उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -50
उत्तराखंड में बसिंगू/अडोसा इतिहास, की सब्जी , औषधीय उपयोग व व अन्य उपयोग
उत्तराखंड में बसिंगू/अडोसा इतिहास, की सब्जी , औषधीय उपयोग व व अन्य उपयोग
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -8
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उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --50
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --50
आलेख : भीष्म कुकरेती
आलेख : भीष्म कुकरेती
बसिंगू का बनस्पातिक नाम
बसिंगू का बनस्पातिक नाम
Adhatoda vasica है।
Adhatoda vasica है।
Adhatoda का तमिल में अर्थ होता है जो बकरियों को दूर रखे !
Adhatoda का तमिल में अर्थ होता है जो बकरियों को दूर रखे !
संस्कृत नाम -सिंहपुरी , वसाका
संस्कृत नाम -सिंहपुरी , वसाका
हिंदी नाम -अडोसा
हिंदी नाम -अडोसा
गढ़वाली नाम -बसिंग /बसिंगु
गढ़वाली नाम -बसिंग /बसिंगु
बसिंगु का जन्म स्थल भारत है व सभी जगह पाया जाता है। हिमलाय के निम्न ढलानों में बसिंग / वसाका /अडोसा उगता है।
बसिंगु/ वसाका /अडोसा का औषधीय उपयोग 2500 सालों से हो रहा है। चरक संहिता में बसिंगु/ वसाका /अडोसा व इसकी औषधि का उल्लेख हुआ है।
उत्तराखंड की पहाड़ियों में बसिंगु/ वसाका /अडोसा का महत्वपूर्ण स्थान है।
बसिंगू की पत्तियां औषधी में कई प्रकार से काम आती हैं।
आंत्र कृमियों को खतम करने , स्वाश , ज्वर , जलन , पेशाब , खून के बहाव को रोकने , दांत के दर्द आदि , बच्चे पैदा होने के वक्त मंश पेशियों में खिंचाव कम करने , रक्त दाब कम करने , छाती की , मांश पेशियों की कई बीमारियों को ठीक करने में 2500 सालों से उपयोग होता आ रहा है
आंत्र कृमियों को खतम करने , स्वाश , ज्वर , जलन , पेशाब , खून के बहाव को रोकने , दांत के दर्द आदि , बच्चे पैदा होने के वक्त मंश पेशियों में खिंचाव कम करने , रक्त दाब कम करने , छाती की , मांश पेशियों की कई बीमारियों को ठीक करने में 2500 सालों से उपयोग होता आ रहा है
बसिंगु एक प्राकृतिक कीटनाशक भी है और बाड़ लगाने से किसान को दो फायदे होते हैं एक तो जानवरों से फसल बचती है दूसरे फसल के पास कीटनाशक भी खड़ा रहता है।
बसिंग की पत्तियां जितनी कड़ुई होती हैं फूल पराग उतने ही मीठे होते हैं। पुराने जमाने में जब शहद उत्पादन कृषि का एक मुख्य तो बसिंग से मधु उत्पादन में फायदा होता था।
Vegetable Recipe of Malabar Nut (Adhatoda vasica) buds
बसिउंग की कलियों की सब्जी
बसिउंग की कलियों की सब्जी
सामग्री
सामग्री
बसिउंग /बसिंगू की फूलबिहीन कलियाँ , फूल किसी भी प्रकार ना हों
बसिउंग /बसिंगू की फूलबिहीन कलियाँ , फूल किसी भी प्रकार ना हों
भांग के बीज या धनिया के बीज , जख्या
भांग के बीज या धनिया के बीज , जख्या
कटा प्याज यदि जरूरत समझते हैं
कटा प्याज यदि जरूरत समझते हैं
कडुआ तेल , नमक
कडुआ तेल , नमक
धनिया ,भांग के बीज , जीरा , मिर्च , हरा धनिया, अदरक , लहसुन। हल्दी को सिलवट मी पीसकर बनाया पेस्ट या पिसे मसाले
धनिया ,भांग के बीज , जीरा , मिर्च , हरा धनिया, अदरक , लहसुन। हल्दी को सिलवट मी पीसकर बनाया पेस्ट या पिसे मसाले
विधि
विधि
पहले बस्युंग /बसिंगू की हरी कलियों को साफ़ करें जिससे कलियों में फूल कतई नही होने चाहिए। फूलों के अंदर कुछ विशेष कीड़े या मधु मखियाँ हो सकती हैं। कलियाँ बहुत ही कडुवी होती हैं।
पहले बस्युंग /बसिंगू की हरी कलियों को साफ़ करें जिससे कलियों में फूल कतई नही होने चाहिए। फूलों के अंदर कुछ विशेष कीड़े या मधु मखियाँ हो सकती हैं। कलियाँ बहुत ही कडुवी होती हैं।
बस्युंग या बसिंगू की कलियों को धो लें.
