गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

सौड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की पारम्परिक भवन की तिबारियों पर अंकन कला -7

सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी, कीर्ति सिंह नेगी , व दीनू नेगी (सौड़ )

हिमालय की भवन ( तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 11

सौड़ गांव के बण्वा सिंह नेगी की पारम्परिक भवन की तिबारी में काष्ठ उत्कीर्ण कला

Traditional House wood Carving (Tibari ) Art of Saur village , Dhangu , Garhwal, Himalaya

Traditional House wood Carving Art on Tibari of Dhangu , Garhwal, Himalaya -7


( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

सौड़ मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक ) पौड़ी गढ़वाल का एक छोटा गाँव है जो प्राचीन काल में सैकड़ों सालों से जसपुर ग्रामसभा का हिस्सा था। अब सौड़ जसपुर से अलग कर अलग ग्रामसभा बना दी गई है। सौड़ में सभी परिवार नेगी हैं। सौड़ कम से कम दो सालों से भवन निर्माण शिल्प (ओड ) व भवन व घरेलू उपकरण काष्ठ शिल्प हेउ प्रसिद्ध रहा है। 1970 से पहले सौड़ में प्रत्येक परिवार भवन निर्माण शिल्प से जुड़ा था। अब सौड़ के नेगी परिवार भवन निर्माण तो नहीं करते किन्तु भवन निर्माण ठेकेदारी करते हैं। सौड़ गांव सदा से ही उपजाऊ जमीन व भरपूर फसल हेतु जाना जाता रहा है। कर्मठता हेतु भी सौड़ का बड़ा नाम रहा है। सौड़ जसपुर के पश्चिम में जसपुर व गोदेश्वर पर्वत की घाटी में चौरस स्थान का गांव है और सौड़ क्र पश्चिम में इसी घाटी में छतिंड गाँव है।

सौड़ में बण्वा सिंह नेगी व शेर सिंह नेगी की दो तिबारियां अभी तक सही सलामत है किन्तु बण्वा सिंह नेगी की तिबारी खप सी रही है क्योंकि बण्वा सिंह नेगी ने 1960 के लगभग नया मकान बना लिया था। दोनों तिबारी काष्ठ कला दृष्टि से भव्य या उच्च मानी जाती है।

बण्वा सिंह नेगी की तिबारी (Tibari ) में पक्षी व पशु अलंकरण (Figurative ) अंकन है, प्राकृतिक अलकंरण व ज्यामितीय चारों प्रकार के अलंकरण चित्रित या उतकीर्त हैं। बण्वा सिंह नेगी की तिबारी में मानव अलंकरण नहीं मिलते है न ही कोई नजर न लगे वाला महामानव का अलंकरण मिलता है।

बण्वा सिंह नेगी की तिबारी (Tibari ) वास्तव में बण्वा सिंह नेगी के पिता ने निर्मित करवाई थी।

बण्वा सिंह नेगी की तिबारी (पहली मंजिल का खुला बरामदा ) भी ढांगू की अन्य तिबारियों की तरह ऊपरी पहली मंजिल पर ही स्थापित है याने नीचे दो दो दुभित्या कमरे हैं व ऊपरी मंजिल पर बाहर के दो कमरों के ऊपर बरामदा है और बरामदा के द्वार पर चार स्तम्भ / सिंगाड़ है जो तीन मोरी / द्वार बनाते हैं। दो किनारे के काष्ठ स्तम्भ अन्य काष्ठ कड़ी के जरिये दीवार से जुड़े होते हैं। तिबारी के कोने वाले स्तम्भ को जोड़ने वाले स्तम्भ या शाफ्ट पर भी कला कृतियां उत्त्कीर्णित हैं (carved ) . दिवार व स्तम्भ को जोड़ने वाली कड़ी /शाफ़्ट पर प्राकृतिक अलंकरण दोनों अंकित है। दिवार -स्तम्भ जोड़ कड़ी या खम्भे पर बेल बूटे दृष्टिगोचर होते हैं। इस तिबारी स्तम्भ -दीवार जोड़ खम्भे पर पशु -पक्षी या मानवीय अलंकरण बिलकुल नहीं है।

सौड़ गांव के इस तिबारी में भी निम्न तकनीक प्रयोग हुयी हैं

उभरी या उभारी गयी नक्कासी (Relief Carving Technique )

अधः काट नक्कासी तकनीक (Under Cutting Carving Technique )

तेज धार /छेनी से कटाई तकनीक /खड्डा करती विधि (Incised Carving Technique )

मूर्ति सदृष्य सदृश्य /मूर्तिवत नक्कासी ( Sculpturesque Carving Technique)

वेधित करती नक्कासी तकनीक (Pierced Carving Technique)

इसके अतिरक्त -

दरवाजों पर छीलने वाली तकनीक (Chips Carving )

