने के बजाय कुल्हाड़ी से काटकर निकाले गए तख्तेनुमा टुकड़े)

बंसतोळ्या- (बांस का हुक्का, बांस की नली जिससे जानवरों को घी या दवाई पिलाई जाती है)

बळेण्डो- (शहतीर, कड़ी)

बल्ली- (गोल शहतीर)

बांसा- (गोल बल्लियाँ)

बुडुळु- (जिस पर जंदरि का क्वीलू फिट होता है)

भरवाण- (बहुत मजबूत और मोटी चपटी बल्ली जिस पर 'नटै' और 'दार' टिके होते हैं)

भेरण- (घराट के नीचे लगी लकड़ी जो पानी के वेग से घूमती है)

मऽया- (लकड़ी के दांतों वाला हल जो रोपाई के खेतों को समतल करता है)

मुंगरो- (लकड़ी की हथौड़ीनुमा आकृति जो कपड़े धोने या किसी चीज को ठोकने के काम आती है)

मुछ्याळो- (जलती हुई लकड़ी)

मूंडा- (टूटे या कटे पेड़ के जमीन से लगे तने, ठूंठ, बेडौल लकड़ियाँ)

रोड़ो- (लकड़ी से बनी मथनी)

लाखड़ा- (लकड़ियाँ)

लाट- (हल पर प्रयुक्त होने वाली लंबी लकड़ी जिसका एक सिरा बैलों के कंधों से बंधे जुए पर तथा दूसरा सिरा हल से जुड़ा होता है)

सुळेटो- (घास का बोझा ले जाने के काम आने वाली लकड़ी जिसका एक सिरा नुकीला होता है)

गढ़वाली में रिंगाल से सम्बन्धित शब्दावली

ओडगी/डल्ला- (रिंगाल का बड़ा टोकरा)

कंडी- (रिंगाल की बनी बड़ी डलिया जो गोबर या घास ले जाने के काम आती है)

कलम- (रिंगाल की बनी कलम)

क्वन्नो- (फसल की पैदावार को सुरक्षित रखने के लिए रिंगाल का ढक्कनदार बड़ा बर्तन)

खुचकंडी- (रिंगाल की बनी छोटी हथकंडी)

चौका/तिछिला- (रिंगाल की बनी चटाई)

छंतोळी- (रिंगाल की बनी छतरी)

छाटणो- (ओखल में कूटते समय ओखल के चारों ओर अनाज बिखरने से बचाने के लिए रखा जाने वाला दो ओर से खुला बेलनाकार बर्तन)

छाबड़ो- (रिंगाल का चौड़ा टोकरा)

छिपरो- (रिंगाल की कंडी का टूटा हुआ भाग)

छुल्का/छिल्ला- (चूल्हे में आग जलाने के लिए काम आने वाला फाड़े हुए सूखे रिंगाल)

टोखरी- (रिंगाल की टोकरी)

डलोणी- (फसल की पैदावार नापने के लिए लगभग 16 किलो की टोकरी)

ढकोली/ड्वारा- (फसल की पैदावार को सुरक्षित रखने के लिए रिंगाल का ढक्कनदार छोटा बर्तन)

तेथुलो- (अनाज की मंडाई एवं सुखाने के लिए रिंगाल की चटाई)

फुलकंडी- (फूल रखने के लिए बनी रिंगाल की हथकंडी)

मुसका/म्वाळा- (बैलों के मुँह पर बाँधने के लिए रिंगाल से बनी जाली)

रीड़ु- (घराट के ठीक ऊपर लगा रिंगाल का बड़ा-सा शंकुनुमा पात्र जिसमें पीसने के लिए अनाज डाला जाता है)

वडगु- (रिंगाल का टोकरा जिसमें मिट्टी, गारा या गोबर उठाया जाता है)

सजोळी/हतकंडी/बिजोंडु- (रिंगाल की हथकंडी जो प्राय: खेतों में बीज ले जाने के काम आती है)

सोल्टी/चंगेरी- (छिद्र वाली रिंगाल की कंडी)

सुप्पो- (रिंगाल का सूप)

(साभार- हिंदी-गढ़वाली-अंग्रेजी शब्दकोश - रमाकान्त बेंजवाल एवं बीना बेंजवाल। आधार- अरविंद पुरोहित)