गौं गौं की लोककला

कलसी (द्वारीखाल , पौड़ी ) में एक तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर विक्रम तिवारी

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 137

कलसी (द्वारीखाल , पौड़ी ) में एक तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 137

संकलन - भीष्म कुकरेती

कलसी मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक पौड़ी गढ़वाल ) का एक कृषि समृद्ध गांव रहा हिअ व पिछले 150 साल से छत की सिलेटी पटाळों की खांडी /खानों व पत्थर निकलने वाले कलाकारों के लिए प्रसिद्ध रहा है। कलसी से कृषि समृद्धि प्रतीक तिबारियों व निमदारियों की सूचना मिली है।

प्रस्तुत है कलसी में एक टीबारी में काष्ठ कला , अलंकरण उत्कीर्णन की विवेचना। आज नरगिस अपनी जीर्ण शीर्ण अवस्था पर रो रही है किन्तु कुछ साल पहले तक ही यह तिबारी पूर्वी दक्मषिण ल्ला ढांगू में चर्चा का विषय होती थी याने पूर्वी दक्षिण मल्ला ढांगू की शान थी पहचान थी।

तिबारी दुपुर मकान के पहले मंजिल पर पाषाणछज्जे के उपर देळी /देहरी के ऊपर स्थापित है। तिबारी चार स्तम्भों /सिंगाड़ों की है व चारों स्तम्भ /सिंगाड़ तीन ख्वाळ या खोली बनाते हैं। देळी में चौकोर पत्थर डौळ के ऊपर सिंगाड़ /स्तम्भ का आधार है जो कुम्भीनुमा है व कुम्भी शक्ल उल्टे कमल दल से पैदा हुयी है। उल्टे कमल दल के ऊपर ड्यूल (ring type wood plate ) है का ड्यूल के ऊपर सीधे खिलता लम्बोतरा कमल फूल है और यहां से सिंगाड़ की गोलाई कम होती जाती है , जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहीं से एक ओर स्तम्भ ऊपर की ओर थांत (bat blade shape ) की शक्ल अख्तियार करता है व दूसरी और बहु परतीय मेहराब शुरू होता है। बहुपरतीय मेहराब तिपत्ति (trefoil ) आकार में है। मेहराब की परतों (layers ) में लता , पर्ण की खुदाई हुयी है जो आज भी बरबस आकर्षित करते हैं। मेहराब के बाहर त्रिभुज में एक एक मंत्र मुघ्द करने वाले बहुदलीय सूर्याकार फूल की नक्कासी हुयी है।

सिंगाड़ , मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष की कई परतिय कड़ियाँ व पट्टियां हैं जो छत आधार पट्टिका के नीचे हैं। मुरिन्ड के प्रत्येक परत में मोहित करने वाली पुष्प , लता व पर्ण की शानदार नक्कासी हुई है।

आश्चर्य है कि कहीं भी मानवीय , काल्पनिक या प्रतीकात्मक अलंकरण नहीं हुआ है।

मकान केओड तो कख्वन आदि से स्थानीय ही रहे होंगे किंतु काष्ठ कलाकार आयत किये गए होंगे कहाँ के शिल्पी थे की जानकारी नहीं मिल पायी है।

निष्कर्ष में कहा जा सकता है अपने जमाने की शानदार तिबारी में प्राकृतिक , ज्यामितीय अलंकरण की नक्कासी हुयी है व खूबसूरत , कशिसदार बन पड़ी है।

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर विक्रम तिवारी

यह लेख भवन कला, नक्कासी संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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