बस्युंग या बसिंगू की कलियों को धो लें.
पारम्परिक ढंग में बस्युंग /बसिंगु को उबालकर टोकरी में पानी के झरने के नीचे रात भर रखा जाता था जिससे कलियों का कडुवापन दूर हो जाय।
पारम्परिक ढंग में बस्युंग /बसिंगु को उबालकर टोकरी में पानी के झरने के नीचे रात भर रखा जाता था जिससे कलियों का कडुवापन दूर हो जाय।
आधुनिक विधि में कलियों को प्रेसर कुकर में पानी में दो तीन सीटी तक उबालें। कलियों को पकाने के लिए नही उबाला जाता बल्कि कडुवापन दूर करने के लिए पारम्परिक ढंग से भी उबाला जाता है।
आधुनिक विधि में कलियों को प्रेसर कुकर में पानी में दो तीन सीटी तक उबालें। कलियों को पकाने के लिए नही उबाला जाता बल्कि कडुवापन दूर करने के लिए पारम्परिक ढंग से भी उबाला जाता है।
उबली कलियों को ठंडा होने दें और फिर उबली कलियों को छानकर , निचोड़कर थाली में रखें। ठंडे पानी से बार बार निचोड़कर उबली कलियों को निचोड़ें।
उबली कलियों को ठंडा होने दें और फिर उबली कलियों को छानकर , निचोड़कर थाली में रखें। ठंडे पानी से बार बार निचोड़कर उबली कलियों को निचोड़ें।
निचोड़े उबली कलियों को बाल्टी में रात भर या बारह घंटों तक ठंडे पानी में रखें और पानी बदलते रहिये।
निचोड़े उबली कलियों को बाल्टी में रात भर या बारह घंटों तक ठंडे पानी में रखें और पानी बदलते रहिये।
अब कलियों के पानी को निचोड़ें , ध्यान रखें कि कलियों के टुकड़े ना टूटें।
अब कलियों के पानी को निचोड़ें , ध्यान रखें कि कलियों के टुकड़े ना टूटें।
अब कढ़ाई ग्राम करें। कढ़ाई में तेल को गरम करें।
अब कढ़ाई ग्राम करें। कढ़ाई में तेल को गरम करें।
तेल में धनिया या भांग व जख्या का तड़कें । प्याज को छौंके।
तेल में धनिया या भांग व जख्या का तड़कें । प्याज को छौंके।
अब बस्युंग /बसिंगु की कलियों को डालें और हिलाइये। फिर मसालों के पेस्ट या पिसे मसाले को नमक के साथ डालकर , सात -आठ मिनट तक पकाएं। सूखी सब्जी उतारने से पहले कटी मिर्च भी डालें। बस्युंग की तरीदार सब्जी नही बनायी जाती है।
अब बस्युंग /बसिंगु की कलियों को डालें और हिलाइये। फिर मसालों के पेस्ट या पिसे मसाले को नमक के साथ डालकर , सात -आठ मिनट तक पकाएं। सूखी सब्जी उतारने से पहले कटी मिर्च भी डालें। बस्युंग की तरीदार सब्जी नही बनायी जाती है।
चूने /मंडुवे/मकई या अन्य अनाज की रोटियों के साथ खाईये।
चूने /मंडुवे/मकई या अन्य अनाज की रोटियों के साथ खाईये।
बस्युंग /बसिंगु का सुक्सा
बस्युंग /बसिंगु का सुक्सा
कलियों को उसी तरह उबालें व उसी तरह पानी में रखें जैसे सब्जी बनाने के लिए विधि इस्तेमाल की जाती है। उबली कलियों को पहले रात को सुखाया जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है।
कलियों को उसी तरह उबालें व उसी तरह पानी में रखें जैसे सब्जी बनाने के लिए विधि इस्तेमाल की जाती है। उबली कलियों को पहले रात को सुखाया जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है।
सुक्से की भाजी उसी तरह बनाई जाती है जैसे उबली कलियों की सब्जी।
सुक्से की भाजी उसी तरह बनाई जाती है जैसे उबली कलियों की सब्जी।
बस्युंग /बसिंगु का आटा
बस्युंग /बसिंगु का आटा
बस्युंग /बसिंगु दुर्भिक्ष या भूखकाल में रोटी बनाने का भी आता था. बस्युंग /बसिंगुके सुक्से को पीसकर अन्य अनाजों के साथ मिलाया जाता था।
बस्युंग /बसिंगु दुर्भिक्ष या भूखकाल में रोटी बनाने का भी आता था. बस्युंग /बसिंगुके सुक्से को पीसकर अन्य अनाजों के साथ मिलाया जाता था।
Copyright @ Bhishma Kukreti 2/11/2013
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