उत्तराखंड संस्कृति और परम्परा

पौष मास में कहीं जातरा तो कहीं बैसी की धूम

पौष मास में कहीं जातरा तो कहीं बैसी की धूम

चौखुटिया में कई स्थानों पर भव्य देवस्नान यात्रा निकाली गई।

संवाद सहयोगी, चौखुटिया: पौष मास का सर्द महीना। पहाड़ के कई स्थानों व मंदिरों में देवी-देवताओं के जयकारों की गूंज। कहीं बैसी तो कहीं जातरा। ग्रामीण भक्तिभाव में डूबे हैं। ऐसा ही कुछ माहौल धुधलिया बिष्ट की धूनी में बना है। जहां हरज्यू की बैसी चल रही है। रविवार को 11वें दिन नगाड़े-निशानों के साथ स्नान यात्रा निकली। इस दौरान देव डंगरियों व बैसी में बैठे हरज्यू के भक्तों ने रामगंगा नदी में पावन स्नान किया। इसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की।

बैसी के 11वें दिन सुबह भक्तों व देव डंगरियों ने धूनी की पूजा-अर्चना कर आरती उतारी। इसके बाद ढ़ोल की थाप पर देवगणों का अवतरण हुआ तथा धूनी की परिक्रमा की गई। करीब 11 बजे धूनी परिसर से गाजे बाजे व नगाड़े-निशानों के साथ स्नान यात्रा शुरू हुई, जो जौरासी मोटर मार्ग से होते हुए अगनेरी मैया मंदिर के पास रामगंगा नदी के तट पर पहुंची। जहां सभी देव डंगरियों व भक्तों ने नदी में डुबकी लगाकर पवित्र स्नान किया। यात्रा में श्रद्धालुओं ने भारी संख्या में शिरकत अपनी अटूट आस्था का प्रदर्शन किया। इस दौरान समूचा वातावरण हरज्यू के जयकारों से गूंज उठा। बाद में स्नान यात्रा वापस धूनी में पहुंची, जहां देव डंगरियों ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया।

22 दिसंबर से चल रही है हरज्यू की जातरा

धुधलिया बिष्ट के हरज्यू धूनी में हर तीसरे वर्ष हरज्यू की बैसी होती है। जो इस वर्ष बीते 19 दिसंबर से प्रारंभ हुई है। पौष मास के कड़ाके की ठंड में देव डंगरियों के साथ साथ दर्जनभर भक्तगण बैसी में बैठे हैं।

11 दिन तक मौन भक्ति के बाद 11 दिन तक रात को नित्य धूनी में जातरा लगती है। इसमें भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं। आखिरी 22 वें दिन भंडारे के साथ बैसी का समापन होगा।

सदियों से चली आ रही है बैसी की परंपरा

उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। जहां स्थान स्थान पर देवताओं का पूजन होता है। देव पूजन में पौष मास का खास महत्व है। पौष मास में ही लोग अपने आराध्य देवों को पूजते हैं तथा सामूहिक रूप से बैसी व जातरा का भी आयोजन होता है। पहाड़ में जागर की भी परंपरा है।