"यादों के झरोखे से"

बात सन् 1970 की है । साहब ! गढ़वाल से पांचवी पास किया तो पिता जी मुझे आगे की पढाई के लिए दिल्‍ली ले आये।

सरकारी स्कूल सरोजिनी नगर में छठी कक्षा में एडमिशन भी हो गया। लेकिन एक मुसीबत आ गई।अंग्रेजी विषय की। अब उस समय गाँव में प्राइमरी में अंग्रेज़ी तो पढाई जाती नहीं थी ।लेकिन यहां छठी कक्षा से ही अंग्रेजी विषय सीधे शुरू किया जाता था ।किसी तरह दो महिने अप्रैल -मई कट गये । नये बच्चे , नया स्कूल अौर नयी किताबें । मेरी सबसे बड़ी परेशानी अंग्रेज़ी थी । मैं कक्षा में चुप ही रहता था। मेरा बोलने का लहजा भी पहाड़ी था । सब हंसते थे मुझ पर।पर मन-मन ही सोच लिया, साला एक दिन इन सबसे अंग्रेजी में आगे बढकर दिखा दूंगा।

अब साहब! हमने अंग्रेज़ी बोलना शुरू कर दिया, जैसे कि हमारे ब्लाक में दो तीन बच्चे आपस में अंग्रेज़ी मे ही बतियाते थे। मैंने उनके साथ हाकी खेलना शुरू कर दिया। मैं हाकी अच्छी खेलता था क्यों कि गाँव में हिंगोड (बांस की होकी) खूब खेली थी तो वह अनुभव हाकी खेलने में काम आया। मेरे अच्छे खेल के कारण बच्चे मुझे अपने साथ खिलाते भी थे । सभी मुझे अपनी टीम में भी रखने को उत्सुक रहते थे। मैंने जब उनको अपनी अंग्रेज़ी न बोल पाने वाली समस्या बताइ तो उन्होने कहा कि मैं उनकी बातें ध्यान से सुना करुं। अगर उनके साथ अंग्रेज़ी में ही बातचीत करने की कोशिश करुं तो जल्दी सीख सकता हूँ।

लेकिन मुझे तो अंग्रेजी की A B C D का भी अभी पता नहीं था।खैर दो महिने की छुट्टियां हो गयी तो पिता जी को मैंने गाँव जाने से मना कर दिया। दो महिने घर पर ही अंग्रेज़ी पढ़ने का प्रण कर लिया ।

पिताजी अंग्रेज़ो के जमाने के पढे लिखे थे। इसलिए उनकी अंग्रेज़ी भाषा लेखन अौर गणित बहुत अच्छी थी। पं गौरीशंकर शर्मा रचित अंग्रेज़ी ग्रामर भी आ गइ। एक ही महिने में दिन- रात मेहनत करके हम अपने आपको अंग्रेजी में काफी आगे समझने लगे थे। अब तो हम दोस्तों को भी जबाब बेझिझक अंग्रेज़ी में देने लगे थे।

एक दिन हम सुबह की सैर में दौड़ लगाकर नेहरु पार्क से वापिस आ रहे थे। तो एक लड़के ने मुझसे पूछा,"whats the time ?" अब मेरे पास घड़ी तो थी नहीं पर रूकना भी नहीं था, मुझे अंग्रेज़ी मे जो हांकनी थी। पिता जी ने बताया था कि कुछ भी बोलो तो पहले उसको हिंदी में सोचो अौर फिर दिमाग में अंग्रेज़ी में अनुवाद करके बोलो। सहाब ,हमने सोचा कि कोई भी आस पास ऐसा लड़का नहीं था जिसके पास घड़ी हो जिससे हम टाइम पूछे । हमने वाक्य सोचा ," कोई घड़ी वाला आदमी नहीं है ।" इधर-उधर देखा । तपाक से दोस्तों को जबाब अंग्रेज़ी में दिया,"There is no watch man"। सब जोर से हंस पड़े। मैं सोचने लगा ,यार ये लोग हंसे क्यों? साला मैंने अनुवाद तो ठीक -ठाक ही किया था।

डर के मारे पिताजी को भी नहीं बताया। पर बहुत दिनों बात जब खुद ही मुझे पता चला तो मैं आज भी उस वाक्य को याद करके मुस्कराये बिना नहीं रहता।