गौं गौं की लोककला

संकलन

खमण (ढांगू ) में विष्णु दत्त लखेड़ा की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

फोटो आभार : सतीश कुकरेती , विक्रम तिवारी अन्य सूचना - चंडी प्रसाद बडोला

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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 75

ठंठोली में राजाराम बडोला की तिबारी व तल खोळी में काष्ठ कला /अलंकरण

ठंठोली (ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला भाग -9

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी , खोली अंकन ) - 75

(लेख अन्य पुरुष में है अतः श्री , जी आदि शब्द प्रयोग नहीं हुए हैं )

संकलन - भीष्म कुकरेती

ठंठोली एक समृद्ध गाँव रहा है अतः इस गांव में तिबारियों , जंगलेदार मकान, की संख्या सामन्य अनुपात से अधिक दिखती है। आज स्व राजाराम बडोला याने वर्तमान में सुंदर लाल रमाकांत बडोला व बंधुओं के दादा की तिबारी व खोली की चर्चा करेंगे।

जैसा कि गढ़वाल में सामन्यतया प्रचलन अनुसार तिबारी दुखंड /तिभित्या मकान के पहली मंजिल में स्थापित है व दो कमरों का बरामदा बनाकर तिबारी स्थापित की गयी है।

चार स्तम्भों से तीन द्वार /खोळी /मोरी बनी हैं। स्तम्भ पत्थर के छज्जों पर स्थापित देळी / देहरी के ऊपर चौकोर पाषाण डौळ पर स्थापित हैं। किनारे के दोनों स्तम्भों को जोड़ने वाली कड़ी का तल भाग भी मुख्य स्तम्भ जैसा ही कलयुक्त है याने ा अधोगामु पदम् कुम्भी व डीले के ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल व फिर बेलबूटे दार कड़ी। प्रत्येक स्तम्भ का आधार याने कुम्भी अधोगामी कमल दल से बना है , फिर डीला (round wooden ring type plate ) व फिर उर्घ्वगामी कमल दाल जहां से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है व जहां पर सबसे कममतायी है वहां से फिर कमल पुष्प व डीला आकृति है व फिर स्तम्भ में ऊपर की ओर थांत पट्टिका (bat blade ) शुरू होता है थांत पट्टिका सपाट पट्टिका नहीं अपितु बेल बूटों से सुसज्जित थांत पट्टिका है जो इस तिबारी की विशेषता बन जाती है। स्तम्भ में ही थांत जड़ से ही मेहराब का अर्ध पट्टिका शुरू होती है जो दूसरे स्तम्भ से मिलकर पूर्ण मेहराब या पूर्ण तोरण /arch बनाते हैं। तोरण तिपत्ती नुमा है बीच में टीकः है। तोरण कीतीनो आंतरिक पट्टिकाओं में नयनाभिरामी नक्कासी हुयी है। तोरण की दोनों कुंआरे की बाह्य तिकोनी पट्टिका पर किनारे पर दो बहुदलीय पुष्प हैं याने तिबारी में ऐसे कुल 6 पुष्प हैं। तोरण के ऊपर चौकोर मुरिन्ड /शीर्ष है जिसपर कई तल की पट्टिकाएं हैं व उन पर भी नकासी हुयी है। मुरिन्ड का बाह्य भाग ऊपर छत आधार दीवाल से मिलता है।

तल मंजिल की खोळी

तल मंजिल पर तल मंजिल से पहली मंजिल जाने हेतुआटरिक प्रवेश द्वार है जिसे खोळी कहा जाता है। खोली के दोनों दरवाजों में एक एक स्तम्भ हैं व प्रत्येक स्तम्भ /सिंगाड़ पर नक्कासी हुयी दिखती है। मुरिन्ड में कोई प्रतीक नहीं दीखता है।

चंडी प्रसाद बडोला की सूचना अनुसार राजाराम बडोला की तिबारी (वर्तमान में सुंदर लाल , रमाकांत बडोला के दादा ) लगभग 1930 के करीब निर्मित हुयी होगी।

निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तिबारी में प्राकृतिक (वानस्पतिक ) व ज्यामितीय कल अलंकरण हुआ है। मानवीय (पशु , पक्षी , देव प्रतीक ) अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं हुआ।

फोटो आभार : सतीश कुकरेती , विक्रम तिवारी

अन्य सूचना - चंडी प्रसाद बडोला

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