म्यारा डांडा-कांठा की कविता

कीडु कि ब्वै

पोरू का साल/ये बसग्याˇ

आजै ब्याˇि,

रकर्याणी छै

ऽरा°! द कीडू़ की ब्वै।

भूख अर ना°ग/मˇसा कि मा°ग

काˇी कुयेड़ी/तींदी गतूड़ी/भिजीं रूझीं

कुछ बरखल/कुछ आ°सुल

आ°दि छै फजलै ब्यखुनि

ऽरा°! द कीड़ु की ब्वे।

धुरप्वˇी-पंद्यरि-पा°ड/क्वलणौ छ्वाया

उबर कमˇौ कŸार/पट तिखंडा भितर

यखुल्या यखुलि/बयाणी रैंदि छै

ऽरा°! द कीडु की ब्वै

डोर्यों कि झिंजकी/भा°डौं का खपटण

ढिकीण डिसाण अ°दड़ा/द्वी चार झुल्लौं कि ल्वतगी

अर भितर फु°ड/बक्कि बातै/हडगौं कि थुपड़ि

ऽरा°! द किडु कि ब्वै

उनि झैड़/ उनि तींदो खैड़

चस्स ऐड़ो/टुट्य°ू दैड़ो

एक कूणी पर/जड्डल खुकटाणी

रूणी रैंदि छै/

ऽरा°! द कीडु कि ब्वै।

पोस्ट मैन भैजिम्/यकनात कै चलि जा°दि छै

आ°दा जा°दौ मु पुछदि छै

ऽरा°! द कबि म्यारू बि

ब्वारि ल्हेकि/खुचलि पर एकाध

इनि गैणा-गा°ठा-गठ्या°णी छै

ऽरा°! द कीडु कि ब्वे।

दिल्ली का बीच/कीड़ू बड़ो आदिम चा

ब्वारि बि चीज प्वड़ी च/ निपल्टु समझा

लोक ब्वदीं/ मिल बि सूण

गगˇा°दि बाच/कीडू.... कीडू....

धै लगा°द/वै ख°द्वार

बिचरि भलि अदमेण छै

ऽरा°! द कीड़ु कि ब्वै।