सादर नमस्कार प्रिय मित्रों.. 🙏🌹
कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसके लिए आपने मुझे अपनीबधाई एवं शुभकामनायें ज्ञापित की हैं | आप सबका तहेदिल से हार्दिक धन्यवाद 🙏🌹
कृपया कहानी पढ़कर ही कमेंट कीजियेगा, यह आपसे मेरा करबद्ध अनुरोध है 🙏🌹
"कहानी"
"आस का पंछी"
माहेश्वरी उस अंधेरे कोठरीनुमा कमरे में बैठी शून्य को निहार रही थी |उसके कानो में गूँज रहे थे, अपने पुत्र राज के वे शब्द,जो उसने जाते समय कहे थे, "मां हम बहुत जल्द वापस आएंगे |"
अपने अतीत में खो सी गई थी वह.. सोचते सोचते माहेश्वरी फ्लैशबैक में चली गयी..
माहेश्वरी एक 62 वर्षीय,गांव में निवासरत महिला थी, पांच वर्ष पूर्व उसके पति का देहांत हो चुका था | एक पुत्र था राज, और एक पुत्री थी, जिसकी शादी पति के रहते हुए ही हो गई थी..
राज मुंबई में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था | दो साल पहले माहेश्वरी ने राज की भी शादी कर दी थी |
माहेश्वरी को बहुत भली तरह याद है..राज की शादी के बाद सब मेहमान जा चुके थे, बेटी भी अपने ससुराल विदा हो चुकी थी |पूरे सप्ताहभर, घर बहुत खुशियों से चहचहाता रहा था |
उस दिन...
रात को खाना खाने के बाद राज और उसकी नई नवेली दुल्हन नीतू, माँ (माहेश्वरी) के कमरे में प्रविष्ठ हुए |
"अरे.. आओ बहू ! आओ राज !! सोये नहीं तुम लोग ? क्या बात है ?? कुछ कहना था क्या ??? " एक साथ कई प्रश्न कर दिए थे माहेश्वरी ने..
"हाँ माँ आपसे कुछ कहने आये हैं हम |" राज ने जबाब दिया |
" बोलो बेटा क्या कहना है ? "
"माँ.. मुझे कल वापस ड्यूटी जाना है.. मुम्बई |"
"अच्छा... मतलब छुट्टियां खतम हो गई हैं तेरी !!.. तो जाना ही पड़ेगा बेटा...और कोई साधन भी तो नहीं है कि हम पल सकें..!!"
"जी माँ... "
कुछ देर निस्तब्धता छाई रही वहां..
फिर राज बोला, "म् म् म् मम्माँ.. कुछ और भी कहना है आपसे |"
"हाँ बोलो न बेटे.. !!"
"माँ.. द..दरअसल नीतू भी चल रही है, मेरे साथ |"
माँ अवाक.... इस बात की अपेक्षा नहीं कर रही थी वह.. इस समय | फिर अनमनस्क बोली..
"ठीक है.. ले जाओ बहू को भी.. पर मेरी बहू को तीन चार माह के बाद, जल्दी ही वापस छोड़ देना मेरे पास.. उसके साथ मेरा भी मन बहला रहेगा...!!"
"जी जी माँ... मैं जल्द ही नीतू को वापस आपके पास छोड़ दूंगा |" कहा था राज ने |
"ठीक है... सुबह जाना है तो, अब जल्दी सो जाओ बच्चों |" माँ ने कहा |
और..राज, नीतू के साथ अपने बैडरूम में आ गये थे |
सुबह माँ..राज और नीतू को गाड़ी तक छोड़ने, गांव के नीचे बनी सडक तक आयी थी.. उन्हें गाड़ी में बिठाकर जरुरी हिदायत देने लगीं थी वो.. ऐसा करना, वैसा करना... आदि आदि |
राज ने इतना ही कहा कि, "माँ अपना खयाल रखना, हम बहुत जल्द वापस आएंगे |"
--- और गाड़ी दौड़ पड़ी थी |
सहसा माहेश्वरी की तंद्रा भंग हुई.. उसके आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह रही थी...
आज राज और बहू को गये हुए दो वर्ष बीत गये थे. . ..शुरू शुरू में तो वे लोग फ़ोन से हालचाल पूछ लेते थे.. डेढ़ सालों से कोई फोन भी नहीं किया था उन्होंने, खर्चा-पानी देना तो बहुत दूर की बात थी..
माहेश्वरी किसी तरह गांव की अपनी थोड़ी बहुत खेती किसानी करके अपना जीवन यापन कर रही थी | गांव में रोज शाम को गाड़ी पहुँचती थी...
हर रोज शाम को छज्जे पर बैठकर गाड़ी की ओर निहारना माहेश्वरी की नियति बन चुकी थी..
उसे अब भी राज से आस थी... उसे आज भी उम्मीद थी, उसके लौट जाने की...प्रतीक्षा थी उसे कि उसके आस का पंछी अवश्य उड़कर उसके पास वापस लौटेगा |
माहेश्वरी सड़क और बस की ओर ताककर अश्रु बहा रही थी... साँझ की लालिमा मुस्कुरा रही थी |
बहुत दुःख होता है ऐसे पुत्रों के बारे में सुनकर, पढ़कर या देखकर जो अपने बूढ़े माता-पिता को बेसहारा, अकेले छोड़कर, अपनी पत्नी को अपने साथ लेकर घर से निकल जाते हैं और फिर कभी उनकी सुध नहीं लेते हैं | धिक्कार है ऐसी औलाद पर, ऐसी संतान से तो मानव का निःसंतान होना श्रेयस्कर है |
✒️ नरेश चंद्र उनियाल,
ग्राम-जल्ठा, (डबरालस्यूं),
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड !!