आलेख :विवेकानंद जखमोला शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

फोटो साभार :

किशोरी रावत जी ।

सूचना साभार :-नवीन नौटियाल जी की वाॅल से ।


मद्महेश्वर में स्थित जल स्रोत

(धारे , मंगारे , नौले ) की पाषाण शैली व कला

उत्तराखंड के जल स्रोत धारे,पंदेरे, मंगारे और नौलौं की निर्माण शैली विवेचना के तहत जल संचय जीवन संचय के लिए समर्पित इस श्रृंखला के अंतर्गत आज प्रस्तुत है मद्महेश्वर उत्तराखंड की एक जल संवाहिका (धारे) की निर्माण शैली और पाषाण कला के बारे में।

आइए जानते हैं धरणी के गर्भ से निःसृत इस शीतल मधुर जलधारा(मंगारे) की निर्माण शैली के बारे में :- प्राप्त जानकारी के अनुसार इस जल स्रोत का निर्माण स्थानीय शिल्पकारों द्वारा किया गया था ।इसका उद्गम मूलतः उत्तर में स्थित पहाड़ी की तलहटी में है, जो एक भूमिगत झील के रूप में है। इसके बहते पानी को इस स्थल पर एकत्रित करने के लिए स्थानीय पत्थरों से चिनाई करके सुरक्षा दीवार बनाई गई है तथा पानी को जलधारा का स्वरूप देने के लिए गौमुखी मगारा लगाया गया है।मंगारे के पत्थर पर शानदार नक्काशी की गई है सिल्ली के दोनों ओर मोरपंख का आभास कराती सुंदर आकर्षित करने वाली आकृतियां उत्कीर्ण की गई हैं और बीचोंबीच में 🐮 गाय के मुख जैसा सुन्दर उभार दिया गया है। गाय के आंख नाक कान व सींग स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। भूतल से पहले 4फीट के लगभग ऊंची एक सीधी दीवार चिनी गई है और तब जल स्रोत को इस प्रकार संग्रहण किया गया है कि वह यहां पर धारा का रूप ले सके। गाय के मुख से निकलती जल धारा बरबस ही आकर्षित करती है। धारे के दाहिनी ओर दीवार पर एक आयताकार मोहरा भी बनाया गया है जिसमें वरुणदेव या फिर भोलेनाथ जी के अत्यंत मनमोहक मूर्ति विग्रह के दर्शन होते हैं। इस गौमुखी मंगारे का निर्माण किसने किया होगा यह खोज का विषय है। परंतु आज आवश्यकता है कि हम अपने पूर्वजों की इस अमूल्य निधि का संरक्षण करने के लिए कृतसंकल्प हों ताकि प्रकृति का यह अनमोल उपहार हमारी जीवन धारा को निरंतर यूं ही अभिसिंचित करता रहे।

प्रेरणा स्रोत - वरिष्ठ भाषाविद साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती जी

आलेख :विवेकानंद जखमोला

फोटो साभार :किशोरी रावत जी ।

सूचना साभार :-नवीन नौटियाल जी की वाॅल से ।