आलेख :विवेकानंद जखमोला शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

फोटो साभार - श्री भीष्म कुकरेती जी की मैसेंजर वाल से

कुमाऊँ चंपावत में जल स्रोत (धारे , मंगारे , नौले ) की पाषाण शैली व कला

उत्तराखंड के स्रोत धारे,पंदेरे, मंगारे और नौलौं की निर्माण शैली विवेचना की इस कड़ी के अंतर्गत आज प्रस्तुत है कुमाऊँ मंडल में जनपद चंपावत के इकहथ्या नौले की निर्माण शैली और पाषाण कला के बारे में।

जल संसाधनो से परिपूर्ण कुमाऊँ की इस पूण्य धरा पर चंपावत में स्थित इकहथ्या नौले के विषय में प्राप्त जानकारीके अनुसार यह चंपावत का बहुत पुरातन नौला है ।सूचना स्रोत श्री भीष्म कुकरेती जी के अनुसार, इसका निर्माण स्थानीय शिल्पकारों द्वारा ही किया गया था। इस नौले के साथ गोरख्याणी के समय की एक ऐतिहासिक घटना जुड़ी हुई है। इस समय देवभूमि का शिल्प अपने चरम पर था तो गोरखा शासक ने शिल्पकारों से बेजोड़ कलाकारी के रूप में पानी के प्राकृतिक स्रोतों को अद्भुत स्वरूप देने के लिए स्थानीय खदानों से प्राप्त सुडौल कटवे पत्थरों की सिल्लियों को हथोडी छेनी से तराशकर सुंदर आकर्षक नौलों का निर्माण कराया था। परंतु दुखद यह भी था कि वह एक बार नौला या फिर अन्य निर्माण के बाद तुरंत ही उस शिल्पकार का एक हाथ काटने का हुक्म दे दिया करता था ताकि इस तरह का बेजोड़ निर्माण कोई भी फिर से न कर सके। परंतु कहा जाता है कि चंपावत के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के ऐसे ही एक हथकटे शिल्पकार ने अपनी बेटी की सहायता से इस मिथक को तोड़ कर पहले से भी ज्यादा आकर्षक नौले का निर्माण किया था। इसलिए शिल्पकार द्वारा एक हाथ से बनाये गए इस नौले को इक हथिया नौला नाम से जाना जाता है। इसे स्वच्छ और सुरक्षित रखने के लिए बाहर से एक कमरे जैसा आकार दिया गया है। कमरे की चिनाई स्थानीय पत्थरों को तराशकर किया गया है। पत्थरों की इस चिनाई में जोड़ ऐसे हैं कि लगता है कि ये पत्थर आपस में जुड़े हुए हैं। और तो और इसके प्रवेश द्वार पर लगा चौखट भी पत्थरों के खंभों से ही बनाया गया है। इस पर भी शानदार नक्काशी की गई है। ऊपरी छत पर भी स्थानीय खदानों के शानदार सपाट पठाल लगाये गये हैं। छत के बाहरी हिस्से को संबलित करने के लिए बीच में भी एक पाषाण खंभ लगा है। खंभ पर आकर्षक नक्काशी की गई है। तब जल स्रोत को इस प्रकार संग्रहण किया गया है कि अत्यंत मनमोहक यह यह बारामासी नौला स्वच्छ व सुरक्षित रह सके और आने जाने वाले यात्रियों के लिए जीवन संजीवनी के रूप में प्राणोदक की महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस जलधारा का निर्माण समयानुसार उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग कर सुनियोजित ढंग से किया गया है।नमन है उस महान कलाकार के लिए हृदय से जिसने इस अद्भुत शिल्प का निर्माण किया था। पूर्वजों द्वारा संजोई गई इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण का जिम्मा अब हमारी नई पीढ़ी पर है जिससे प्रकृति का यह अनमोल जलभंडार हमारी जीवन धारा में निरंतर प्राणाभिसिंचन करता रहे ।

सूचना साभार - वरिष्ठ भाषाविद साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती जी

फोटो साभार - श्री भीष्म कुकरेती जी की मैसेंजर वाल से

आलेख :विवेकानंद जखमोला * शैलेश *