गढ़वाल में धर्म एवं जातियाँ

गढ़वाल प्राचीनकाल से हिंदू धर्म एवं संस्कृति का क्षेत्र रहा है। इस क्षेत्र में मानव का अस्तित्व बहुत पुराना है। जहां के राजाओं का अतीत प्रमाणों के अभाव में अंधेरे में छिपा हो, वहां की प्रजा का इतिहास कि वे किस जाति के हैं? कहां से आये? तथा कब से यहां रह रहे हैं? छिटपुट अभिलेखों के अलावा कुछ-कुछ अनुमान से लिखा गया है। सन् 1841 की जनगणना के आधार पर गढ़वाल की कुल जनसंख्या 1,31,916 थी, जिसमें 1,09, 352 हिंदू तथा मात्र 366 मुसलमान थे और शेष ईसाई व अन्य थे। हिंदुओं में भी जनसंख्या इस प्रकार थी-

राजपूत- 44,470

ब्राह्मण- 29,122

खस- 34,502

शिल्पकार - 1,358

40 वर्ष बाद सन् 1881 में गढ़वाल की जनसंख्या दुगुनी से अधिक हो गई, जिनमें 3,43,186 हिंदू (जैन व आर्य समाजियों सहित), 2,077 मुसलमान तथा शेष ईसाई व अन्य थे। सन् 1911 की जनगणना में-

हिंदू- 7,74,516

आर्य समाजी- 122

जैन- 86

सिक्ख- 37

बौद्ध- 30

मुसलमान- 5,344

ईसाई- 851

कुल- 7,80,986

19वीं सदी तक हिंदुओं की जनगणना में खस जाति की गणना अलग से की जाती थी। 19वीं सदी के अंत में खसिया शब्द अनादर सूचक माना जाने लगा था। सन् 1884 में एटकिंसन ने लिखा है कि "पर्वतीय प्रदेश में खस जातियों ने, जिन्हें 'गोत्र' का स्वप्न में भी ध्यान नहीं आया था, भारद्वाज गोत्र अपना लिया। मैदान में भी जो हिंदू इस्लाम में प्रवेश करता है, उसे तुरंत 'शेख' कहा जाने लगता है।" (हिमालयन गजेटियर-2- एटकिंसन, पृ० 269-70)

वर्तमान में यहां हिंदुओं जनगणना में भी ब्राह्मण, राजपूत व शिल्पकारों की गणना अलग-अलग की जाती है। इनके अलावा चमोली व उत्तरकाशी के सीमांत क्षेत्र में रहने वाले भोटियों तथा चकराता तहसील रह रहे जौनसारियों की जनगणना जनजाति के रूप में होती है। धार्मिक बिरादरी में रह रही कुछ जातियों की गणना पिछड़ी जाति में की जाती है। उत्तराखंड सरकार ने टिहरी व उत्तरकाशी जनपद के कुछ हिस्से को भी पिछड़ी जाति में सम्मिलित किया है।


सन् 1981 की जनगणना के आधार पर गढ़वाल की जनसंख्या 24,52,549, 1991 में 29,82947 तथा वर्ष 2001 में हरिद्वार जनपद के जुड़ने से 49,23,966 हो गई। वर्ष 2011 में गढ़वाल की जनसंख्या इस प्रकार है:-

हिंदू- 48,61,040

मुसलमान- 8,89,916

ईसाई- 22,063

सिक्ख- 55,255

बौद्ध- 13,339

जैन- 8,010

अन्य- 7,671

कुल- 58,57,294

(साभार- गढ़वाल हिमालय- रमाकान्त बेंजवाल)