गढ़वाली कविता
स्वास
यखि छया हम
यखि रौला
यखि मां हमन
यनि मिसै जाण
जबै राख उडालि
हमर मासाण भतेक
हमन यख वख
सुदि मुदि पसरे जाण
हैरा-भैर डांण्ड्याळी बोती
फूल बणिक हमन सजै जाण
अफि अफ लगि स्वास
आखेर तिल बल क्या पाई
यखि छया हम .....
बालकृष्ण डी. ध्यानी