आलेख :विवेकानंद जखमोला शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

फोटो एवं सूचना सहयोग साभार:-श्री उमेश सिंह असवाल जी।

रिंगवाड़ी रिंगवाड़स्यूं,एकेश्वर (पौड़ी गढ़वाल) में स्थित जल स्रोत (धारे , मंगारे , नौले ) की पाषाण शैली व कला

उत्तराखंड के स्रोत धारे,पंदेरे, मंगारे और नौलौं की निर्माण शैली विवेचना की इस कड़ी के अंतर्गत आज प्रस्तुत है ग्राम रिंगवाड़ी पट्टी रिंगवाड़स्यूं विकास खंड एकेश्वर जनपद पौड़ी गढ़वाल में निर्मित धारे की निर्माण शैली के बारे में।

रिंगवाड़ी का यह अनमोल जलस्रोत बहुत ही प्राचीन है। जो स्थानीय शिल्पकारों द्वारा निर्मित किया गया है। इसे एक ही स्रोत से दो जगह बांटा गया है इसलिए इस पर दो धारे लगे हुए हैं। बांयी ओर सुरक्षा दीवार बनाई गई है, धारे को उचित ऊंचाई पर स्थापित करने के लिए पहले लगभग 4 फीट ऊंची आधार दीवार स्थानीय पत्थरों की लंबी लंबी सिल्लियों से चिनकर बनाने के बाद इस पर बांयी व दांयी ओर से जलधार का रूप देने के लिए दो धारे लगाये गये हैं। बांयी ओर का धारा स्थानीय खदान के चौकोर पत्थर को बीचोंबीच से हथोड़ी छेनी की सहायता से नाली खोदकर बनाया गया है और दूसरी ओर स्टील पाइप लगाकर धारा बनाया गया है। स्रोत की स्वच्छता और सुरक्षा के लिए इसके ऊपर से इसे सुंदर पठालों से ढका गया है और पठालों के ऊपर से फिर बड़ी बड़ी सिल्लियों से चिनाई करके पठालों को मजबूती प्रदान करने के लिए दबाया गया है। धारे की नालियों को संतुलित करने और स्वच्छता सुरक्षा की दृष्टि से उर्ध्वाधर शानदार कटिंग वाली पत्थर की बनी हुई दो लंबी चौकोर स्लेटें लगाई गई हैं। इन्हें देखकर आभास होता है कि इस जलधारा पर भी पहले युगल (जौंल़ि)मंगारे रहे होंगे। जिसमें से बाद में दांयी ओर से धारे को हटाकर दूसरे छोर पर नल का धारा लगा दिया गया।

आधार दीवार पर दांयी ओर जलदेवी की प्रतिमूर्ति भी उत्कीर्ण की गई है। बांयी ओर निर्माणवर्ष भी उत्कीर्ण किया गया प्रतीत होता है। धारे के बगल से भी पत्थरों से सुरक्षा दीवार बनाई गई है।सुरक्षा दीवार की मजबूती के लिए इस पर सीमेंट मसाले का प्रयोग किया गया है। आधार दीवार के ऊपर से जलसंग्रहण के लिए पत्थरों से ही नाली बनाई गई है। धाराओं के नीचे पत्थरों की चौकोर पठालों लगी हुई थीं जिससे कि गिरती धाराओं से भूमि कटाव न हो और वर्तन रखने के लिए ठोस आधार उपलब्ध हो जाए, परंतु आधुनिकीकरण के चलते जलस्रोत के फर्श पर सीमेंट कंक्रीट की ग्राउटिंग कर दी गई है और आगे से बहते हुए पानी को एकत्र करने के लिए भी एक टैंक बनाया गया है जिससे प्रकृति के इस उपहार का सिंचाई जल के रूप में भी प्रयोग किया जा सके।

पाषाण शिल्प की दृष्टि से यह एक बहुत ही सुन्दर व सुनियोजित रूप से निर्मित धारा है।धाराओं से गिरता पानी इस बात का द्योतक है कि पूर्वजों द्वारा संजोई गई इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण के लिए ग्रामीण कितने सजग हैं। छलछलाकर गिरते हुए दोनों धारे बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

प्रेरणा स्रोत - श्री भीष्म कुकरेती जी ।

फोटो एवं सूचना सहयोग साभार:-श्री उमेश सिंह असवाल जी।

आलेख :विवेकानंद जखमोला 🌾 शैलेश 🌾

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