ग्वील में तारा दत्त कुकरेती की आकर्षक तिबारी में भवन काष्ठ कला अलंकरण
ग्वील (ढांगू , द्वारीखाल ब्लॉक ) गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगले में काष्ठ कला अलंकरण -4
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण -39
गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 60
(लेख अन्य पुरुष में है तो श्री , जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
संकलन - भीष्म कुकरेती -
तारा दत्त कुकरेती की तिबारी भी ग्वील की समृद्धि का एक साक्ष्य है।
आम गढ़वाली तिबारियों जैसे ही तारा दत्त कुकरेती की तिबारी भी है। प्रथम मंजिल पर चार स्तम्भों से तीन मोरी . खोली य ाद्वार बनते हैं व खोली में तीन पत्ती जैसे तोरण किन्तु केंद्र में तीखा तोरण है। किनारे के दो स्तम्भ दिवार से कड़ी मार्फत जुड़े है , कड़ी में वनस्पति या प्रकृती व ज्यामितीय कला दर्शन होते है। प्रत्येक स्तम्भ में आधार पर व ऊपर तोरण शुरू होने से पहले अधोगामी पदम् पुष्प दल ( 2 x 4 = कुल आठ ) मिलते है व इसी तरह कुल 8 उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल हैं। ऊपरी कमल दल से तोरण शुरू होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्तम्भ में दो दो डीले (round wood plate ) है (कुल 8 डीले ) हैं। तोरण की बगल वाली पट्टिकाओं में अस्टदल पुष्प है (कुल 6 अस्टदल पुष्प ) मिलते हैं। तोरण ढैपर की दिवाल की काष्ठ पट्टिका से मिल जाते हैं व इस जोडू काष्ठ पट्टिका में भी प्राकृतिक अलंकरण हुआ है।
तिबारी सम्भवतया 1930 के आस पास ही निर्मित हुयी होगी। यह तय है कि मकान तो सौड़ के शेर सिंह नेगी परिवार व बणव सिंह नेगी परिवार ने ही निर्मित किया होगा किन्तु तिबारी बाहर के कलाकारों ने ही निर्मित की होगी।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि तारा दत्त कुकरेती की भव्य किस्म की तिबारी में प्राकृतिक व ज्यामितीय कला अलंकरण मिलता है व कहीं भी मानवीय अलंकरण व आध्यात्मिक प्रतीक अलंकरण नहीं मिलते हैं।
सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील
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