उत्तराखंड परिपेक्ष में कद्दू /खीरा/ भोपला का इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में सब्जियों का इतिहास - 8
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इइतिहास -32
आलेख : भीष्म कुकरेती
गढ़वाली में कद्दू (Cucurbita moschata ) खीरा कहते हैं। आज भी कद्दू का अत्यंत महत्व है व था।
किन्तु कद्दू भारत में सोलहवीं सदी के समय या सत्रहवीं सदी में ही आया।
कद्दू (Cucurbita moschata ) का मूल स्थान दक्षिण अमेरिका का मैक्सिको (5000 BC ) व पेरू क् (3000 BC ) क्षेत्र है।
कद्दू स्पेनी अन्वेषकों द्वारा गल्फ व वेस्ट इंडीज के समुद्री किनारे पंहुचा व एसिया से 1688 में यूरोप पंहुचा।
भारत में कद्दू शायद गल्फ देशों सेसत्रहवीं सदी में ही पंहुचा और धीरे धीरे अठारवीं सदी में कद्दू का प्रसार हुआ।
एक युरोपियन यात्री की पुस्तक से पता चलता है कि बंगाल में आलू और कद्दू पुर्तगाली व्यापारी लाये किन्तु आलू खेती का प्रसार तेजी से हुआ और कद्दू का प्रसार मंथर गति से हुआ।
उन्नीसवीं सदी के प्रथम वर्षों या अठारवीं सदी के अंत में कद्दू ने उत्तराखंड में प्रवेश पाया होगा और अंग्रेजी शासन समय में ही कद्दू का प्रसार उत्तराखंड में तेजी से हुआ होगा।
चूँकि कद्दू का फल अधिक दिनों तक टिका रहता है तो कद्दू की खेती को महत्व मिलना लाजमी था। कद्दू भातीय भोजन का हिस्सा इस तरह बना कि लगभग प्रत्येक राज्य के लोग श्राद्ध व तेरहवीं आदि में कद्दू की भाजी बनाना आवश्यक समझत हैं। याने कद्दू आज भारतीय संस्कृति का मुख्य भाग है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 6 /10/2013