उत्तराखंड के कलम वीर

@जगमोहन रौतेला

दीपा नौटियाल से टिंचरी माई तक का सफर

सात वर्षीय दीपा के लिए उसका विवाह एक महत्वपूर्ण घटना थी. इसलिए नहीं कि वह एक नये जीवन में प्रवेश कर रही थी या नई जिम्मेदारी को उठाने वाली थी बल्कि इसलिए कि उसे पहली बार छककर गरम-गरम पूरियाँ, कद्दू की सब्जी, रायता तथा सूजी खाने को मिली थी.

मशक-बीन की आवाज पर नन्हीं दीपा हम उम्र बच्चों के साथ दौड़ कर बाहर भाग गई थी, बारात देखने. बड़ी मुश्किल से उसे अन्दर लाया गया कि “छुवोरी, ब्योली है तू.” (छोकरी दुल्हन है तू !). सुबह नयी धोती में बंडल सी लिपटी दीपा विदाई के समय दौड़कर डोली में बैठ गईसवारी के मजे लेने की गरज से.

ससुराल में पूरे पाँच जेठ थे- “छौं न करि ऊ दगड़ी’ (उन्हें छूनामत). सीख तो बहुत दी गई थी दीपा को, पर ममतालु दीपा तो उन्हीं की गोदी में खेलने लगी-रात हुई तो जिठानी के साथ चिपक कर सो गई. दूसरे दिन हवलदार पति को रावलपिण्डी जाना था तो– ‘गौड़ी का पिछनै बाछि सी’ (गाय के पीछे बछिया सी) चली गई.