बण्वा सिंह नेगी की तिबारी के चारों मुख्य स्तम्भ ज्यामितीय कला, अलंकरण कला दृष्टि व नाप दृष्टि से एक जैसे ही है. प्रत्येक तिबारी स्तम्भ कुम्भाकार आधार पर पत्थर के छज्जे पर टिका है। कुम्भकार आधार वास्तव में अधोगामी पदम् पुष्प दल कृति है। अधोगामी पदम् पुष्प दल के आधार पर उपधानी /गोलगुटका नुमा व गड्ढा से नीचे आते है व इसी उपधानी से ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं व कुछ ऊपर खिल जाते हैं। जब खिलता कलम समाप्त होने होता है वहां से खम्भा /शाफ़्ट पर ज्यामितीय अलंकरण है। गड्ढे वाली रेखा व उभरी खड़े रेखाएं।

स्तम्भ /column से जब मेहराब शरू होने वाली होती है तो उससे पहले उपधानी से नीचे अधोगामी कमल पुष्प दल उभर कर आते है और कमल पुष्प जड़ से उपधानी के ऊपर की ओर प्रकृति जन्य अंकन ( पत्ती जैसे फर्न की पत्ती हो ) उभर कर आते है। यहीं से मेहराब का अर्ध मंडल (arch ) शुरू होता है जो ऊपर दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब बनता है। मेहराब के दोनों मंडलों में किनारे पर शुभ प्रतीक चंद्राकार पुष्प दल हैं व पुष्प के मध्य में गणेश चिन्ह (अर्ध अंडाकार ) स्थापित है। जहां पर दोनों स्तम्भ के अर्ध मंडल मिलते हैं वहां एक शुभ संकेत प्रतीक है।

मेहराब की पत्ती पर बेल बूटों का अंकन बड़ा आनंद दायी है।

तिबारी स्तम्भ में जहां से मेहराब के अर्ध मंडल शुरू होते हैं वहीँ से स्तम्भ पर ऊपर छत की और एक बड़ी प्लेट (थांत ) शुरू होता है जो मेहराब के शीर्ष /सर से मिलता है। इस थांत के ऊपर मोर नुमा चिड़िया का गला व चोंच उभर कर आते हैं (अभिवार या bracket ) ये मोर भी नयनाभिराम छवि देते हैं और कुल चार मयूर पक्षी उभारे गए हैं।

अब तो तिबारी के मेहराब के ऊपर मेहराब शीर्ष की लकड़ी समाप्ति पर ही है किन्यु जिन्होंने देखा है वे बताते हैं छत के नीचे प्लेट्स /पट्टियों पर हाथी भी अंकित थे। मेहराब शीर्ष से ऊपर की पट्टियों में बेल बूटे अंकित हैन व छत की पट्टी से शंकुनुमा आकृतियां लटकी हैं।

सौड़ ढांगू के बण्वा सिंह नेगी की तिबारी तिबारी कला का एक उम्दा उदाहरण है जिसमे सभी प्रकार की कलाएं - प्राकृतिक , ज्यामितीय , प्रतीकत्मक , व मानवीय (Figurative ornamentation ) अलंकरण हुआ है। व भारत में उपलब्ध सभी उत्कीर्ण अंकन तकनीक का प्रत्योग हुआ है (

बण्वा सिंह नेगी की तिबारी में गढ़वाल ,की अन्य तिबारी जैसे साम्यता ही नहीं अपितु गुजरात के कई काष्ठ तिबारियों से भी मेल खाती है गुजरात में तिबारी अधिकतर तल मंजिल पर थीं बाद में ब्रिटिश काल में काष्ठ स्तम्भ व लकड़ी ब्रैकेट /ke jagah अभिवार पत्थर के बनने लगे ( देखें ----जय ठक्कर , 2004 , नक्श , स्कूल ऑफ इंटीरियर डिजायन , पृष्ठ 6 , 7 , 11 व इंट्रोडक्शन अध्याय, व वी . ऐस . परमार , 2001 द वुड कार्विंग ऑफ़ गुजरात , सूचना विभाग प्रकाशन , पृष्ठ प्रवेश अध्याय व प्लेट अध्यन )

बण्वा सिंह नेगी की तिबारी के निर्माण समय व तिबारी कलाकारों के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।

कभी यह तिबारी भी शेर सिंह नेगी की तिबारी जैसे ही शान शौकत वाली तिबारी थी किन्तु अब संरक्षण की प्रतीक्षा में है। राज्य सरकार को क्षेत्र के कॉलेज छात्रों की सहायता से क्षेत्र में तिबारियों का सर्वेक्षण करवाना चाहिए व तिबारियों के स्थान पर तिबारी मालिकों को वैकल्पिक जगह देकर तिबारी तोड़न बंद करवाना चाहिए व तिबारियों का संरक्षण रोमा शहर मुताबिक करना चाहिए ।

सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी, कीर्ति सिंह नेगी , व दीनू नेगी (सौड़ )

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020