म्यारा डांडा-कांठा की कविता
© कन्हैयालाल डंडरियाल एक कवि, लेखक,साहित्यकार
कीडु कि ब्वै
पोरू का साल/ये बसग्याˇ
आजै ब्याˇि,
रकर्याणी छै
ऽरा°! द कीडू़ की ब्वै।
भूख अर ना°ग/मˇसा कि मा°ग
काˇी कुयेड़ी/तींदी गतूड़ी/भिजीं रूझीं
कुछ बरखल/कुछ आ°सुल
आ°दि छै फजलै ब्यखुनि
ऽरा°! द कीड़ु की ब्वे।
धुरप्वˇी-पंद्यरि-पा°ड/क्वलणौ छ्वाया
उबर कमˇौ कŸार/पट तिखंडा भितर
यखुल्या यखुलि/बयाणी रैंदि छै
ऽरा°! द कीडु की ब्वै
डोर्यों कि झिंजकी/भा°डौं का खपटण
ढिकीण डिसाण अ°दड़ा/द्वी चार झुल्लौं कि ल्वतगी
अर भितर फु°ड/बक्कि बातै/हडगौं कि थुपड़ि
ऽरा°! द किडु कि ब्वै
उनि झैड़/ उनि तींदो खैड़
चस्स ऐड़ो/टुट्य°ू दैड़ो
एक कूणी पर/जड्डल खुकटाणी
रूणी रैंदि छै/
ऽरा°! द कीडु कि ब्वै।
पोस्ट मैन भैजिम्/यकनात कै चलि जा°दि छै
आ°दा जा°दौ मु पुछदि छै
ऽरा°! द कबि म्यारू बि
ब्वारि ल्हेकि/खुचलि पर एकाध
इनि गैणा-गा°ठा-गठ्या°णी छै
ऽरा°! द कीडु कि ब्वे।
दिल्ली का बीच/कीड़ू बड़ो आदिम चा
ब्वारि बि चीज प्वड़ी च/ निपल्टु समझा
लोक ब्वदीं/ मिल बि सूण
गगˇा°दि बाच/कीडू.... कीडू....
धै लगा°द/वै ख°द्वार
बिचरि भलि अदमेण छै
ऽरा°! द कीड़ु कि ब्वै।