हिंदी और गढ़वाली में समान भाव वाली लोकोक्तियाँ

हिंदी और गढ़वाली में समान भाव वाली लोकोक्तियाँ

लोकोक्ति का अर्थ है लोक+उक्ति अर्थात् लोक की उक्ति। लोक द्वारा स्वीकृत उक्ति समय के साथ बोलचाल में प्रयुक्त होकर लोकोक्ति बन जाती है। इसका प्रयोग किसी बात, घटना या प्रसंग का समर्थन करने के लिए किया जाता है। लोकोक्ति संपूर्ण वाक्य है और इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। गढ़वाली में लोकोक्तियों को 'मसल', 'पखाणा' या 'औखाण' कहा जाता है। कुछ समान भाव वाली हिंदी एवं गढ़वाली लोकोक्तियाँ इस प्रकार हैं :-

अंधा क्या चाहे, दो आँखें

(काणा त्वे क्य चैंद, द्वी आँखा साणा)

अति सर्वत्र वर्जयेत

(अति जौ बल खत्ती)

अपना-अपना खाना, अपना-अपना कमाना

(मामा भणजा घर जैक होला, सामळ थौलि अपणि-अपणि खोला)

उसकी टांगें उसी के गले पड़ी

(अपणै खुट्टा लगदा अपणि छत्ती पर)

अपनी टांग उघारिए, आपहिं मरिए लाज

(अपणु घुंडु अफ्वी नांगु)

अपने मुँह धन्ना बाई

(अपणा गिच्चै बौराण)

अब की अब के साथ, जब की जब के साथ

(एक दां खयाल, तब बांध कुट्यारि)

अल्पाहारी सदा सुखी

(कम खाण सुखी रैण)

आ बैल मुझे मार

(औ खुंड मेरा मुंड)

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया

(सैं का दस खेल)

ऊँट के मुँह में जीरा

(भैंसा मुख पर फ्यूंल्या फूल)

एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा

(पैलि छै बल बूड गितार, अब नाति दऽ जर्मी)

करेगा सो भरेगा

(दीन्यूं पौण, बूत्यूं लौण)

का वर्षा जब कृषि सुखानी

(जब तौली बौगी, तब आयि अक्कल)

कुत्ते के भौंकने से हाथी नहीं डरते

(कव्वा ककड़ांदि रौ, पीना पकदि जौ)

कोयला होय न उजला, सौ मन साबुन लाय

(घूसि-घूसि सोरा, रैचि-रैचि गोरा)

कौआ चला हंस की चाल, अपनी भी भूल गया

(कितलान करि गुरौ कि सौर, ताणि-ताणि तखि मू मौर)

खूँटे के बल बछड़ा कूदे

(कीला जोर पर बुरकद बाछरु)

खग जाने खग की भाषा

(लाटै सार लाटै कि ब्वे जाणदि)

चूहों की मौत बिल्ली का खेल

(मूसा जाणा पराण बिराळा तैं होयूं खेल)

छोटे मुँह बड़ी बात

(दाँतों अग्वाड़ि जीब)

जल में रहकर मगर से बैर

(निर्भाग्यों कु रस्वाळ दगड़ि बैर)

नाम बड़े और दर्शन छोटे

(यतुरु नौं ततरु नौं बाड़्यो ढिंडु कैमा खौं)

पिया गये परदेश, अब डर काहे का

(जै कि छै डौर, सु नी घौर)

मतलबी यार किसके, दम लगाया खिसके

(यार का घौर पकोड़ि पाकी, सबुन चाखि, आग लगि सबुन तापि)

(साभार- हिंदी गढ़वाली अंग्रेजी शब्दकोश- रमाकान्त बेंजवाल एवं बीना बेंजवाल, संरक्षण आधार- अरविंद पुरोहित)